हाथों की चंद लकीरों में क्या सच में छुपा है कोई राज....

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पुरुष के दाएं हाथ तथा नारी के बाएं हाथ का अवलोकन करें। फिर भी जिसका जो हाथ सक्रिय हो, उसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए। वैसे दोनों हाथों का परीक्षण करना ज्यादा उचित है। 
 
हाथ कौन से वर्ग के अंतर्गत आता है, उसी के अनुसार परीक्षण का लक्ष्य होना चाहिए, जैसे कि हाथ का रंग, हाथ का प्रकार, नाखून, अंगुलियों की बनावट, हाथ का कठोर होना या मुलायम अथवा कोमलता, उसका झुकाव, लंबाई, चौड़ाई, रेखाओं का स्पष्ट होना, हाथ का पतला, मोटा या गद्देदार होना, छोटा या बड़ा होना, पोरी की गांठें आदि का परीक्षण करना। एक हस्तपारखी को पूर्ण अवलोकन करना होता है।
लाल हाथ क्रोध को दर्शाता है। सफेद हाथ स्वार्थहित होता है। गुलाबी व गेहुएं रंग का हाथ शुभ होता है। बड़े हाथ वाले व्यक्ति कोई भी कार्य सूझबूझ या सूक्ष्मता से करते हैं, जबकि छोटे हाथ वाले हर कार्य को ऊपरी तौर-तरीके से व अधिक गहराई या सूक्ष्म रूप से नहीं करते हैं।
 
हाथ यदि पतला हो तो उस जातक का परीक्षण बहुत ही सावधानी से करना चाहिए, क्योंकि इनके मन-मस्तिष्क को ज्ञात करना सरल नहीं है। भरा-भरा सुंदर हाथ जिसे देखते ही मन प्रसन्न हो जाए, ऐसा हाथ कर्मशील, कर्मठ का होता है। वह सदैव क्रियाशील रहता है। जातक हमेशा जाग्रत रहता है। 
 
जिस प्रकार एक डॉक्टर आज के युग में हर टेस्ट चाहे रक्त का हो या और भी कोई हो, उसे देखकर सारे शरीर के बारे में सब कुछ समझ जाता है, उसी प्रकार हस्तविद् भी ग्रह-नक्षत्र, हाथ की रेखाओं, पर्वत और चिह्नों को आदि का अवलोकन कर भविष्य की गुप्त संभावनाओं का शुभ-अशुभ फल व्यक्त करते हैं।
 
किसी जातक को अपना हाथ दिखाने की इच्‍छा हो या अपना भूत, भविष्य व वर्तमान की घटनाओं का ज्ञान होना हो या किसी अपने उलझे-सुलझे प्रश्नों का उत्तर जानने की प्रबल इच्छा हो, तब वह ज्योतिष या हस्तविद् के पास जाता है। उस समय उसे पवित्र भावना से आना चाहिए। प्रश्नकर्ता आचार्य के लिए विनयपूर्वक हाथ में फल-फूल, श्रीफल दक्षिणा (मुद्रा) लेकर प्रसन्नचित्त से आएं और अपना हस्त परीक्षण कराएं। हस्त परीक्षक को अधिक से अधिक 4-5 हाथों का ही परीक्षण 1 दिन में करना चाहिए। प्रात:काल का समय अर्थात 8 से 12 तथा दोपहर 2 से 5 बजे का समय सर्वोत्तम समय होता है। सूर्यास्त, गोधूलि बेला, ग्रहण, मानसिक असंतुलन की स्थिति में हाथ का परीक्षण या अवलोकन न करें।
 
युद्ध भूमि, श्मशान, वध भूमि, समाधि स्थल, रसोईघर, राह चलते, बस, ट्रेन, वायुयान आदि हस्त परीक्षण के लिए निषेध जगह है।
 
देशकाल के प्रभाव से प्रतिकूलता, अनुकूलता में परिवर्तित हो सकती है। उससे जो वातावरण बनता है, वह मानव के भाग्य का निर्माता या निर्णायक होता है। इसका संबंध देश-विदेश से समझना चाहिए। इन सबका फल बहुत ही सूक्ष्म रूप से देखकर फलित करना चाहिए, नहीं तो अपकीर्ति ही हो सकती है। 
 
इसलिए जो साधक ज्योतिषी, ह‍स्तविद् आचार्य आदि इस विज्ञान या शास्त्र के विशेषज्ञ के रूप में कीर्तिमान स्थापित करना चाहते हैं, उन्हें यह अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए कि जिज्ञासु या प्रश्नकर्ता का हस्त परीक्षण और फल की भविष्यवाणी करते समय धार्मिक स्थल, एकांत स्थल, शांतचित्त स्वच्छ वातावरण, मनन, चिंतन, अध्ययन आदि का समावेश रहे तो भविष्यवक्ता की वाणी सफल हो सकती है। 
उसी प्रकार जिज्ञासु जातक को भी पूर्ण रूप से फल सुनकर श्रद्धा-भक्ति से अपना विचार व्यक्त करना चाहिए, क्योंकि जितना गुरु के लिए आवश्यक है, उतना ही जिज्ञासु जातक का पवित्र मन, शांत चित्त परम आवश्यक है, क्योंकि देवता, गुरु, तीर्थ, ब्राह्मण, ज्योतिष, हस्तविद्, डॉक्टर तथा मंत्र पर जिज्ञासु की जैसी भावना होगी, वैसी ही उसे फल प्राप्ति तथा सिद्धि मिलेगी।

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