होली नवगीत : रंग दो पिया चुनरिया

सुशील कुमार शर्मा
नवल किशोरी खेलत होरी
प्रीत कुसुम संग बंधी है डोरी
कान्हा ने जब बांह मरोरी
सखियां करती जोराजोरी
रंग दो पिया चुनरिया कोरी।
 
टूट गए हैं आज सारे बंध
रस में भीगे हैं सब छंद
थिरक उठे गोरी के अंग
रसिक भये रति संग अनंग
जीवन बना नया अनुबंध।
 
नाच उठा सारा आकाश
उदित रंग से सना पलाश
सांस-सांस में तेरी आस
मन में है बासंती विश्वास
चलो मिले अमराई पास।
 
राधे रूठी श्याम मनाएं
मन में प्रीत के रंग लगाएं
श्याम सखा को अंग लगाएं
वृंदावन में रास रचाएं
देख युगल छवि मन हरसाएं।
 
मुंह पर मलें अबीर-गुलाल
कान्हा की देखो ये चाल
खुद बचकर भागे नंदलाल
फेंक सभी पर प्रेम गुलाल
कान्हा बिन है मन बेहाल।
 
देखो होली के हुड़दंग
मन बाजे जैसे मृदंग
गोरी बनी बड़ी दबंग
बच्चे-बूढ़े सब एक रंग
लहराते सब पीकर भंग।

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