कविता : मैंने लगाई थी एक अर्जी

श्रीमती गिरिजा अरोड़ा
मैंने लगाई थी एक अर्जी,
धूप के दरबार में,
मान ली सूर्य ने,
जो भी थी फरियाद वे।
 
कहा मैंने था कि कम है,
तेज थोड़ा किरणों में,
उर्जारहित होती देह,
आ न जाए जीर्णों में।
 
तीव्र मिल गईं किरणें अपार हमें,
मैंने लगाई थी एक अर्जी,
धूप के दरबार में।
 
शुष्कता हवा की बताया,
काट देती है त्वचा,
बर्फ कर देते हो जिसको,
पानी प्रकृति ने था रचा।
 
ऊष्णता बढ़ाई भानु ने व्यवहार में,
मैंने लगाई थी एक अर्जी,
धूप के दरबार में।
 
हो गई मंजूर अर्जी,
सूर्य रहा न्यायधर्मी,
सर्दी की थी अर्जी मगर,
हुई मंजूर जब आई गर्मी।
 
मैंने लगाई थी एक अर्जी,
धूप के दरबार में,
मान ली सूर्य ने,
जो भी थी फरियाद वे।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

पार्टनर के लिए 20 बेहतरीन रोमांटिक गुड मॉर्निंग लव शायरी और कोट्स

भारत में कैसे आता है मॉनसून? समझिए बारिश का पूरा विज्ञान

बरखा की बूंदों में भीगी ये शायरी पढ़ कर दिल हो जाएगा तरोताजा

हेयर ट्रांसप्लांट ने लील ली 2 जिंदगियां, जानिए कितनी सेफ है ये सर्जरी, संभावित खतरे और किन लोगों को नहीं करवाना चाहिए ट्रांसप्लांट

प्री-मॉनसून और मॉनसून में क्या होता है अंतर, आसान भाषा में समझिए

सभी देखें

नवीनतम

अपनी बेटी को दें वेदों से प्रेरित सुंदर नाम, जानें उनके गहरे अर्थ

घर के चिराग को दें वेदों से प्रभावित नाम, दीजिए बेटे के जीवन को एक सार्थक शुरुआत

प्रधानमंत्री का संदेश आतंकवाद के विरुद्ध मानक

मोहब्बत, जिंदगी और सियासत पर राहत इंदौरी के 20 दमदार और मोटिवेशनल शेर

कितनी है कर्नल सोफिया कुरैशी की सैलरी, जानिए भारतीय सेना में इस पोस्ट का वेतनमान

अगला लेख