जर्मनी का मुस्लिम समुदाय मस्जिदों को बम से उड़ाने जैसी धमकियों से परेशान है। अब देश के मुस्लिम संगठन सरकार से मस्जिदों को सुरक्षा मुहैया कराने की अपील कर रहे हैं। लेकिन जर्मन सरकार इस पक्ष में नहीं दिखती।
जर्मनी में मस्जिदों को बम से उड़ाने जैसी धमकियों ने मुसलमान समुदाय को परेशान कर दिया है। जुलाई 2019 में जर्मनी के इजरलोन, म्यूनिख और कोलोन की मुख्य मुस्जिदों को बम से उड़ाने की धमकियां मिली थीं। हाल में कुछ इसी तरह की धमकियां डुइसबुर्ग, मनहाइम और मांइस शहर की मस्जिदों को भी मिली हैं।
पेशे से वकील और जर्मनी की संस्था कॉर्डिनेशन काउंसिल ऑफ मुस्लिम की प्रवक्ता नुरहत सोयकान इन धमकियों के बारे में कहती हैं, "अब बस, बहुत हो चुका है"। इस संस्था को 2007 में गठित किया गया था। इसमें जर्मनी के चार प्रमुख इस्लामिक संगठन, पहला द सेंट्रल काउंसिल ऑफ मुस्लिम इन जर्मनी, दूसरा द टर्किश इस्लामिक यूनियन फॉर रिलीजियस अफेयर (डीआईटीआईबी), तीसरा इस्लामिक काउंसिल फॉर द फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी और द एसोसिएशन ऑफ इस्लामिक कल्चरल सेंटर्स शामिल हैं।
सोयकान ने जर्मन प्रशासन से अपनी अपील में कहा है, "मुसलमान बेहद ही परेशान हैं। ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी है कि वह ऐसे कदम उठाए जिससे लोगों में दोबारा विश्वास पैदा हो।" उन्होंने कहा कि जर्मन प्रशासन का फर्ज यह सुनिश्चित करना है कि सभी लोग बिना किसी डर और खतरे के अपने धर्म का पालन कर सकें।
मुस्लिमों के खिलाफ बढ़ती भावनाएं
जर्मनी में सेंट्रल काउंसिल ऑफ मुस्लिम के चेयरमैन एमान मजीक ने भी इस बात पर अपनी सहमति जताई है। उन्होंने कहा कि वे भी मुस्लिम समुदाय पर हिंसा और ऐसी धमकियों को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "इस्लामोफोबिया और मुस्लिमफोबिया तेजी से बढ़ रहा है। हर हफ्ते मस्जिदों पर किसी ना किसी तरह के हमले किए जा रहे हैं।" मजीक यह भी मानते हैं कि आम लोगों पर भी हमले बढ़ रहे हैं।
उन्होंने कहा, "साल 2017 में इस्लाम के डर के चलते मुस्लिमों और मस्जिदों पर सबसे पहले हमले हुए। उन्होंने कहा कि अब हमले काफी हिंसात्मक हो गए हैं लेकिन कई मामलों में पीड़ित व्यक्ति इसकी शिकायत नहीं करता है। मजीद के मुताबिक लोगों में जर्मनी की न्याय व्यवस्था की कम जानकारी और जर्मन पुलिस और न्यायपालिका में प्रशिक्षण की कमी के चलते कई मामले नजर में ही नहीं आ पाते। उनके अनुसार यह समस्या काफी जटिल है।
जर्मनी के गृह मंत्रालय के आंकड़ों पर गौर करें तो मजीद का तर्क काफी सटीक लगता है। मंत्रालय के मुताबिक, 2017 में इस्लाम से घृणा के करीब 1075 अपराध दर्ज हुए, वहीं 239 हमले मस्जिदों पर किए गए। हालांकि 2018 का पूरा डाटा फिलहाल उपलब्ध नहीं है लेकिन शुरुआती आंकड़े बताते हैं कि 2017 के मुकाबले 2018 में अधिक लोग हमलों का शिकार हुए।
जर्मनी की लेफ्ट पार्टी के अनुरोध पर पेश किए गए आंकड़ों में बताया गया है कि 2018 में जनवरी से सितंबर के दौरान 40 लोग इस्लामोफोबिया का शिकार हुए। हालांकि इसी अवधि में 2017 में यह संख्या 27 थी। जर्मनी के फ्रीडरिश एबर्ट फाउंडेशन की स्टडी के मुताबिक जर्मनी में हर पांच में से एक व्यक्ति मुस्लिमों को लेकर नकारात्मक विचार रखता है।
मस्जिदों में कम सुरक्षा
कुछ वक्त पहले मजीक ने इन आंकड़ों के आधार पर कहा था कि इसमें बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं है कि अब मुस्लिम समुदाय संभावित खतरों के चलते सेमीनार आयोजित करने लगे हैं। इन सेमीनार में सुरक्षा दुरस्त करने के तरीके, पुलिस के साथ बेहतर समन्वय और लोगों में इस्लामोफोबिक हमले की रिपोर्ट करने जैसी बातें शामिल थीं।
अब जब मुस्लिमों के खिलाफ हमले बढ़ गए हैं इसके बावजूद मस्जिदों को अब तक कोई स्थायी पुलिस सुरक्षा नहीं दी गई है। जर्मनी के गृहमंत्री होर्स्ट जेहोफर कहते हैं, "धार्मिक स्थलों को आंतकवादियों की ओर से निशाना बनाया जा सकता है। अगर ऐसे खतरे नजर आएंगे तो ऐसी जगहों को निश्चित ही अतिरिक्त सुरक्षा मिलेगी।"
मस्जिदों पर बढ़ते खतरों को देखते हुए सोयकान, जर्मन गृह मंत्री के पक्ष से अंसतुष्ट हैं। उनका कहना है, "मौजूदा खतरे के स्तर को नकारा जा रहा है और मस्जिदों की सुरक्षा को लेकर हमारी बात पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।" हाल में मस्जिदों में बम होने के सारे मामले गलत साबित हुए हैं। इस पर सोकयान कहती हैं, "आज जर्मनी में मुसलमान बिना किसी सुरक्षा के मस्जिदों में जा रहे हैं।"