नई कविता : जीवन के रंग...

देवेन्द्र सोनी
जीवन में हम 
कृत्रिम रंगों का तो 
आंनद लेते हैं बहुत ।
हर रंग का अपना -अपना 
होता है आकर्षण और महत्व
पर मैं तो दो ही रंग को
मानता हूँ असली ।
 
ये दो रंग ही साथ चलते हैं 
जीवन भर हमारे ।
कहते हैं इन्हें - 
सुख और दुःख ।
 
सुख , होता है जितना प्रिय 
दुःख देता है उससे कहीं अधिक पीड़ा।
 
सुख को खरीद भी लेते हैं हम 
सुविधाओं के रूप में 
मगर आते ही पास 
थोड़ा भी दुःख हमारे 
घबरा जाते हैं हम । 
 
सुख का हर रंग अच्छा लगता है 
पर दुःख का कोई रंग नही भाता है ।
जबकि जानते हैं सुख और दुःख
एक ही सिक्के के दो पहलू हैं ।
 
सुख का रंग यदि आंकते हैं हम
सुविधाओं से, तो यह सुख नही है।
 
सुख तो आत्म संतोष का 
रंग बिखेरता है 
और दुःख होता है 
प्रेरणा के रंग से सराबोर , 
जो कहता है - 
डूब कर गुजरेगा यदि मुझमें तो
कुंदन सा दमकेगा जीवन में सदा। 
 
समझना ही होगा हमको 
इन दोनो रंग का भी महत्व
आएगी तभी सच्ची खुशहाली
जीवन में हमारे।

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