पश्चिम बंगाल में कोरोना संक्रमण का रिकॉर्ड बनने के बाद सोमवार से शुरू सालाना गंगासागर मेला स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए चिंता पैदा कर रहा है कि कहीं यह मेला तेजी से बढ़ते कोरोना संक्रमण की तस्वीर को और भयावह ना बना दे।
राज्य में संक्रमण के रोजाना बनते नए रिकॉर्ड को देखते हुए तमाम हलकों में यही सवाल पूछा जा रहा है। इसकी ठोस वजह भी है। अब तक मेले के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से यहां पहुंचने वाले 38 श्रद्धालु कोरोना संक्रमित मिले हैं। फिलहाल 34 फीसदी पाजिटिविटी रेट के साथ बंगाल पूरे देश में दूसरे नंबर पर है। खासकर राजधानी कोलकाता में तो रोजाना सात हजार से नए मामले सामने आ रहे हैं। महानगर में पाजिटिविटी रेट करीब 42 फीसदी पहुंच गई है।
रविवार को बंगाल ने 24 हजार से ज्यादा नए मामलों के साथ संक्रमण का नया रिकार्ड बना दिया। यहां पहली व दूसरी लहर के दौरान भी एक दिन में 24 हजार मामले सामने नहीं आए थे। इससे पहले दूसरी लहर के दौरान बीते साल 14 मई को सबसे ज्यादा करीब 21 हजार मामले सामने आए थे। सरकार ने 15 जनवरी तक कई पाबंदियां लागू की है। बावजूद इसके संक्रमण बहुत तेज गति से बढ़ रहा है। विभिन्न संगठनों ने गंगासागर मेले पर रोक लगाने की मांग में कलकत्ता हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। लेकिन सरकार ने दलील दी कि मेले के आयोजन में कोरोना प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन किया जाएगा और तमाम एहतियाती उपाय बरते जाएंगे।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने कुछ शर्तों के साथ मेले के आयोजन को हरी झंडी दिखा दी है। अदालत ने सरकार से मेला परिसर को 24 घंटे के भीतर अधिसूचित क्षेत्र घोषित करने के साथ ही मेले की निगरानी के लिए तीन-सदस्यीय समिति बनाने का निर्देश दिया है। यह समिति निगरानी रखेगी कि मेले में राज्य सरकार की ओर से लागू पाबंदियों का कड़ाई से पालन हो रहा है या नहीं। इसमें किसी कोताही या लापरवाही की स्थिति में समिति को मेला बंद करने की सिफारिश करने का भी अधिकार है।
पांच लाख लोगों के जुटने की संभावना
सरकार के अनुमान के मुताबिक 16 जनवरी तक चलने वाले इस मेले में इस साल पांच लाख से ज्यादा तीर्थयात्रियों के पहुंचने की संभावना है। इस द्वीप पर गंगा नदी बंगाल की खाड़ी में मिलती है। कहा जाता है कि सारे तीरथ बार-बार, गंगासागर एक बार। हर साल देश-विदेश से लाखों लोग इस मेले में पहुंचते हैं। संगम में स्नान के बाद लोग वहां बने कपिल मुनि के मंदिर में दर्शन करते हैं। सोमवार को मेले के औपचारिक उद्घाटन के पहले से ही सागर द्वीप में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालुओं का पहुंचना शुरू हो गया।
सरकार ने तमाम लोगों की कोरोना जांच करने का दावा तो किया है। लेकिन काकद्वीप स्टेशन, नामखाना स्टेशन और बस स्टैंड पर कोरोना जांच के लिए जो तीन केंद्र बनाए गए हैं वहां 22 स्वास्थ्यकर्मी कोरोना का चपेट में आ गए हैं। हालत यह है कि खुद संक्रमित होने के बावजूद उनको कोरोना की जांच का कामकरना पड़ रहा है।
मौजूदा परिस्थिति में रोजाना महज आठ सौ लोगों की ही जांच संभव हो रही है। जबकि रोजाना गंगासागर जाने वालों की तादाद एक लाख के करीब है। 13 जनवरी से मेले में करीब पांच लाख लोगों के जुटने की संभावना है। यह आंकड़ा सरकारी है। लेकिन गैर-सरकारी संगठनों के मुताबिक, मेले में पहुंचने वालों की तादाद इससे ज्यादा होने की संभावना है।
