भीष्म ने मृत्यु के लिए क्यों किया सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार, जानिए 6 रहस्य

अनिरुद्ध जोशी
बुधवार, 6 मई 2020 (18:51 IST)
जब आसमान में घने बादल छाए रहते हैं तो प्लेन का पायलट सोचता है कि यह बादल हटे तो मैं लैंडिंग या टेक ऑफ करूं। जब दरवाजा खुला होता है तो ही व्यक्ति अंदर प्रवेश करता है। भीष्म एक देवपुरुष थे। वे श्रीकृष्ण की भांति जानते थे कि कौन सा समय है ऊपर जाने का और कौनसा समय नहीं है।
 
 
1. वैदिक ग्रंथ के अनुसार आत्मा पांच तरह के कोश में रहती है। अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय। इन्हीं कोशों में रहकर आत्मा जब शरीर छोड़ती है तो मुख्यतौर पर उसकी तीन तरह की गतियां होती हैं- 1.उर्ध्व गति, 2.स्थिर गति और 3.अधोगति। इसे ही अगति और गति में विभाजित किया गया है। 
 
भीष्म यह भलीभांति जानते थे कि सूर्य के उत्तरायण होने पर प्राण त्यागने पर आत्मा को सद्गति मिलती है और वे पुन: अपने लोक जाकर मुक्त हो जाएंगे इसीलिए वे सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार करते हैं।

 
2. यम के दस द्वार चार प्रमुख : यमलोक के चार द्वार है। चार मुख्य द्वारों में से दक्षिण के द्वार से पापियों का प्रवेश होता है। यम-नियम का पालन नहीं करने वाले निश्चित ही इस द्वार में प्रवेश करके कम से कम 100 वर्षों तक कष्ट झेलते हैं। पश्चिम का द्वार ऐसे जीवों का प्रवेश होता है जिन्होंने दान-पुण्य किया हो, धर्म की रक्षा की हो और तीर्थों में प्राण त्यागे हो। उत्तर के द्वार से वही आत्मा प्रवेश करती है जिसने जीवन में माता-पिता की खूब सेवा की हो, हमेशा सत्य बोलता रहा हो और हमेशा मन-वचन-कर्म से अहिंसक हो। पूर्व के द्वार से उस आत्मा का प्रवेश होता है, जो योगी, ऋषि, सिद्ध और संबुद्ध है। इसे स्वर्ग का द्वार कहते हैं। इस द्वार में प्रवेश करते ही आत्मा का गंधर्व, देव, अप्सराएं स्वागत करती हैं।

 
3. आत्माओं के मरने की दिशा उसके कर्म और मरने की तिथि अनुसार तय होती है। जैसे कृष्ण पक्ष में देह छोड़ दी है तो उस काल में दक्षिण और उसके पास के द्वार खुले होते हैं, लेकिन यदि शुक्ल में देख छोड़ी है तो उत्तर और उसके आसपास के द्वार खुले होते हैं। लेकिन तब कोई नियम काम नहीं करता जबकि व्यक्ति पाप से भरा हो। शुक्ल में मरकर भी वह दक्षिण दिशा में गमन करता है। इसके अलावा उत्तरायण और दक्षिणायन सबसे ज्यादा महत्व होता है।

 
4. उत्तरायण में मरने वाले : चार द्वारों, सात तोरणों तथा पुष्पोदका, वैवस्वती आदि सुरम्य नदियों से पूर्ण अपनी पुरी में पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर के द्वार से प्रविष्ट होने वाले पुण्यात्मा को भगवान विष्णु के दर्शन होते हैं जो शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी, चतुर्भुज, नीलाभ रूप में अपने महाप्रासाद में रत्नासन पर दर्शन देते हैं। ऐसी शुभ आत्मा स्वर्ग का अनुभव करती है और उसे शांति व स्थिरता मिलती है। स्वर्ग में रहने के पश्चात वह किसी अच्छे समय में पुन: अच्छे कुल और स्थान में जन्म लेती है।

