गर्मी के दिनों पर फनी कविता: सजे अखाड़े गरमी के...

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
भोर हुई, दिन चढ़ा बांस भर,
बजे नगाड़े गरमी के।
गरमी है गरमी है की रट,
दादा खूब लगाते।
सभी लोग उनकी हां में हां,
मुंडी हिला मिलाते।
हुई दोपहर छत के ऊपर,
शेर दहाड़े गरमी के।
सत्तू घोल-घोल कर दादी,
एक गंज भर लातीं।
भर-भर प्लेट सभी लोगों को
चम्मच से खिलवातीं।
आंगन में आवारा लपटें,
पढ़ें पहाड़े गरमी के।
बड़ी दूर से दौड़ा आया,
एक हवा का गोला।
उचक-उचक कर डोर वैल का,
उसने बटन टटोला।
दरवाजे से लड़ीं हवाएं,
सजे अखाड़े गरमी के।

Poems about summer
 

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