बैक्टीरिया से होने वाली लाखों मौतों को रोकने की तकनीक का सफल परीक्षण

DW
शनिवार, 13 नवंबर 2021 (10:59 IST)
रिपोर्ट: एस्टेबान पार्डो
 
एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस कारण हर साल लाखों लोगों की मौत होती है। लेकिन अब इन मौतों को कम करने की तकनीक इजाद कर ली गई है जिसका नाम है सीआरआईएसपीआर-केस9।
 
वर्ष 1928 में पेनिसिलिन की खोज की गई थी। इससे पहले गले में इन्फेक्शन जैसे सामान्य संक्रमण भी गंभीर बीमारी हुआ करते थे और लोगों की जान जाने की संभावना बनी रहती थी। हालांकि, एंटीबायोटिक की खोज से स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी बदलाव हुआ। हानिकारक बैक्टीरिया के खिलाफ लड़ाई में एंटीबायोटिक ने हमें बहुत फायदा पहुंचाया। तब से लेकर अब तक, एंटीबायोटिक दवा में बहुत सुधार हुआ है, लेकिन नुकसानदायक बैक्टीरिया अब भी हैं। इनकी संख्या भी बढ़ रही है।
 
आज के समय में दुनिया स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई समस्याओं से जूझ रही है। इनमें एंटीबायोटिक प्रतिरोध में तेजी से वृद्धि एक अहम समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, एंटीबायोटिक प्रतिरोधी संक्रमण की वजह से हर साल लगभग सात लाख लोगों की मौत होती है।
 
यूरोपियन सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन के 2018 के एक अध्ययन में पाया गया कि ये तथाकथित सुपरबग अकेले यूरोपीय संघ में हर साल 33,000 मौतों के लिए जिम्मेदार थे। वैज्ञानिक नए एंटीबायोटिक विकसित करने और प्रतिरोधी बैक्टीरिया से निपटने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं।
 
अच्छे बैक्टीरिया बनाम बुरे बैक्टीरिया
 
हाल के एक अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने चूहों में प्रतिरोधी बैक्टीरिया को मारने में कामयाबी हासिल की है। इस तरीके पर अभी शोध जारी है। इसके तहत, जीन में बदलाव करने की तकनीक सीआरआईएसपीआर केस9 का इस्तेमाल किया जाता है। इस तकनीक को नोबल पुरस्कार भी मिल चुका है।
 
कनाडा में शेरब्रुक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस तकनीक का इस्तेमाल किया। यह तकनीक प्रतिरोधी बैक्टीरिया के अंदर जाने और महत्वपूर्ण 'आनुवांशिक तारों' को काटने के लिए 'जेनेटिक कैंची' की तरह काम करती है। ऐसा करके बैक्टीरिया को निष्क्रिय कर दिया गया और उसे शरीर के अंदर ही मार दिया गया।
 
इस नतीजे से उम्मीद की एक नई किरण दिखी है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस तकनीक से न सिर्फ बैक्टीरिया का खात्मा किया गया, बल्कि सीआईआईएसपीआर-केस9 ने सिर्फ हानीकारक बैक्टीरिया को अपना निशाना बनाया, वहीं आमतौर पर यह देखने को मिलता है कि एंटीबायोटिक बुरे बैक्टीरिया के साथ-साथ अच्छे बैक्टीरिया को भी खत्म कर देते हैं।
 
सीआईआईएसपीआर-केस9 क्या है?
 
कल्पना कीजिए कि आपके पास एक किताब है। आप इस किताब से सिर्फ किसी खास वाक्य को मिटाना चाहते हैं। आपके पास एक छोटा टूल है जिसकी मदद से आप उस खास वाक्य को खोज सकते हैं। साथ ही, आप पूरे किताब को नुकसान पहुंचाए बिना उस खास वाक्य को मिटा सकते हैं।
 
दूसरे शब्दों में कहें, तो यह कंप्यूटर पर Ctrl+F बटन दबाकर किसी खास शब्द को खोजने जैसा है। सीआरआईएसपीआर-केस9 भी कुछ इसी तरह काम करता है। यह आरएनए या डीएनए अनुक्रम में खोज कर बुरे बैक्टीरिया को खत्म कर देता है।
 
यह खोजने और काटने वाले आण्विक मशीन की तरह है। आप इसे किसी खास डीएनए अनुक्रम के बारे में बताते हैं। यह सिर्फ उसी जगह पर काटता है। इस मामले में, जो डीएनए अनुक्रम है वह एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन है। यह जीन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है।
 
सैद्धांतिक तौर पर यह बहुत ही आसान लगता है। हालांकि, इस आणविक मशीन को प्रतिरोधी बैक्टीरिया के अंदर पहुंचाना आसान नहीं है। कनाडा स्थित शोधकर्ताओं ने एक ऐसी चीज की मदद से ऐसा करने में कामयाबी हासिल की जो बैक्टीरिया कर सकता है।
 
सफल परीक्षण
 
बैक्टीरिया एक दूसरे को छूकर आनुवांशिक सामग्री को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचा सकते हैं। इस प्रक्रिया को संयुग्मन कहा जाता है। यह ठीक उसी तरह है जैसे एक स्मार्टफोन को दूसरे स्मार्टफोन से सटाकर फाइलें भेजी जाती हैं।
 
इन वैज्ञानिकों ने एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी जीन को निशाना बनाने के लिए सीआरआईएसपीआर-केस9 का इस्तेमाल किया। इसमें इस तरह से बदलाव किया कि उसे बैक्टीरिया के बीच एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सके। इसके बाद, उन्होंने इसे नुकसान न पहुंचाने वाले बैक्टीरिया के बीच डाल दिया और चूहों को खिला दिया।
 
इसके नतीजे काफी हैरान करने वाले थे। जिन एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया को निशाना बनाया गया था उनमें 99।9% से ज्यादा बैक्टीरिया चार दिनों में खत्म हो गए। सीआरआईएसपीआर-केस9 एंटीबायोटिक प्रतिरोध को खत्म करने वाला एक शक्तिशाली और सटीक टूल है। इसके बावजूद, शोधकर्ताओं को अभी तक यह नहीं पता है कि क्या बैक्टीरिया भी इस तकनीक के लिए प्रतिरोध विकसित कर सकते हैं या नहीं।
 
यह इस क्षेत्र में किए जा रहे कई अध्ययनों का सिर्फ एक उदाहरण है। कुछ शोध समूहों ने बैक्टीरिया पर हमला करने वाले वायरस जिन्हें बैक्टीरियोफेज कहा जाता है, को करियर के तौर पर इस्तेमाल किया है।

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