बाल कविता : राह तक रही होगी अम्मा

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
पूरब के पर्वत से झांका,
लाल-लाल सूरज का गोला।
मैं बिस्तर से उठ बैठा हूं,
सुबह हो गई, मुन्ना बोला।
 
मैं भी उठकर बैठ गई हूं,
मुनियां चिल्लाई भीतर से।
मुन्ना भैया, चलो घूमने,
जल्दी निकलो बाहर घर से।
 
बाहर ठंडी हवा मिलेगी,
फूल मिलेंगे मुस्काते से।
डाल-डाल पर पंछी होंगे,
चहंग-चहंग गाना गाते से।
 
पशु शाला में गाय मिलेगी,
बछड़े के संग लाड़ लड़ाते।
वहीं मिलेगी काकी हमको,
दुहती दूध गीत गा गाके।
 
दौड़ लगाकर कसरत करके,
जब हम घर वापस आएंगे।
राह तक रही होगी अम्मा,
उसको चौखट पर पाएंगे।

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