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Dr. Ambedkar Punyatithi: डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि, जानें उनके जीवन के 10 उल्लेखनीय कार्य

WD Feature Desk
शुक्रवार, 5 दिसंबर 2025 (16:50 IST)
Babasaheb Ambedkar Mahaparinirvan Diwas 2025: डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन संघर्ष, समर्पण, और सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक है। उनका योगदान भारतीय समाज को एक नए दिशा देने में महत्वपूर्ण था। उन्होंने न केवल दलितों, पिछड़ों, और महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया, बल्कि समग्र भारतीय समाज को समानता, न्याय, और बंधुत्व की दिशा में अग्रसर किया। उनकी पुण्यतिथि पर हम उनके योगदान को याद करते हैं और उनके आदर्शों को अपनाने का संकल्प लेते हैं।
 
यहां 06 दिसंबर को डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि पर हम उनके जीवन के कुछ प्रमुख कार्यों पर नजर डालेंगे, जिन्होंने भारतीय समाज को एक नया दिशा दी और लोकतंत्र के सशक्त निर्माण में उनका अहम योगदान रहा।
 
''हमारे लिए जीवन का एक ही उद्देश्य होना चाहिए: हमें अपनी मेहनत और अपने विचारों से समाज में सकारात्मक बदलाव लाना है।'' – डॉ. भीमराव अंबेडकर
 
1. भारतीय संविधान का निर्माण : डॉ. भीमराव अंबेडकर को भारतीय संविधान के ''मुख्य शिल्पकार'' के रूप में जाना जाता है। उन्होंने भारतीय संविधान को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, और भाईचारे के अधिकार प्रदान किए गए। उनके नेतृत्व में संविधान में दलितों, पिछड़ों, और महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा की गई, जिससे भारत में सामाजिक न्याय की नींव रखी गई।
 
2. दलितों के अधिकारों की रक्षा : अंबेडकर ने भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने दलितों और शोषित वर्ग के अधिकारों की रक्षा के लिए जीवन भर संघर्ष किया। उनका यह मानना था कि समाज को सशक्त बनाने के लिए सभी वर्गों को समान अधिकार मिलना जरूरी है। उन्होंने ''हरिजन'' शब्द के खिलाफ भी आवाज उठाई और दलितों को सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार दिलवाया।
 
3. इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी : डॉ. भीमराव अंबेडकर ने श्रमिकों के अधिकारों के लिए इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की थी, जिसका मुख्य उद्देश्य श्रमिक वर्ग, दलितों के हितों का प्रतिनिधित्व करना था। उन्होंने श्रमिक अधिकारों के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए।
 
4. शिक्षा में सुधार : अंबेडकर ने शिक्षा को समाज में सुधार का सबसे महत्वपूर्ण साधन माना। वे खुद एक उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति थे और उन्होंने जीवनभर शिक्षा का महत्व बताया। उनका उद्देश्य था कि हर व्यक्ति को शिक्षा का समान अवसर मिले, खासकर उन समुदायों को जिनका शोषण किया जाता था। उन्होंने दलितों और पिछड़ों को शिक्षा के क्षेत्र में अवसर प्रदान करने के लिए कई योजनाएँ बनाई।
 
5. बौद्ध धर्म की ओर वापसी : अंबेडकर ने भारतीय समाज के दलितों को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए 1956 में बौद्ध धर्म अपनाया। उन्होंने लाखों दलितों को बौद्ध धर्म की ओर मार्गदर्शन किया और उन्हें उच्च जातियों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया। बौद्ध धर्म के सिद्धांतों में समानता, बंधुत्व और अहिंसा के विचार थे, जो उन्होंने समाज में लागू करने का प्रयास किया।
 
6. समानता और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष : उन्होंने भारतीय समाज में समानता की नींव रखी। उन्होंने भारतीय समाज में हर व्यक्ति को समान अधिकार दिलाने के लिए संविधान में कई विशेष प्रावधान किए। उनका मानना था कि लोकतंत्र का सही रूप तब संभव है जब हर व्यक्ति को समान अधिकार मिले, और हर जाति और वर्ग के लोगों को समान अवसर प्राप्त हों।
 
7. राजनीतिक आंदोलन और नेता : डॉ. अंबेडकर ने भारतीय राजनीति में भी सक्रिय भागीदारी निभाई। उन्होंने ''हिंदू कोड बिल'' के माध्यम से महिलाओं के अधिकारों में सुधार की कोशिश की और जातिवाद के खिलाफ कई आंदोलनों का नेतृत्व किया तथा पिछड़ों के अधिकारों की रक्षा के लिए बहुत संघर्ष किया। 
 
8. समानता का विचार और 'जातिवाद' का विरोध : डॉ. अंबेडकर का मानना था कि जातिवाद भारतीय समाज की सबसे बड़ी समस्या है और इसे समाप्त करना आवश्यक है। उन्होंने संविधान में जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ प्रावधान किए, ताकि समाज में समानता और बंधुत्व सुनिश्चित किया जा सके। उनका यह विचार था कि भारत तभी प्रगति करेगा जब हर व्यक्ति को समान अधिकार मिले।
 
9. संविधान में सामाजिक और आर्थिक अधिकारों का समावेश : डॉ. अंबेडकर ने भारतीय संविधान में केवल राजनीतिक अधिकारों को ही नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक अधिकारों का भी समावेश किया। उनके द्वारा तैयार किए गए संविधान में सभी भारतीय नागरिकों को धर्म, जाति, लिंग और वर्ग के आधार पर भेदभाव से मुक्त किया गया। इसके अलावा, उन्होंने पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण व्यवस्था की नींव भी रखी, ताकि वे समाज के मुख्यधारा में शामिल हो सकें।
 
10. राज्यसभा और विधानसभा में योगदान : डॉ. अंबेडकर ने भारतीय संसद के दोनों सदनों में सक्रिय रूप से भाग लिया। वे 1947 में भारत सरकार के विधि मंत्री (कानून मंत्री) बने और जिन्हें स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में नियुक्त किया गया। उनका भारतीय संविधान के निर्माण में उनका योगदान अनमोल रहा। उन्होंने समानता, स्वतंत्रता, और भाईचारे के सिद्धांतों को लागू करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
 
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