हिन्दी कविता: रेलगाड़ी..रेलगाड़ी

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Railgadi Poem
 
-पुरुषोत्तम व्यास

बड़ा हो गया फिर भी
रेल की सीटी बजते 
मन डोल-डोल जाता
 
रेलगाड़ी देखना
अपनापन-सा लगता
देख उसे
मन ही मन मुस्कुराता
 
रेलगाड़ी के चलाने वाले भैया
बड़े ही नसीबवान होते
बिना टिकट ही
वन-उपवन
गांव-नगर घूम-घूम आते
 
ऊपर से वेतन भी पाते
 
नहीं होती चाह सबकी पूरी
पर उनको देख 
मैं बहुत खुश हो जाता हूं।

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