मंगल ग्रह पर गहराई में ग्लेशियर देखे गए हैं। इनसे वैज्ञानिकों को इस बात का अंदाजा लगाने में सहूलियत होगी कि लाल ग्रह पर कितना पानी हो सकता है।
बहुत पहले से ही इस बात की जानकारी है कि मंगल ग्रह पर बर्फ मौजूद है। लेकिन यह कहां और कितनी गहराई पर मौजूद है इसके बारे में जानकारी रिसर्चरों के लिए बहुत काम की साबित हो सकती है। ग्लेशियर की मौजूदगी के बारे में अमेरिकी विज्ञान पत्रिका साइंस ने खबर दी है।
भूमि में कटाव के कारण आठ ऐसी जगहें दिखाई पड़ी हैं जहां बर्फ मौजूद है। साइंस की रिपोर्ट में कहा गया है कि कई जगह पर तो यह सतह से महज एक मीटर नीचे ही है लेकिन दूसरी जगहों पर यह 100 मीटर की गहराई तक भी मौजूद है। जमीन के भीतर मौजूद चट्टान "विशुद्ध बर्फ" जैसे दिख रहे हैं। साइंस की यह रिपोर्ट 2005 में मार्स की टोह लेने भेजे गए ऑर्बिटर से लिए गए आंकड़ों पर आधारित है।
अमेरिका में एरिजोना के जियोलॉजिकल सर्वे से जुड़े भूवैज्ञानिक कॉलिन डुंडास का कहना है, "इस तरह की बर्फ जितना पहले सोचा गया था उससे कहीं ज्यादा दूर दूर तक फैली है।" बर्फ में पट्टियां हैं और इनके अलग अलग रंगों से पता चलता है कि यह अलग अलग समय में परत दर परत जमा हुए हैं।
वैज्ञानिक मान रहे हैं कि बर्फ का निर्माण तुलनात्मक रूप से जल्दी ही हुआ है। क्योंकि इस जगह की सतह चिकनी है और उसमें गड्ढे नहीं दिख रहे हैं। ग्रहों पर अकसर देखा जाता है कि लंबे समय के दौर में खगोलीय कचरा गिरता रहता है जिससे सतह उबड़ खाबड़ और गड्ढों वाली बन जाती है।
बर्फ के ये चट्टान ध्रुवों के करीब हैं जो मंगल ग्रह पर सर्दी के दौरान गहरे अंधकार में डूब जाते हैं और इंसानों के लिए लंबे समय तक वहां शिविर बना कर रह पाना संभव नहीं होगा। हालांकि इन ग्लेशियरों का कुछ हिस्सा अगर वैज्ञानिक खोद सके तो वे मंगल ग्रह की जलवायु के और वहां जीवन की संभावना के बारे में काफी जानकारी जुटा सकेंगे।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा मंगल ग्रह पर अपना पहला मानव खोजी दल 2030 में भेजने की तैयारी कर रही है।