सर्दी के दिनों पर कविता : छींक रहे पापा जुकाम से

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
शीत लहर में आंगन वाले,
बड़ के पत्ते हुए तर बतर।
 
चारों तरफ धुंध फैली है,
नहीं कामवाली है आई।
 
और दूध वाले भैया ने,
नहीं डोर की बैल बजाई।
 
झाड़ू पौंछा कर मम्मी ने,
साफ कर लिया है खुद ही घर।
 
दादा दादी को दीदी ने,
बिना दूध की चाय पिलाई।
 
कन टोपा और स्वेटर मेरा,
मामी अलमारी से लाई।
 
मामाजी अब तक सोए हैं,
उनको बस से जाना था घर।
 
बर्फ कणों वाला यह मौसम,
मुझको तो है बहुत सुहाता।
 
दौड़ लगा लूं किसी पार्क में,
ऐसा मेरे मन में आता।
 
बिना इजाजत पापाजी के,
यह कुछ भी न कर पाता पर।
 
विद्यालय जा पाएं कैसे,
यही सोचते बैठे हैं हम।
 
इंतजार है किसी तरह से,
शीत लहर कुछ हो जाए कम।
 
छींक रहे पापा जुकाम से,
उनको है हल्का-हल्का ज्वर।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

विमान निर्माता बोइंग है ऊंची दुकान, फीके पकवान

बारिश के मौसम पर सबसे खूबसूरत 10 लाइन

क्या कोलेस्ट्रॉल में आलू खाना सही है? जानिए आलू खाना कब नुकसानदायक है?

इन 5 लोगों को नहीं खाना चाहिए चॉकलेट, सेहत पर पड़ सकता है बुरा असर

कैसे होती है विश्व युद्ध की शुरुआत, जानिए क्या हर देश का युद्ध में हिस्सा लेना है जरूरी

सभी देखें

नवीनतम

कद्दू के बीज ज्यादा खाना पड़ सकता है भारी, जानिए कितनी मात्रा में खाने से होता है फायदा

कैसे बनाते हैं भगवान जगन्नाथ का खिचड़ी भोग, यहां पढ़ें सात्विक रेसिपी

मोबाइल चार्जर का प्लग ऑफ नहीं करने से तेजी से भागता है आपका मीटर, करोड़ों की बिजली हो रही है बर्बाद

बाल कविता : चंद्र ग्रहण

क्या बारिश में दही खाने से होता है नुकसान, जानिए सच्चाई

अगला लेख