मानवता की त्रासद तस्वीर, बाप-बेटी की डूबी लाशें देख दहल जाएगा कलेजा...

स्मृति आदित्य
गुरुवार, 27 जून 2019 (17:00 IST)
अल सल्वाडोर से अमेरिका की राह में बह गए पिता के साथ लिपटी 23 महीने की नाजुक जिंदगी   
 
छोटा सा परिवार था अल सल्वाडोर के अलबर्टो का। अलबर्टो ? कौन अलबर्टो? नहीं, अब यह नाम किसी भी परिचय का मोहताज नहीं है। पिता की टी-शर्ट में फंसी नन्ही बच्ची की कलेजा चीर देने वाली वह तस्वीर सबके हम सबके दिलोदिमाग में छप गई है। एक पिता अपने घर से खूबसूरत जिंदगी का सपना लेकर निकलता है और मृत पाया जाता है किसी नदी के किसी किनारे पर अपनी बेटी की मृत देह के साथ... 
 
हर दिन कोई न कोई ऐसी घटना से हम रूबरू होते हैं जो हमारे दिल दिमाग को सुन्न कर देती है और जीवन के प्रति हमारी आसक्ति एक झटके में रूक जाती है।  
 
पल भर में जिंदगी कहां से कहां पंहुच जाती है, क्षण भर में सब कुछ खत्म हो जाता है और हम बेबस से खड़े रह जाते हैं। कहां का लिंगभेद, कहां की धर्मांधता? कहां की नागरिकता? कैसा कश्मीर, कैसा पाक, कैसा बांग्लादेश? कैसा सीरिया, कैसे रोहिंग्या? सब बेमानी बेमतलब लगने लगते हैं लेकिन सिर्फ पल भर ही तो अगले ही पल हम फिर उस लड़ाई में शामिल हो जाते हैं जो मेरा, तुम्हारा, उसका, इसका से आरंभ होती है और चलती रहती है, चल रही है, सदियों से...
 
हमें सिर्फ अपनी धरती से प्यार है, धरती पर रहने वालों की जिंदगी से हमें कोई सरोकार नहीं...ऐसा क्यों?  
 
मैक्सिको के ऑस्कर अलबर्टो मार्टिनेज रामिरेज का क्या कसूर था, बेटी वालेरिया ने किसी का क्या लिया था? पत्नी तान्या के सामने उसके अरमान, सपने और जिंदगी डूब गई और वह कुछ न कर सकी। 
 
खूबसूरत और खुशहाल जिंदगी का सपना देखना गुनाह बन गया क्योंकि जिस जमीं की तलाश में वह निकले थे वह उसकी नहीं कही जाती... 
 
शरणार्थी कितना कड़वा है यह शब्द... शरण देने वाले हो या लेने वाले . . अंतत: दो गज जमीन ही तो हमारे हिस्से आनी है पर हर राष्ट्र की भौगोलिकता, सीमाएं और सियासत की अपनी मजबूरियां हैं, अपनी ताकतें हैं, अपने नियम हैं ... 
 
तभी तो पड़ोसी राष्ट्र को काश्मीर चाहिए पर काश्मीरवासियों से उसे कोई हमदर्दी नहीं? वहां की फिजांओं में खून घोलते हुए वह भूल जाता है कि छींटे उसके दामन पर भी तो गिरेंगे ... विषयांतर से बचना चाहती हूं पर बच नहीं पाती हूं... आखिर हर जगह हम संघर्ष ही तो कर रहे हैं। अस्तित्व का, वर्चस्व का, विस्तार का, विकास का, विश्वास का, परस्पर सहयोग का, साथ का और सत्ता का... 
 
