कविता : कालक्रम

सुशील कुमार शर्मा
काल की अनंतता का प्रवर्तन, 
शून्य के वृत्त का सनातन आवर्तन।
 
वर्तमान की चेतना से काल का आरंभ, 
प्रसूत अद्यतन क्षण का प्रारंभ।
 
प्रवाहित है अतीत की ओर, 
साथ ही बहता है भविष्य का शोर।
 
दोनों ओर समगतित्व, 
नैरंतर्य पुनरागमित अमरत्व।
 
नटराज की काल-डमरू मध्य, 
ब्रम्ह्नाद अघोष से आबद्ध।
 
अतीत और भविष्य का मान, 
प्रवाहित है साध्य वर्तमान।
 
काल का वृत्त निरपेक्ष चिरप्रवाही, 
अतीत से अनुगामित अनुप्रवाही।
 
कालजित भविष्य को समेटे, 
चिरंतर वर्तमान में स्वयं को लपेटे।
 
जीवन संयुक्त अथवा जीवनमुक्त, 
सनातन नित्य एवं विविक्त।
 
निरवधि, प्रवाहमान प्रत्यावर्ती पुरातन कर्म, 
अविखंडनीय कालाणुओं का सनातन धर्म।

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