नवगीत: घना हो तमस चाहे

सुशील कुमार शर्मा
गुरुवार, 20 मार्च 2025 (14:45 IST)
अब घना हो तमस चाहे,
आंधियां कितनी चलें।
 
हो निराशा
दीर्घ तमसा,
या कंटकाकीर्ण पथ हो।
हो नियति
अब क्रुद्ध मुझसे,
या व्यथा व्यापी विरथ हो।
 
लडूंगा जीवन समर मैं,
शत्रु चाहे जितने मिलें।
 
ग्रीष्म की जलती
तपन हो या,
हिमाच्छादित
पर्वत शिखर।
हो समंदर
अतल तल या,
सैलाब हो तीखा प्रखर।
 
चलूंगा में सत्य पथ पर,
झूठ चाहे कितने खिलें। 
 
लुटते रहे
अपनों से हरदम,
नेह न मरने दिया।
दर्द की
स्मित त्वरा पर,
नृत्य भी हंस कर किया।
 
मिलूंगा मैं अडिग अविचल,
शूल चाहें जितने मिलें।

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

क्या प्रोटीन सप्लीमेंट्स लेने से जल्दी आता है बुढ़ापा, जानिए सच्चाई

चेहरे की ड्राईनेस को दूर भगाने के लिए लगाएं इन सब्जियों का रस, बदल जाएगी रंगत

पीसीओएस में हार्मोन संतुलन और वजन घटाने में बहुत फायदेमंद है ये कमल ककड़ी ड्रिंक, जानिए बनाने की सही विधि

कीमोथैरेपी से सूखे हिना खान के नाखून, जानिए किन होम रेमेडीज से कैंसर पेशेंट्स पा सकते हैं इस समस्या से राहत

बसौड़ा 2025: सप्तमी-अष्टमी के व्यंजन, इन पकवानों से लगाएं शीतला माता को भोग

सभी देखें

नवीनतम

प्रधानमंत्री मोदी और संघ

बाल कविता : चलो मार्निंग वॉक पर

रानी अवंतीबाई लोधी कौन थीं, जानिए बलिदान की कहानी

एकनाथ छठ क्यों मनाई जाती है, जानिए संत के बारे में 5 खास बातें

अपनों का दिन बनाएं मंगलमय, भेजें सुन्दर आध्यात्मिक सुप्रभात् संदेश

अगला लेख