पद, पैसा, नौकरी, नागरिकता, जिंदगी, परिवार को लेकर वह कौन सी मजबूरी है कि हम जहां है वहां संतुष्ट नहीं है .. और .. और और की यह कौन सी चाहत है जो अंतत: अलबर्टो और वालेरिया की जिंदगियां बहा ले जाती है लेकिन जहां जाना था वहां अस्वीकार्यता, नियम और कानून की कठोरता का सूखा पसरा होता है। 
 
अल सल्वाडोर का ऑस्कर अलबर्टो मार्टिनेज रामिरेज नामक शख्स बेटी वालेरिया के सपनों में सितारे टांकना चाहता था, अमेरिका जा रहा था, पर पिता-बेटी दोनों रियो ग्रांडे नदी में उन्हीं सपनों के साथ बह गए। 23 महीने की वालेरिया पिता की टी-शर्ट में फंसकर नदी पार कर रही थी। 
 
रिपोर्ट कहती है कि अलबर्टो लंबे समय से अमेरिका में शरण पाने की कोशिश में लगे थे। अमेरिकी अधिकारियों के सामने खुद को पेश करने में सफल नहीं हो पा रहे थे। अलबर्टो रविवार को बेटी वालेरिया और पत्नी तान्या वानेसा अवालोस के साथ नदी पार कर अमेरिका के लिए निकले थे। 
 
अलबर्टो पहली बार में बेटी को लेकर नदी पार भी कर चुके थे। वह बेटी को नदी तट पर खड़ा कर पत्नी तान्या को लेने के लिए वापस जा रहे थे पर उन्हें दूर जाते देख बेटी फिर पानी में कूद गई, तो अलबर्टो बेटी को बचाने के लिए लौटे और उसे पकड़ लिया। पर दूसरी बार पानी के तेज बहाव में दोनों बह गए।
 
अलबर्टो की मां रोजा रामिरेज ने बताया कि कि मैंने उन्हें घर छोड़कर अमेरिका जाने से मना किया था, पर वे नहीं माने। अलबर्टो घर बनाने के लिए पैसा कमाने और बेटी को बेहतर जिंदगी देने के लिए अमेरिका जा रहा था। मुझे लगता है कि बेटी ने छलांग लगाकर अलबर्टो तक पहुंचने की कोशिश की, पर जब तक अलबर्टो उसे पकड़ पाते, वह काफी दूर निकल गई थी। वह बाहर नहीं निकल पाई और अलबर्टो ने उसे अपनी शर्ट में फंसा दिया। 
 
पिता और बेटी का शव मैक्सिको के माटामोरोस में मिला, जो अमेरिका के टेक्सास सीमा से 100 गज की दूरी पर है। यहां से करीब डेढ़ किमी की दूरी पर एक अंतरराष्ट्रीय पुल है, जो अमेरिका और मैक्सिको को जोड़ता है। मैक्सिको के राष्ट्रपति एंड्रयूज लोपेज कहा कि ऐसी घटना अफसोसजनक है। अमेरिका द्वारा शरणार्थियों को स्वीकार नहीं करना ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसे तमाम लोग अमेरिका जाने की चाह में रेगिस्तान या नदी में अपनी जिंदगी खो देते हैं। जबकि अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया है कि अगर डेमोक्रेट नेता कानून में बदलाव करते, तो इसे रोका जा सकता था। उन्हें इसे बदलना चाहिए। 


 
नदी जीवन देती है, वही नदी जब जीवन लेती है तो बहुत कुछ याद आता है... 2015 का सीरिया शरणार्थी मासूम एलन कुर्दी जो तुर्की में समुद्र किनारे अपने नाजुक बदन के साथ मृत पाया गया था। 
 
तस्वीरें हमें हिला देती हैं, दहला देती हैं लेकिन ना हम, ना सत्ता, ना देश, ना शासक. .. कोई भी अपने जीने के, रहने के और आगे बढ़ने के तरीके नहीं बदलते.. सोच को विस्तार नहीं देते.. वसुधा को कुटुंब मानने की हिम्मत नहीं करते.. फिर कोई अल्बर्टो, फिर कोई एलन लहरों में बहकर किनारे आ लगते हैं.. भावनाएं हिलोर लेती हैं, ज्वार-भाटा उमड़ता है और फिर सब थम जाता है...अलबर्टो के बहाने कुछ सोचें हम भी अपने लोगों के बारे में.. अपने अपनों के बारे में.. शायद कोई हल निकले... फिर किसी नदी में न बहे पिता के सपने, पुत्री की हंसी, पत्नी की खुशियां... 

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