कर्नाटक के हिरे बेनकल की रहस्यमयी पहाड़ी: अलौकिक शक्तियों वाले बौनों का अनसुलझा इतिहास

WD Feature Desk
सोमवार, 21 जुलाई 2025 (07:44 IST)
Hill of the dwarfs: कर्नाटक के धूल भरे रास्तों से गुजरते हुए, जहां सूरज की किरणें पत्थरों को सोने-सा चमकाती हैं, एक ऐसी जगह छिपी है जो समय की धुंध में खोई हुई प्रतीत होती है। हिरे बेनकल, जिसे स्थानीय भाषा में "मोरियर गुड्डा" यानी "बौनों की पहाड़ी" कहा जाता है, दक्षिण भारत का एक प्रागैतिहासिक चमत्कार है। लगभग 3,000 साल पुरानी इस जगह पर करीब 1,000 मेगालिथिक संरचनाएं, जिन्हें डोल्मेन कहा जाता है, बिखरी पड़ी हैं। ये तीन तरफा पत्थरों के कमरे, 8-10 फीट ऊंचे, विशाल पत्थरों की छतों (कैपस्टोन) के साथ, न केवल पुरातात्विक खजाना हैं, बल्कि एक ऐसी कहानी बयां करते हैं जो विज्ञान और लोक कथाओं के बीच झूलती है।
 
पत्थरों पर दर्ज कहानियां: हिरे बेनकल की पहाड़ी दक्षिण भारत के सबसे बड़े कब्रगाहों (नेक्रोपोलिस) में से एक है। ये डोल्मेन, जो 1000 ईसा पूर्व से 200 ईसा पूर्व के बीच, नवपाषाण युग से लौह युग तक बनाए गए, प्राचीन कब्रें हैं। प्रत्येक डोल्मेन एक छोटा-सा कमरा है, जिसके ऊपर भारी-भरकम कैपस्टोन छत की तरह रखा गया है। कुछ डोल्मेन में गोल छेद बने हैं, जो खिड़कियों जैसे दिखते हैं, मानो ये पत्थरों के घर हों। स्थानीय लोग इन्हें "मोरियर माने" यानी "बौनों के घर" कहते हैं। इन संरचनाओं को देखकर ऐसा लगता है जैसे आप किसी भूतिया शहर में चल रहे हों, लेकिन ये मृतकों की स्मृति में बनाए गए स्मारक हैं।
 
लोककथाओं में इनका जिक्र और भी रोमांचक है। कहा जाता है कि इन्हें इंसानों ने नहीं, बल्कि "मोरियर" नामक बौनों की एक विलुप्त प्रजाति ने बनाया था। ये छोटे कद के प्राणी अलौकिक शक्तियों और गजब की इंजीनियरिंग प्रतिभा के मालिक थे। कुछ डोल्मेन में बने सटीक गोल छेद देखकर स्थानीय लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। उनके लिए उस युग में ऐसी कारीगरी इंसानों के बस की बात नहीं थी।
 
एक किंवदंती यह भी है कि ये बौने आग की बारिश में खत्म हो गए, लेकिन उनके बनाए ये पत्थर आज भी उनकी मौजूदगी की गवाही देते हैं। रात के सन्नाटे में इन डोल्मेन के आसपास अजीब-सी आवाजें सुनाई देने की बातें भी प्रचलित हैं, मानो बौने अब भी अपनी रचनाओं की रखवाली कर रहे हों।
 
विज्ञान और किंवदंती का संगम: हिरे बेनकल सिर्फ लोक कथाओं का ठिकाना नहीं, बल्कि पुरातत्वविदों के लिए एक अनसुलझी पहेली है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड साइंसेज के प्रोफेसर श्रीकुमार मेनन इन बौनों की कहानियों को प्राचीन भारतीयों की सांस्कृतिक स्मृति से जोड़ते हैं। वे इन्हें इंडोनेशिया में मिले "हॉबिट" (होमो फ्लोरेसिएंसिस) जैसी छोटे कद की मानव प्रजाति से जोड़कर देखते हैं। क्या ये डोल्मेन वाकई किसी ऐसी प्रजाति ने बनाए थे, जो इतिहास के पन्नों से गायब हो चुकी है? या फिर ये प्राचीन भारतीयों की उन्नत इंजीनियरिंग का नमूना हैं, जिन्हें समय ने रहस्यमयी बना दिया?
 
दुनिया की नजरों से ओझल: हैरानी की बात है कि जहां ब्रिटेन का स्टोनहेंज हर साल लाखों पर्यटकों को खींचता है, वहीं हिरे बेनकल की ये प्राचीन रचनाएं दुनिया की नजरों से लगभग ओझल हैं। पास में स्थित हम्पी के भव्य मंदिरों की चमक में यह पहाड़ी कहीं दब-सी गई है। व्लॉगर नम्रता के "नम्रता's मंत्रा" के अनुसार, कुछ महीनों में यहां मुश्किल से 20-30 यात्री ही पहुंचते हैं। जो आते हैं, वे इस जगह की शांति और रहस्य से अभिभूत हो जाते हैं। सूरज ढलते ही जब ये पत्थर सुनहरी रोशनी में नहाते हैं, तो ऐसा लगता है मानो समय ठहर गया हो।
 
हिरे बेनकल को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिलाने की कोशिश चल रही हैं। पुरातत्वविदों और संरक्षणवादियों का मानना है कि यह भारत की सबसे अनमोल धरोहरों में से एक है। लेकिन इसके साथ एक चिंता भी जुड़ी है। अगर यह पर्यटकों के लिए खुल गया, तो क्या ये नाजुक संरचनाएं अनियंत्रित भीड़ का सामना कर पाएंगी? कई डोल्मेन पहले ही समय और प्रकृति की मार झेल चुके हैं। कुछ पत्थर टूट चुके हैं, तो कुछ पर आधुनिक पर्यटकों की "खुदाई" ने निशान छोड़ दिए हैं।एक अनूठा निमंत्रण हिरे बेनकल सिर्फ पत्थरों का ढेर नहीं, बल्कि एक ऐसी जगह है जहां इतिहास, रहस्य और प्रकृति एक-दूसरे से गले मिलते हैं।
 
इन डोल्मेन के बीच चलते हुए आप उन प्राचीन बौनों की कहानियों को महसूस कर सकते हैं, जो शायद कभी हकीकत थे या शायद लोककथाओं की देन। ये संरचनाएं हमें अपने अतीत से जोड़ती हैं और यह सवाल छोड़ जाती हैं कि क्या हम वाकई अपने इतिहास को पूरी तरह समझ पाए हैं? अगर आप रोमांच और रहस्य के शौकीन हैं, तो हिरे बेनकल की सैर आपके लिए एक अनोखा अनुभव हो सकता है। लेकिन याद रखिए, जब आप इन पत्थरों के बीच चले, तो शायद कोई "मोरियर" आपकी ओर देख रहा हो, अपनी बनाई इस दुनिया को संभालने की कोशिश में।

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