अयोध्या में पिछले दिनों हुई धर्म सभा में बड़ी संख्या में नौजवान मौजूद थे और आरएसएस नेता बार-बार इस बात पर जोर दे रहे थे कि देश का नौजवान मंदिर के लिए 'कुछ भी कर सकता है।'
इन नेताओं की इस बात में जोर दो बातों पर था- एक तो ये कि बड़ी संख्या में नौजवान आरएसएस के इस अभियान के समर्थन में आए हैं और दूसरा ये कि इसके लिए वो अपना सब कुछ छोड़ सकते हैं। धर्म सभा में नौजवान बड़ी संख्या में आए थे, इसमें कोई दो राय नहीं और समूह में चल रहे नौजवानों का जोश उनसे कुछ भी कराने का संकेत न दे रहा हो, ऐसा संभव नहीं।
लेकिन, सबसे ज्यादा हैरान करने वाली मौजूदगी कुछ ऐसे नौजवानों की रही जो कि अच्छे करियर और अच्छे भविष्य की गारंटी छोड़कर भी मंदिर निर्माण में अपना योगदान देने के लिए लालायित दिख रहे थे। बस्ती के रमेंद्र प्रताप सिंह अपने करीब सौ साथियों के साथ मोटरसाइकिल से अयोध्या आए थे। मोटरसाइकिल उन लोगों ने अयोध्या से लगभग दस किलोमीटर दूर अपने किसी जानने वाले के घर पर खड़ी कर दी थी और फिर वहां से पैदल ही रविवार की सुबह चल पड़े थे।
गले में केसरिया रंग का रामनामी दुपट्टा डाले और हाथ में भगवा झंडा लिए इन युवकों ने धर्म सभा में संतों और अन्य वक्ताओं का भी जमकर जोश बढ़ाया। रमेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि उनका मुंबई में ट्रांसपोर्ट का पुश्तैनी व्यवसाय है और उनके साथ आए हुए सभी लड़के या तो अभी पढ़ाई कर रहे हैं या फिर कोई कारोबार। रमेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं, "मंदिर बनाने के लिए मुझे अपना व्यवसाय भी छोड़ देना पड़े तो मुझे गम नहीं होगा।''
रमेंद्र के साथ ही उनके पड़ोसी दिनेश सिंह कहते हैं कि वो एक सरकारी कॉलेज से बीफार्मा की पढ़ाई कर रहे हैं लेकिन पिछले एक हफ्ते से अपने गांव के आस-पास के लोगों को धर्म सभा में चलने के लिए प्रेरित कर रहे थे। दिनेश के मुताबिक गांव से ज्यादा लोग तो नहीं आए, फिर भी हम जब घर से चले तो लगभग चालीस मोटरसाइकिलों में सौ के आस-पास युवक इकट्ठा हो गए थे।
सबसे हैरान करनी वाली मुलाकात सेना में मेजर के पद पर कार्य कर रहे एक नौजवान व्यक्ति से हुई। हाथ में माला जपते हुए संतों का भाषण बड़ी गंभीरता से सुन रहे थे। बीच-बीच में जोशीला अंदाज उनके हाव-भाव में दिख रहा था लेकिन नारेबाजी या फिर इस तरह का कोई और काम नहीं कर रहे थे। बड़ी मुश्किल में बात करने के लिए तैयार दिखे और फिर उन्होंने बताया कि वो सेना में अधिकारी हैं और छुट्टी लेकर पिछले तीन दिनों से अयोध्या में ही डटे हैं।
नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने कहा, "मेरा किसी राजनीतिक पार्टी की ओर तो झुकाव नहीं है लेकिन मंदिर निर्माण के लिए यदि ये लोग पहल कर रहे हैं तो मैं तन-मन-धन से इनका साथ देने को तैयार हूं। मेरी उम्र 35 साल की है और मैंने शादी नहीं की है। घर वाले शादी करना चाहते हैं लेकिन मैं आजीवन भजन करना और भगवान राम के चरणों में रहना चाहता हूं।''
न सिर्फ युवक, बल्कि बड़ी संख्या में युवतियां भी धर्म सभा में मौजूद थीं जो या तो अभी कॉलेज में पढ़ाई कर रही थीं या फिर अच्छी-खासी नौकरी। इन सभी लोगों का यही कहना था कि राम लला के दर्शन करने के बाद उनकी स्थिति देखकर बड़ा कष्ट हुआ और वो चाहते हैं कि जल्द से जल्द मंदिर का निर्माण हो।
आखिर ऐसा क्या है कि ये युवा सबकुछ छोड़कर मंदिर निर्माण के लिए इतने समर्पित दिख रहे हैं, इस सवाल के जवाब में वीएचपी के प्रदेश प्रवक्ता शरद शर्मा कहते हैं, "देखिए, युवा के भीतर जोश भी होता है तो संवेदनशीलता भी सबसे ज्यादा होती है। आस्थावान परिवार के युवा ये देखकर हैरान हैं कि भगवान राम की जन्मभूमि में उनके लिए एक मंदिर की जगह नहीं मिल रही है। इसीलिए अब युवा कुछ भी करने को तैयार हो चला है।''
लेकिन वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान कहते हैं कि दो-चार ऐसे युवाओं की मौजूदगी से जरूरी नहीं कि देश का हर युवा यही चाहता है। वो कहते हैं, "बड़ी संख्या आपको ऐसे युवाओं की ही दिखेगी जिनके पास कोई काम-धाम नहीं है या फिर ऐसे युवा जिनके परिवार के बड़े सदस्य राजनीति में हैं या फिर वीएचपी से जुड़े हुए हैं। यही लोग अपने साथ तमाम दूसरे युवकों को भी लाए होंगे। हां, कुछ हाईप्रोफाइल युवा भी भावनाओं में बहकर आ गए होंगे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन ये पूरे देश के या प्रदेश के युवाओं की भावना का द्योतक है, ऐसा नहीं है।''
वहीं इसका एक अलग पहलू अयोध्या के स्थानीय युवाओं में दिखा। हनुमानगढ़ी का दर्शन करने आए सर्वेश अग्रहरि ने बताया कि वो अवध विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई कर रहे हैं। धर्म सभा में जाएंगे या नहीं, इस सवाल के जवाब में सर्वेश का कहना था, "हमारे पास इतना समय नहीं है। पढ़ाई के बाद जो समय बचता है दुकान में बिताता हूं। हमारी किराने की दुकान है जिसे मेरे पिता और बड़े भाई चलाते हैं। राम लला और उनके नाम पर अयोध्या में जितनी राजनीति हुई है उससे हम लोग यहां आजिज आ चुके हैं।''
सर्वेश की तरह ही अयोध्या के दूसरे युवकों की भी यही सोच है। ये सभी लोग ऐसे हैं जो अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद पैदा हुए हैं लेकिन उसके बाद की घटनाओं और दंगों के बारे में अपने बुजुर्गों से सुना है।
मुगलपुरा के रहने वाले कुछ मुस्लिम युवकों का तो यहां तक कहना था कि कोर्ट से निर्णय आ जाए तो जहां चाहें मंदिर बनवा लें। बीएससी में पढ़ने वाले इरफान कहते हैं, "मंदिर बनाने से कौन रोक रहा है या कौन रोकेगा ये तो मुझे नहीं पता लेकिन मैं इतना जरूर जानता हूं कि अयोध्या के मुसलमानों की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। जब बाबरी मस्जिद ढहा ही दी गई तो वहां मंदिर बने या फिर कुछ और, क्या फर्क पड़ता है।''