कविता : तीये की बैठक

डॉ. निशा माथुर
तथागत का हंसता-सा चित्र
पुष्पहारों से हो रहा सुवासित
कोविद, आगंतुक सभी उपस्थित
अब होगा गरूड़ पुराण वाचित!!
 
परिचित दिख रहे हैं गमगीन
दिवंगत आत्मा में ही हैं लीन
कैसे शोकाकुल व्यथित गंभीर
जैसे लुट गई हो कोई जागीर!!
 
अभ्यागत की अब शुरू हुई कतार
कुछ संबंधी आज आए पहली बार
कुछ कैसे बिलख रहे जारमजार
जैसे सारा आज दिखाएंगे प्यार!!
 
वनिताओं की है एक अलग कतार
पुरुष वर्ग भी शांत पंक्तिबद्ध प्रकार
धीमी फुसफुसाहटें कर रहीं प्रसार
गोल मटकती आंखें होती दो-चार
 
इसमें तेरी-मेरी की आयोजककर्ता
सबकी दु:खभंजन और दु:खहरता
लेकर आई कुंवारों की सूची श्रेष्ठता
उद्देश्य नई जोड़ी की परिणयता!!
 
कोई खोलती जमानेभर का पिटारा
फलाने की छोरी, फलाने का छोरा
ऐसी थारी-म्हारी के हर कोई हारा
ना छोड़े सासु-ननद, ना पति बेचारा!!
 
अब आई घड़ियाली आंसू की बारी
कोई आंख पोंछे, कोई का रोना जारी
जाने वाला गया, कौन खबर ले हमारी
आज तेरी बारी, कल होगी मेरी बारी!!
 
ये तीये की बैठक का तात्कालिक बखान 
कौन सुनाने-सुनाने आता है गरूड़ पुराण
सिर्फ रिश्तों की औपचारिकता का निभान
अरे! सुनो, दुनिया क्या कहेगी बस ये जान!!

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