चैतन्य महाप्रभु कौन थे? जानिए 10 बातें

Webdunia
गुरुवार, 17 फ़रवरी 2022 (12:00 IST)
वैष्णव संप्रदाय के महान संत चैतन्य महाप्रभु की जयंती फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को मनाई जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार यह तिथि 18 मार्च को रहेगी, परंतु अंग्रेजी दिनांक के अनुसार उनका जन्म 18 फरवरी को है। आओ जानते हैं उनके बारे में 10 खास बातें।
 
 
चैतन्य महाप्रभु : (1486- 1534) :
 
1. जन्म : चैतन्य महाप्रभु का जन्म सन् 1486 की फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को पश्चिम बंगाल के नवद्वीप (नादिया) नामक उस गांव (मायापुर) में हुआ था। इनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र व मां का नाम शचि देवी था। चैतन्य महाप्रभु के बचपन का नाम निमाई था। 
 
2. विवाह : 15-16 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह लक्ष्मी देवी के साथ हुआ। सन् 1505 में सर्पदंश से पत्नी की मृत्यु हो गई। वंश चलाने की विवशता के कारण इनका दूसरा विवाह नवद्वीप के राजपंडित सनातन की पुत्री विष्णुप्रिया के साथ हुआ।
 
3. संन्यास : चैतन्य महाप्रभु ने 24 वर्ष की अवस्था में संन्यास धारण किया था। इन्होंने केशव भारती नामक संन्यासी से दीक्षा ली थी। कुछ लोग माधवेन्द्र पुरी को इनका दीक्षा गुरु मानते हैं। कहते हैं कि सन् 1509 में जब ये अपने पिता का श्राद्ध करने बिहार के गया में गए, तब वहां इनकी मुलाकात ईश्वरपुरी नामक संत से उन्होंने महाप्रभु को कृष्ण कृष्‍ण रटने को कहा और तभी से उनकी जिंदगी बदल गई।
 
4. संकीर्तन का प्रचार-प्रसार : संन्यास ग्रहण के पश्चात चैतन्य महाप्रभु ने दक्षिण भारत में संकीर्तन और कृष्ण भक्ति का प्रचार प्रसार करके वैष्णव धर्म को जागृत किया। वे भक्तिकाल के संतों में प्रमुख हैं। उन्होंने अपनी यात्राओं में हरिनाम के माध्यम से चारों ओर प्रेमस्वरूपा भक्ति की धारा बहा दी। 
 
5. श्रीरंग में रुके चातुर्मास: दक्षिण भारत के श्रीरंगम मंदिर के प्रधान अर्चक श्रीवेंकट भट्ट के यहां उन्होंने चातुर्मास बिताया जहां पर अर्चक के पुत्र श्रीगोपाल भट्ट को दीक्षित कर वैष्णव धर्म की शिक्षा के साथ शास्त्रीय प्रमाणों सहित एक स्मृति ग्रंथ की रचना का आदेश दिया।
 
6. गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय : बाद में महाप्रभु ने हिन्दू धर्म के प्रमुख संप्रदायों में से एक वैष्णव संप्रदाय के अंतर्गत गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय की स्थापना की गई और वृंदावन को अपनी कर्मभूमि बनाया गया। इसी कारण उन्हें गौरांग भी कहा जाता है। 
 
7. हरिभक्ति विलास स्मृति ग्रंथ : कुछ समय पश्चात चैतन्य महाप्रभु के शिष्य श्रीगोपाल भट्ट वृंदावन आए एवं वहां निवास कर उन्होंने पंचरात्र, पुराण और आगम निगमों के प्रमाणसहित 251 ग्रंथों का उदाहरण देते हुए हरिभक्ति विलास स्मृति की रचना की। इस ग्रंथ में उन्होंने एकादशी तत्व विषय पर विशेष विवेचना की। 
 
8. श्रीकृष्‍ण राधा का संयुक्त अवतार : वैष्णव संप्रदाय के लोग श्री चैतन्य महाप्रभु को श्रीकृष्ण का राधा रानी के संयोग का अवतार मानते हैं।
 
9. वृंदावन को पुन: बसाया : यह भी कहा जाता है कि महाप्रभु ने विलुप्त हो गए वृंदावन को फिर से बसाया था अन्यथा वृंदावन को एक मिथक ही माना जाता। 
 
10. देहांत : कहते हैं कि उनका देहांत उड़ीसा के पुरी तीर्थस्थल पर हुआ। उनके जीवन पर वृन्दावनदास द्वारा रचित 'चैतन्य भागवत' नामक ग्रन्थ में अच्छी जानकरी मिलती है। उक्त ग्रन्थ का लघु संस्करण कृष्णदास ने 1590 में 'चैतन्य चरितामृत' शीर्षक से लिखा था। श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी द्वारा लिखित 'श्री श्री चैतन्य-चरितावली' भी उनका ग्रंथ है। देश ही नहीं विदेश में भी श्री चैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन की धूम रही है।

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