कविता : झकझोरकर मुझे हवा ने

अशोक बाबू माहौर
झकझोरकर
मुझे हवा ने
अलौकिक खेल दिखाया
 
उतार कमीज
पल में
उठा पटक कर
ले उड़ी
 
घुमा फिराकर टांग दी
बबूल की टहनी पर I
मुझे मार धक्का
पटक गड्ड़े में
 
बैठ छाती पर
मानो तांडव नया
अजीब दिखाया
 
बोझ कल्पनाओं का लाद,
गुम होकर
डरावना स्वप्न सा
दृश्य दिखाया
खूब दिखाया। 
 

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