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चीन की वुल्फ वॉरियर रणनीति के आगे झुक गए ट्रम्प

डॉ.ब्रह्मदीप अलूने
शनिवार, 30 अगस्त 2025 (16:02 IST)
कूटनीति मूल्यों और आदर्शों के इतर व्यवहारिक हो सकती है,लेकिन वह परंपरागत चुनौतियों की अनदेखी कर आगे नहीं बढ़ सकती। डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने दूसरे कार्यकाल में अमेरिकी कूटनीति और रणनीतिक हितों को उलट-पुलट करने की कोशिश की है,जिससे वैश्विक असमंजस बढ़ गया है। भारत जैसे अहम साझेदार को सीमित कर चीन के साथ अपनी कूटनीतिक पहुँच बढ़ाने का प्रयास ट्रम्प की नीति का विरोधाभासी चेहरा उजागर करता है।
 
ट्रम्प ने छह लाख चीनी विद्यार्थियों के लिए अमेरिकी विश्वविद्यालयों के दरवाज़े खोल दिए है और उन्हें अमेरिकी प्रगति का अहम हिस्सा बताया है,वहीं भारत से टैरिफ विवाद को लेकर उनका रुख बेहद कठोर रहा है। शी जिनपिंग के प्रति  ट्रम्प का आभार प्रकट करना यह दर्शाता है कि वे चीन को कड़ी चुनौती देने के बजाय उसे संतुलित करने का प्रयास कर रहे थे। इसके विपरीत भारत इस दौर में अमेरिका पर दबाव बढ़ाने के उद्देश्य से चीन की ओर विकल्प तलाशने की सोच में दिखा,लेकिन वास्तविकता यह रही कि चीन की आक्रामक रणनीति से अमेरिका ही बैकफुट पर नज़र आया है और ट्रम्प चीन से बेहतर संबंधों की कोशिशों में लगातार जुटे हुए है।
 
ट्रम्प प्रशासन ने 2017 में चीन को रणनीतिक प्रतियोगी घोषित कर एक व्यापक व्यापार युद्ध शुरू किया था। हुआवेई जैसी चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए गए,हांगकांग की स्वायत्तता को समाप्त करने के चीन के कदम पर अमेरिका ने प्रतिक्रिया दी,ताइवान के साथ संबंध मज़बूत किए और चीनी छात्रों पर वीज़ा प्रतिबंध भी कड़े किए। परंतु चीन ने इसका जवाब वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी से दिया। यह नीति पारंपरिक सॉफ्ट स्पोकन कूटनीति से अलग,अत्यधिक आक्रामक और टकरावपूर्ण शैली है,जिसका मक़सद पश्चिमी आलोचनाओं को चुनौती देना और चीन की वैश्विक विचारधारा का विस्तार करना है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने स्वयं कहा था कि चीनी राजनयिकों को अपनी गरिमा की रक्षा के लिए तलवारें खींच लेनी चाहिए। यह रणनीति चीन के लिए कारगर भी साबित हुई।
 
अमेरिकी खुफ़िया रिपोर्टों ने चेतावनी दी कि चीन 2030 तक कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) में विश्व नेतृत्व हासिल करना चाहता है। बीजिंग पारंपरिक हथियारों, साइबर युद्धक उपकरणों,अंतरिक्ष क्षमता,हाइपरसोनिक मिसाइलों और परमाणु भंडार के माध्यम से अमेरिका का सबसे सक्षम प्रतिद्वंद्वी बन चुका है। चीन ने बौद्धिक संपदा की चोरी और विश्वविद्यालयों में जासूसी नेटवर्क खड़े कर अपनी तकनीकी और औद्योगिक शक्ति को तेज़ी से आगे बढ़ाया है। अमेरिकी कैंपस,  जहां लाखों चीनी छात्र अध्ययनरत हैं,चीन के लिए संवेदनशील शोध व नवाचार हथियाने का माध्यम बन गए है। पिछले एक दशक में,बड़ी संख्या में ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें चीनी छात्र, शोधकर्ता और प्रोफेसर चीनी सरकार के लिए जासूसी करते पाए गए या चीनी सेना,पीपुल्स लिबरेशन आर्मी से जुड़े पाए गए। चीन ने अपने उद्योग और सैन्य शक्ति को बढ़ाने के लिए अमेरिकी तकनीक और अनुसंधान का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया है।
 
ऐसी चुनौतियों के बाद भी ट्रम्प चीनी विद्यार्थियों को तरजीह दे रहे है इसका कारण साफ है की वे चीन ने वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी से गहरे दबाव में है। चीन ने वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी,बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव और अफ्रीका,लैटिन अमेरिका में गहरी पैठ के ज़रिए अमेरिकी प्रभाव को चुनौती दी है। दक्षिण चीन सागर और ताइवान पर उसने अमेरिकी चेतावनियों को नज़रअंदाज़ किया है। रूस-यूक्रेन युद्ध में चीन ने रूस का साथ देकर अमेरिका की यूरोपीय रणनीति को भी कमजोर किया है।  ऐसा लगता है कि इससे अमेरिका आर्थिक,तकनीकी और भू-राजनीतिक तीनों मोर्चों पर चीन के जवाबों से उलझता चला गया है। ट्रम्प इससे सही तरीके से निपटने के लिए अपने साझेदारों को मजबूत कर सकते थे लेकिन वे उन्हें नाराज करने की गलती कर रहे है।
 
अंततः,ट्रम्प की अमेरिका फर्स्ट नीति चीन के प्रति सहयोगात्मक रुख से उलझन में नजर आ रही है। भारत और जापान जैसे संभावित साझेदारों को नाराज़ करके उन्होंने स्वयं को और भी सीमित कर लिया है। बड़ा सवाल यही है कि चीन से सहयोग बढ़ाकर क्या अमेरिका अपने अमेरिका फर्स्ट एजेंडे को कैसे लागू कर  पायेगा। असल में चीन की वुल्फ वॉरियर रणनीति के सामने ट्रम्प नतमस्तक  हो गए है।

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