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kovidara tree: क्या कचनार ही है कोविदार वृक्ष? जानिए दिलचस्प जानकारी

WD Feature Desk
मंगलवार, 25 नवंबर 2025 (17:21 IST)
kovidara tree: कोविदार वृक्ष, जिसे सामान्यतः कचनार (Kachnar) या वैज्ञानिक रूप से बाउहिनिया वैरिएगाटा (Bauhinia variegata) के नाम से जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप का एक महत्त्वपूर्ण और सुंदर वृक्ष है। इसे हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। हाल ही में जब अयोध्या के राम जन्मभूमि पर ध्वजा रोहरण का उत्सव आयोजित किया गया तो इस वृक्ष की चर्चा भी खूब हुई क्योंकि यह वृक्ष राम के समय सूर्यवंशी साम्राज्य का राजसी वृक्ष रहा है। इस वृक्ष को अयोध्या राम मंदिर परिसर में स्थापित किया गया है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने उद्भोधन में इस वृक्ष का उल्लेख करते हुए कहा कि यह वृक्ष कचनार और अपराजिता वृक्ष की बीच की प्रजाति का वृक्ष है। इस वृक्ष में दोनों के ही गुण पाए जाते हैं। यह देववृक्ष है।
 
कचनार और कोविदार: क्या अंतर है?
वनस्पति विज्ञान (Botany) के दृष्टिकोण से कचनार और कोविदार को एक ही कुल की दो अलग प्रजातियाँ माना जाता है, भले ही संस्कृत साहित्य में ये शब्द अक्सर एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग किए गए हों।
 
वानस्पतिक वर्गीकरण और पहचान: कचनार और कोविदार दोनों ही वृक्ष निम्नलिखित समान समूह से संबंधित हैं:
कुल (Family): लेग्यूमिनोसी (Leguminosae)
उपकुल (Subfamily): सीजलपिनिआयडी (Caesalpinioideae)
प्रजाति (Genus): बॉहिनिया (Bauhinia)
 
शोधकर्ताओं के अनुसार, ये दोनों प्रजातियाँ बॉहिनिया (Bauhinia) प्रजाति की हैं लेकिन अलग वृक्षजातियाँ हैं:
कचनार (Kachnar): Bauhinia\ variegata
कोविदार (Kovidar): Bauhinia\ purpurea
 
युग्मपत्र (Joined Leaves): बॉहिनिया प्रजाति की वनस्पतियों में पत्तों का अगला हिस्सा बीच में इस तरह से कटा होता है, जैसे दो पत्ते आपस में जोड़ दिए गए हों। इसी कारण कचनार को युग्मपत्र भी कहा गया है।
 
दोनों प्रजातियों में मुख्य अंतर:
दोनों प्रजातियों के बीच मुख्य अंतर उनकी पत्तियों (Leaves) और पुष्पकलिकाओं (Flower Buds) की विशेषताओं में पाए जाते हैं:
 
कचनार (Bauhinia\ variegata): पत्ते के दोनों हिस्से गोल और तिहाई या चौथाई दूरी तक अलग रहते हैं। पत्तों में 13 से 15 शिराएं होती हैं। पुष्पकलिका का घेरा सपाट होता है। पुष्प बड़े, मंद खुश्‍बू वाले, सफेद, गुलाबी या नीले रंग के होते हैं।
 
कोविदार (Bauhinia\ purpurea): पत्ते ज्यादा दूर तक अलग-अलग रहते हैं। पत्तों में 9 से 11 शिराएं होती हैं। पुष्पकलिकाओं का घेरा उभरी हुई संधियों के कारण कोणयुक्त होता है। फूल नीले होते हैं।
 
संस्कृत साहित्य: संस्कृत साहित्य में दोनों प्रजातियों के लिए 'कांचनार' और 'कोविदार' शब्द इस्तेमाल किए गए हैं।
आयुर्वेद: आयुर्वेद में भी, इन दोनों वृक्षों के औषधीय गुणों के आधार पर कोविदार और कचनार को अलग-अलग माना गया है।
संक्षेप में, भले ही दोनों नाम आपस में जुड़े हुए हैं, वनस्पति विज्ञान स्पष्ट करता है कि Bauhinia\ variegata और Bauhinia\ purpurea दो भिन्न-भिन्न पादप प्रजातियाँ हैं।
 
धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व: कोविदार वृक्ष का उल्लेख प्राचीन हिंदू ग्रंथों, विशेषकर रामायण, में मिलता है, जो इसे एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व प्रदान करता है।
 
1. रामराज्य का प्रतीक: माना जाता है कि भगवान राम ने अपने राजचिह्न (Royal Emblem) के रूप में कोविदार वृक्ष के चिन्ह का उपयोग किया था। यह चिन्ह रामराज्य के न्याय, समृद्धि और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक माना जाता है। अयोध्या के श्री राम मंदिर के शिखर पर लगे धर्म ध्वज पर भी इसका प्रतीक अंकित है।
 
2. साहित्यिक उल्लेख: वाल्मीकि रामायण में इसका वर्णन सुंदर वृक्ष के रूप में किया गया है जो अशोक वाटिका और अन्य पवित्र स्थानों पर पाया जाता था। वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड के 84वें सर्ग में निषादराज गुह के कोविदार वृक्ष से अयोध्या की सेना पहचाने का प्रसंग है।

वाल्‍मीकि रामायण के 96वें सर्ग के 18वें श्लोक में लक्ष्मण जी को अयोध्या के राजा भरत की सेना के ध्वज का कोविदार वृक्ष दिखता है। श्लोक 21 में लक्ष्मण कहते हैं कि भरत को आने दीजिए। हम उन्हें हराकर ध्वज को अधीन कर लेंगे। लेकिन भरत तो राम को लेने आए हैं। महाभारत में भी इसका उल्लेख है, जहाँ यह एक पवित्र और शुभ वृक्ष माना जाता था।
 
3.औषधीय और अन्य उपयोग: कोविदार का उपयोग आयुर्वेद में सदियों से किया जाता रहा है।
औषधीय उपयोग: इसकी छाल (bark), पत्तियां, फूल और जड़ें सभी औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं। यह मुख्य रूप से ग्रंथियों (glands) से संबंधित रोगों, रक्तशोधन, और घावों को भरने में उपयोगी माना जाता है।
 
खाद्य उपयोग: इसके फूलों की कलियां (buds) भारत के कई हिस्सों में सब्जी के रूप में खाई जाती हैं, जिसे 'कचनार की कली की सब्ज़ी' कहा जाता है। यह स्वादिष्ट और पोषक होती है।
 
पर्यावरणीय महत्व: यह एक मजबूत और सदाबहार वृक्ष है जो आसानी से उगता है और पर्यावरण को सुंदर बनाने में मदद करता है।
 
इस प्रकार, कोविदार (कचनार) केवल एक सुंदर पेड़ नहीं है, बल्कि यह भारतीय इतिहास, संस्कृति और पारंपरिक चिकित्सा का एक अभिन्न अंग है।
 

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