फादर्स डे पर पढ़ें दोहे : पर बेटी के रूप में, सदा गई मैं हार.....

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विवाहित बेटी का पछतावा
इंदु पाराशर
 
खुद को हारा सोचती, 
पाती हूँ लाचार ।
उठा न पाऊँ फोन मैं, 
हों पापा बीमार।।
 
बहन , बहू , पत्नी बनी,
माँ बन सींचा प्यार। 
पर बेटी के रूप में ,
सदा गई मैं हार।।
 
आँसू छलके पलक से, 
हुए लाल जब गाल। 
सीने से भींचा मुझे, 
और सहलाया भाल ।।
 
उस दिल की, कुछ विवशता,
कुछ , अँसुवन का भार। 
जा न सकी , मैं बाँटने ,
पछताती हर बार।
 
रहूँ दौड़ती, मैं यहाँ, 
सुनकर , हर आदेश ।
सौ नखरे , करती वहाँ,
था वह,  मेरा देश।
 
सारे कारज, छोड़कर, 
आन बैठते , पास, 
काम करूँगा बाद में, 
बिटिया सबसे खास ।।
 
उनके , चौथे फोन पर ,
हँस कहती हूँ, आज ।
उलझ गई थी, मैं जरा, 
मुझको, हैं सौ काज ।।
 
बचपन वाले , वस्त्र हों,
रंग उड़ी , तस्वीर ।
सीने से , उसको लगा ,
कहते हैं , जागीर ।।
 
मेरा मन तो, बँट गया ,
टुकड़े-टुकड़े, आज ।
किंतु तुम्हारे, ह्रदय पर,
केवल मेरा,  राज ।
 
कल आऊँगी , मैं वहाँ, 
सुनकर , इतनी बात। 
दौड़ पड़े,  बाजार को, 
लेकर, थैली हाथ ।
 
अम्मा, पूरी तल रही ,
और बनाती खीर। 
आज, लाड़ली आएगी, 
नयन, खुशी का नीर। 
 
वे होते, बीमार जब, 
मुश्किल में, बेज़ार ।
पहुँच न पाती, वक्त पर, 
मैं जाती हूँ हार ।।
 
नम, गीली आँखें लिए,
व्याकुल, विव्हल प्रीत।
करते हैं, मुझको विदा ,
बेटी, जग की रीत।। 
 
हृदय तोड़ता, सरहदें ,
करता है, चीत्कार ।
मैं, बिटिया के रूप में ,
हर पल जाती, हार।
(C) इंदु पाराशर

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