#MeToo पर लघुकथा : सीढ़ियां

ज्योति जैन
ज्योति जैन           
 
"तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ....!"
 
"इन लम्पट पुरुषों का चेहरा तो उजागर होना ही चाहिए....!"
 
"और क्या... कमीनों  की करतूतों के बारे में सबको पता तो चले..."
 
"लेकिन सुनो...! ये सब तुमने तब क्यों नही उजागर कर दिया...?"
 
"..................."
 
"टैल मी.....?"
 
"पागल हूं क्या...? जब सीढ़ी पर चढ़ते हैं,तो उसे अपने ही पैर से गिराते हैं क्या....? बुद्धू...!"
 
"तो अब वो सीढ़ी की लकड़ी सड़कर कमजोर हो गई है...या तुम ऊपर आ गई हो....?"

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