नेट जीरो: भारतीय रेल लक्ष्य से चूकी, फिर भी बड़ी उपलब्धि

DW
गुरुवार, 11 जनवरी 2024 (07:37 IST)
मनीष चंद्र मिश्रा
भारतीय रेलवे ने 90 फीसद से ज्यादा ब्रॉड गेज रूट का इलेक्ट्रिफिकेशन कर लिया है। 2030 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए रेलवे, इलेक्ट्रिफिकेशन के अलावा भी कई तरह की कोशिशें कर रही है।
 
साल 2024 की शुरुआत में भारतीय रेलवे ने ट्रैक के इलेक्ट्रिफिकेशन को लेकर एक आंकड़ा जारी किया। अब भारतीय रेल नेटवर्क के करीब 94 फीसदी, यानी 61,000 से ज्यादा किलोमीटर बड़ी लाइन पर ट्रेनें बिजली से चल सकेंगी। हालांकि, रेलवे ने 2023 के आखिर तक 100 फीसद इलेक्ट्रिफिकेशन का लक्ष्य रखा था।
 
रेलवे के पास 65,556 किलोमीटर का ब्रॉड गेज, या बड़ी लाइन रूट है। पिछले साल भारतीय रेल ने लगभग छह हजार किलोमीटर ट्रैक का इलेक्ट्रिफिकेशन किया है। रेलवे की यह कामयाबी पर्यावरण के अनुकूल है और इससे रेलवे के खर्च में भी कमी आएगी।
 
भारतीय रेलवे साल 2030 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना चाहता है। रेलवे की एक रिपोर्ट 'बिजनेस एज यूजुअल' मोड के मुताबिक, 2029-30 तक कार्बन उत्सर्जन लगभग छह करोड़ टन रहने का अनुमान है। इसे कम करने के लिए रेलवे ऑपरेशन में कई सुधार किए गए हैं।
 
नेट जीरो का लक्ष्य पाने के लिए रेलवे की कोशिश सिर्फ ट्रैक के इलेक्ट्रिफिकेशन तक सीमित नहीं है। इसके लिए रेलवे ने कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) और यूनाइटेड स्टेट एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) के साथ समझौते किए हैं। पिछले साल रेलवे ने जर्मनी की इंजीनियरिंग कंपनी सीमेंस को 1,200 इलेक्ट्रिक ट्रेन इंजन बनाने के लिए तीन अरब यूरो का ठेका दिया था।
 
उत्सर्जन घटाने में कितनी कामयाबी मिली
ट्रैक पर ट्रेन दौड़ाने के अलावा भारतीय रेल के दूसरे कामों, जैसे रेलवे स्टेशन का कामकाज, रेल फैक्ट्री और वर्कशॉप में भी ऊर्जा की खपत होती है। बीते कई साल से इन चीजों में भी कार्बन उत्सर्जन घटाने की कोशिश हो रही है। इन कोशिशों को रफ्तार देने के लिए पहली बार साल 2016 में रेलवे ने कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) के साथ एक समझौता किया था।
 
रेलवे ने 2016 के बाद फैक्ट्री और वर्कशॉप में 210 लाख किलोवॉट घंटा ऊर्जा बचाई। इससे न सिर्फ 16 करोड़ रुपये की बचत हुई, बल्कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भी लगभग 18,000 टन कार्बन डाइऑक्साइड की कमी आई। इस दौरान लगभग 40 स्टेशनों ने हरित प्रमाणपत्र हासिल किया है और सालाना दो करोड़ किलोवॉट घंटा से ज्यादा ऊर्जा और तीन अरब लीटर पानी की बचत की गई।
 
पानी की बचत के लिए रेलवे ने ट्रेन में दिए जाने वाले चादर-तौलियों की धुलाई, ट्रेन की सफाई जैसे कामों में नई तकनीक का इस्तेमाल किया है। रेलवे के पास मौजूद प्राशासनिक भवनों, अस्पतालों, स्कूलों और कॉलोनियों समेत 40 इमारतों को ग्रीन सर्टिफिकेशन मिला है।
 
ग्रीन रेलवे बनाने का लक्ष्य
रेलवे ने इन कोशिशों में तेजी लाने के लिए तीसरी बार तीन साल के लिए एमओयू साइन किया है। रेलवे बोर्ड की अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जया वर्मा सिन्हा इस एमओयू को लेकर कहती हैं कि भारतीय रेल की 'योजना, डिजाइन, विकास और संचालन' में ग्रीन शब्द को मौलिक रूप से शामिल किया गया है।
 
सीआईआई की उप महानिदेशक सीमा अरोड़ा ने अपने बयान में कहा कि इस करार के तहत रेलवे में अत्याधुनिक समाधानों को लागू करने की कोशिश होगी, जिससे पर्यावरण की दृष्टि से अधिक जिम्मेदार रेलवे नेटवर्क बनाया जा सके।
 
भारतीय रेल, यूएसएआईडी की मदद से डीजल, कोयला जैसे आयातित ईंधनों पर निर्भरता कम करने की भी कोशिश करेगी। नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों को लगाने से देश में अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकी के प्रोत्साहन में मदद मिलेगी। इससे स्थानीय ईकोसिस्टम के विकास में मदद मिलेगी और स्थानीय उत्पाद विकास को बढ़ावा मिलेगा। इस समझौते के तहत सेवाओं के लिए यूएसएआईडी, एसएआरईपी पहल के तहत तकनीकी सहायता प्रदान करेगा।
 
बिजली बनाने से लेकर बचाने तक की कोशिशें
2019-20 में बिजली की मांग 2,100 करोड़ यूनिट थी। 100 प्रतिशत ट्रैक पर इलेक्ट्रिफिकेशन होने से 2029-30 तक बिजली की मांग बढ़कर सात करोड़ यूनिट से ज्यादा हो जाएगी। इसे हासिल करने के लिए रेलवे, बिजली उत्पादन के साथ बिजली बचाने की भी कोशिश कर रहा है। रेलवे स्टेशनों और भवनों की छतों पर सौर पैनल लगाए गए हैं। बीते कुछ वर्षों में रेलवे ने ग्रीन बिल्डिंग डिजाइन को अपनाया है और ग्रीन रेलवे स्टेशन रेटिंग प्रणाली शुरू की है। सभी लाइटों को एलईडी लाइटों से बदला गया है और ज्यादा ऊर्जा खपत वाले दूसरे उपकरणों को भी बदला गया है।
 
2029-30 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापना की अपेक्षित आवश्यकता लगभग 30 गीगावॉट होगी। भारतीय रेलवे ने अगस्त 2022 तक 142 मेगावॉट सौर क्षमता और 103।4 मेगावाट पवन ऊर्जा स्थापित की है। भारतीय रेल देश भर में डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (डीएफसी) स्थापित कर रही है। इस परियोजना के पहले चरण में 30 साल की अवधि के दौरान उत्सर्जन में लगभग 45।7 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड की कमी आने का अनुमान है।

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