सरकार ने मेला परिसर में समुद्र के किनारे लोहे के बैरिकेड लगाए हैं और एक साथ पचास श्रद्धालुओं को ही संगम में स्नान की अनुमति देने की बात कही है। लेकिन मेले के क्षेत्रफल और वहां जुटने वाली लाखों की भीड़ को ध्यान में रखते हुए यह व्यवहारिक नहीं लगता। मेले में टीके का इंतजाम तो है ही, कोरोना संक्रमितों को कोलकाता ले आने के लिए एक एयर एंबुलेंस और तीन वाटर एंबुलेंस भी वहां तैनात हैं।
मेले में कई भाषाओं में प्रचार का काम चल रहा है। इसके जरिए दर्शनार्थियों को कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करने की हिदायत दी जा रही है। लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि मकर संक्रांति के मौके पर संगम में स्नान करने वालों की तादाद पांच लाख से ज्यादा होने का अनुमान है। इस भीड़ को संभालना मुश्किल है। ऐसे में परिसर में भगदड़ की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों में चिंता
कलकत्ता हाईकोर्ट की शर्तों और राज्य सरकार के दावों के बावजूद स्वास्थ्य विशेषज्ञों और राजनीतिक दलों ने मेले के आयोजन के कारण संक्रमण तेजी से बढ़ने का अंदेशा जताया है। उनका कहना है कि मेला खत्म होने के बाद कोरोना का ग्राफ उसी तेजी से बढ़ सकता है जिस तरह बीते साल हरिद्वार में आयोजित महाकुंभ के बाद बढ़ा था। महामारी विशेषज्ञ डा। कुणाल सरकार कहते हैं, "संक्रमण की मौजूदा परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए इस साल गंगासागर मेले का आयोजन रद्द कर देना चाहिए था। मेले से संक्रमण कई गुना तेजी से बढ़ने का अंदेशा है।”
मेले पर रोक लगाने की मांग में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करने वाले वेस्ट बंगाल डॉक्टर्स फोरम के सचिव डॉ। कौशिक चाकी कहते हैं, "यह वोट बैंक की राजनीति है। एक ओर सरकार सोशल डिस्टेंसिंग पर जोर दे रही है और दूसरी ओर मेले में पांच लाख लोगों के पहुंचने की बात कह रही है। बीते साल कुंभ मेला के बाद उपजी परिस्थिति किसी से छिपी नहीं है। कहीं इस मेले के बाद भी हालात वैसे ही न बन जाएं।” उनका सवाल है कि आखिर सागरद्वीप जैसी छोटी जगह में पांच लाख लोगों की भीड़ में सोशल डिस्टेंसिंग कैसे संभव है?
राजनीतिक दल भी चिंतित
बंगाल में सीपीएम और बीजेपी ने भी मेले के आयोजन पर गहरी चिंता जताई है। सीपीएम नेता रबीन देव कहते हैं, "मेले के बाद कोरोना संक्रमण और गंभीर होने का अंदेशा है। यह वोट बैंक की राजनीति है।” प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष सुकांत मजूमदार कहते हैं, "हम अदालत के फैसले का सम्मान करते हैं। लेकिन मेला परिसर में पांच लाख लोगों को सुरक्षित रखना संभव नहीं है। आखिर तीन सदस्यीय समिति इतनी भीड़ की निगरानी कैसे कर सकती है?” खुद सुकांत भी कोरोना संक्रमित होकर रविवार देर रात से अस्पताल में भर्ती हैं।
भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष दलील देते हैं कि अगर एक साल गंगासागर मेला नहीं भी होता तो कुछ नहीं बिगड़ता। लोगों की सुरक्षा ज्यादा जरूरी है। पहले से ही करीब डेढ़ हजार डाक्टर और स्वास्थ्य कर्मचारी कोरोना की चपेट में हैं। लेकिन सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने यह कहते हुए उन पर जवाबी हमला किया है कि बीते साल कुंभ मेले के आयोजन के समय पार्टी ने चुप्पी क्यों साध रखी थी।