इंदौर के पहले होटल की पहली मैनेजर महिला थी

कमलेश सेन
आज के इंदौर में होटल व्यवसाय संपूर्ण प्रदेश में सर्वाधिक है। होटल हो या खानपान की दुकानें, इसकी पृष्ठभूमि जानने के लिए हमें इतिहास के पन्नों को पलटना होगा। एक समय था कि होटल में कुछ भी खाना सामाजिक दृष्टि से ठीक नहीं माना जाता था। रहने के लिए लॉज भी सीमित संख्या में थी। वैसे भोजन और खानपान की शुरुआत इंदौर में कपड़ा मार्केट, सराफा बाजार के साथ ही मोरसली गली में हो चुकी थी।
 
इंदौर नगर में आज से 100 साल पहले कोई उच्च दर्जे के होटल नहीं थे। महाराजा तुकोजीराव विदेश यात्रा से लौटकर आए तो नगर में एक आधुनिक किस्म के होटल की इच्छा जाहिर की। होटल के लिए स्थान चयन की जिम्मेदारी अधिकारियों को सौंपी गई। आखिर आज के रवीन्द्रनाथ टैगोर मार्ग पर स्थित देवी अहिल्या विश्वविद्यालय वाले स्थान का चयन किया गया। 1920-21 में होटल निर्माण का कार्य आरंभ हो गया।
 
इस स्थान पर बबूल के काफी पेड़ थे। होटल निर्माण के वक्त ये पेड़ बाधक रहे थे। उन्हें हटाने के कार्य में होलकर शासन को काफी राशि व्यय करनी पड़ी थी। इस होटल के निर्माण में महाराजा के साथ अंग्रेज अधिकारी ऑस्वाल्ड विवियन बोझेन्केट की काफी रुचि थी। इस होटल का निर्माण तत्कालीन मद्रास के इंजीनियर कदम्बी के निर्देशन में हुआ, जो राज्य के मुख्य इंजीनियर भी थे। अंग्रेज अधिकारी ऑस्वाल्ड विवियन बोझेन्केट को इंदौर नगर में कई भवनों के निर्माण का श्रेय है।
 
इस होटल की मूल योजना के अनुसार इसमें 3 विंग बनने थे। प्रत्येक विंग में 3 मंजिला भवन होना था। एक विंग की प्रथम मंजिल बनने के बाद यह भवन अधूरा रह गया। कुछ लोगों का उस समय यह मानना था कि उस समय होलकर रियासत में हुए बाबला कांड के कारण होलकर शासक काफी परेशान थे और राज्य के उच्च अधिकारी के इस कांड से निपटने के लिए क़ानूनी प्रक्रिया में उलझे होने से इस होटल के निर्माण पर पूर्ण ध्यान नहीं दिया जा सका। इस होटल की व्यय राशि बजट में 3 लाख का प्रावधान किया गया था, परंतु इसे 60 हजार में ही पूर्ण करना पड़ा था।
 
इस होटल के निर्माण में फूटी कोठी के लिए उपयोग में लाया गया पत्थर लगाया गया। फूटी कोठी से पत्थर बैलगाड़ियों में रखकर लाया गया था। होटल के पीछे एक एनेक्स मध्यभारत के दिनों में बनवाया गया था जिसमें 20 कमरे थे। मुख्य होटल में 6 कमरे थे। बैठक कक्ष, भोजन कक्ष पेंट्री एवं एक बड़ा तलघर था।
 
इस होटल का प्रथम मैनेजर महिला को नियुक्त किया गया था, जो श्रीमती एमजे गावड़े थीं जिनका पदनाम असिस्टेंस हाउसहोल्ड ऑफ़िसर था। इस होटल को यूरोपियन गेस्ट हाउस के नाम से भी जाना जाता था। इसे यूरोपियन गेस्ट हाउस में परिवर्तित कर इसे हाउस होल्ड विभाग को देखरेख के लिए सौंप दिया गया था।
 
1924 में इस गेस्ट हाउस का प्रतिदिन का किराया 15 रुपए था जिसमें भोजन, मदिरा और ठहरने का किराया शामिल था। यह होटल हाउस होल्ड डिपार्टमेंट के अंतर्गत था इसलिए इसका चार्ज श्री पुरंदरे के जिम्मे था।
 
करीब 40 वर्ष यह भवन होटल रहने के बाद यह भवन यूनिवर्सिटी को दे दिया गया और यहां शिक्षा की गतिविधियां संचालित होने लगीं। इस तरह 16 मई 1964 को विधिवत होटल विश्वविद्यालय को हस्तांतरित कर दिया गया, साथ ही उससे लगी भूमि भी यूनिवर्सिटी को दे दी गई। इस तरह होलकर राज्य में सरकारी गेस्ट हाउस फिर यूरोपियन होटल के भवन के आजादी के बाद यूनिवर्सिटी भवन बनने की दास्तां है।

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