Motivational Story : बिल्‍ली मत पालना

अनिरुद्ध जोशी
शनिवार, 1 फ़रवरी 2020 (16:33 IST)
यह एक प्रतीकात्‍मक कहानी है उन लोगों के लिए जो अपने जीवन में किसी प्रकार से कोई आध्यात्मिक या राष्ट्रीय लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। यह उन लोगों के लिए भी समझने वाली बात है कि हम जीवन में कुछ ऐसी गलतियां करते हैं जिससे कार्य और कारण की ऐसी श्रृंखला बनती है जिसमें जीवन उलझकर रह जाता है। यह कहानी ओशो ने अपने किसी प्रवचन में सुनाई थीं।
 
 
एक गुरु ने मरते वक्त अपने शिष्‍य से कहा- बिल्‍ली मत पालना। यही आध्या‍त्मिक सफलता (सांसारिक भी) का सूत्र है। शिष्य को गुरु की यह बात समझ में नहीं आई। शिष्य उस सूत्र में उलझकर रह गया। उसने सोचा गुरु मरते समय सठिया गया था। क्या होगा बिल्ली पालने से और मुझे क्या करना बिल्ली विल्ली से। खैर...थोड़े दिनों में शिष्य उस बात को या कहें कि सूत्र को भूल गया।
 
 
फिर एक जंगल में जीवनभर तपस्या और ध्यान करने के लिए गया और वहां जंगल में एक कुटिया बनाकर रहने लगा। बहुत कम साधनों में उसका गुजारा चल रहा था और जिंदगी मजे में गुजर रही थी। लेकिन वहां एक दिक्कत खड़ी हो गई। जहां वह रहता था वहां चूहे बहुत हो गए। शिष्य के सारे कपड़े चूहे काट जाते, वह उन चूहों  से परेशान रहने लगा।
 
 
फिर एक दिन पास ही के गांव के एक बुजुर्ग ने सलाह दी कि चूहों से बचने के लिए एक बिल्ली पाल लो तो तुम्हारी सारी समस्या समाप्त। हालांकि चूहों को भगाने के और भी तरीके हो सकते थे लेकिन शिष्य को बुजुर्ग की यह बात पसंद आई और उसने बिल्ली पाल ली।
 
 
अब चूहे तो नहीं रहे, लेकिन बिल्ली के लिए भिक्षा के साथ उसे अब दूध भी मांगना पड़ता था। गांव के लोग दूध देने में कतराते थे। अब उसके लिए बिल्ली एक समस्या बन गई। आधा ध्यान बिल्ली में लगा रहता।
 
 
तब फिर उसी बुजुर्ग ने सलाह दी, एक काम करो। तुमको पहाड़ी से नीचे गांव में भिक्षा मांगने और इसके लिए दूध लाने जाना पड़ता है तो क्यों नहीं एक गाय पाल लेते हो। यहां आसपास चारा बहुत है। कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। गाय चारा खुद ही खा लेगी और तुम रोज उसका दूध निकालकर खुद भी पीना और बिल्ली को भी पिलाना। बचे समय में निश्चिंत होकर तप और ध्यान करना। इस बार भी उस शिष्य को बुजुर्ग की बात पसंद आ गई आई और गाय भी पल गई।
 
 
वह गाय ले आया लेकिन उसे क्या मालूम था कि गाय को पालना इतना आसान नहीं है। दिनभर गाय की देखरेख करना। गोबर हटाना और साफ सफाई करने के बाद दूध निकालना, इसी में उसका समय चला जाता था। फिर एक दिन गाय को बछड़ा हो गया। अब शिष्य को फुरसत नहीं मिलती थी। रात भी ध्यान देना पड़ता था। ध्यान और तप के लिए समय ही नहीं मिलता। बिल्ली, गाय और बछड़ा, बस इसी के आसपास उसका जीवन उलझकर रह गया था। ध्यान-पूजा सब छूट गया।
 
 
तब फिर से वही बुजुर्ग सामने आया और फिर से उसने सलाह दी, अरे भाई इतनी झंझट क्यों पालते हो। राजा जनक और महर्षि विश्वामित्र ने भी तो गृहस्थ जीवन जीकर मोक्ष पाया था। मेरी मानो तो तुम गृहस्थ रहकर भी ध्यान-पूजा कर सकते हो। यदि तुम शादी कर लोगे तो यह सारी झंझट खत्म। बिल्ली, गाय, बछड़ा सभी पत्नी संभाल लेगी और खाना भी बनाकर देगी। तुमको भिक्षा मांगने नहीं जाना पड़ेगा। दिनभर फुरसत ही फुरसत और तुम मजे से ध्यान और तप करना।
 
 
इस बार फिर शिष्य को उस बुजुर्ग की बात पसंद आ आई। उसने विवाह कर लिया और फिर देखते ही देखते जीवन में तूफान खड़ा हो गया। दो-तीन बच्‍चे हो गए और फिर सभी तरह की झंझट शुरू हो गई। जीवन संपूर्ण तरह से अब उलझ चुका था। सास-ससुर, साले-साली सभी का आना जाना लगा रहता था। जीवन कब गुजर गया पता ही नहीं चला। अंतत: जब वह मरने लगा तो उसे अंत में अपने गुरु की कही गई बात याद आई। गुरु ने एक सूत्र दिया था कि बिल्ली मत पालना। यह सोचकर वह रोने लगा और सोचने लगा कि यदि में चूहों से बचने लिए बिल्ली नहीं पालता तो निश्‍चित ही आज जीवन कुछ और ही होता।
 
- ओशो रजनीश के किस्से और कहानियों से साभार
 

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