 
5. दक्षिणायन में मरने वाले : जो लोग पापी और अधर्मी हैं जिन्होंने जीवनभर शराब, मांस और स्त्रीगमन के अलावा कुछ नहीं किया, जिन्होंने धर्म का अपमान किया और जिन्होंने कभी भी धर्म के लिए पुण्य का कोई कार्य नहीं किया वे मरने के बाद स्वत: ही दक्षिण दिशा की ओर खींच लिए जाते हैं। ऐसे पापियों को सबसे पहले तप्त लौहद्वार तथा पूय, शोणित एवं क्रूर पशुओं से पूर्ण वैतरणी नदी पार करना होती है। 
 
नदी पार करने के बाद दक्षिण द्वार से भीतर आने पर वे अत्यंत विस्तीर्ण सरोवरों के समान नेत्र वाले, धूम्र वर्ण, प्रलय-मेघ के समान गर्जन करने वाले, ज्वालामय रोमधारी, बड़े तीक्ष्ण प्रज्वलित दंतयुक्त, संडसी जैसे नखों वाले, चर्म वस्त्रधारी, कुटिल-भृकुटि भयंकरतम वेश में यमराज को देखते हैं। वहां घोरतर पशु तथा यमदूत उपस्थित मिलते हैं। यमराज हमसे सदा शुभ कर्म की आशा करते हैं लेकिन जब कोई ऐसा नहीं कर पाता है तो भयानक दंड द्वारा जीव को शुद्ध करना ही इनके लोक का मुख्य कार्य है। ऐसी आत्माओं को यमराज नरक में भेज देते हैं।

 
6. माघ शुक्ल की अष्टमी को त्यागे प्राण : करीब 58 दिनों तक मृत्यु शैया पर लेटे रहने के बाद जब सूर्य उत्तरायण हो गया तब माघ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म पितामह ने अपने शरीर को छोड़ा था, इसीलिए यह दिन उनका निर्वाण दिवस है।
 
सूर्य के उत्तरायण होने पर युधिष्ठिर आदि सगे-संबंधी, पुरोहित और अन्यान्य लोग भीष्म के पास पहुंचते हैं। उन सबसे पितामह ने कहा कि इस शरशय्या पर मुझे 58 दिन हो गए हैं। मेरे भाग्य से माघ महीने का शुक्ल पक्ष आ गया। अब मैं शरीर त्यागना चाहता हूं। इसके पश्चात उन्होंने सब लोगों से प्रेमपूर्वक विदा मांगकर शरीर त्याग दिया। सभी लोग भीष्म को याद कर रोने लगे। युधिष्ठिर तथा पांडवों ने पितामह के शरविद्ध शव को चंदन की चिता पर रखा तथा दाह-संस्कार किया। कहते हैं कि भीष्म 150 वर्ष जीकर निर्वाण को प्राप्त हुए।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

Mahavir jayanti 2024: भगवान महावीर स्वामी अपने पूर्वजन्म में क्या थे?

Hanuman Jayanti : हनुमान जन्मोत्सव पर उन्हें अर्पित करें 5 तरह के भोग

महावीर जयंती 2024 : जानें महावीर स्वामी के बारे में, जीवन परिचय

चैत्र पूर्णिमा 2024: जीवन का हर काम आसान बनाएंगे श्री हनुमान जी के 10 उपाय

Hanuman jayanti 2024: हनुमान जयंती कैसे मनाएं, जानें नियम और पूजा विधि

Aaj Ka Rashifal: क्या कहती है ग्रहों की चाल, जानें 20 अप्रैल 2024 का राशिफल और उपाय

Lakshmi Narayan Yog: लक्ष्मी नारायण योग क्या होता है, असीम धन-संपदा और सफलता देता है यह योग

Shukra Gochar : प्रेम का ग्रह शुक्र करेगा मंगल की राशि मेष में प्रवेश, 4 राशियों के जीवन में बढ़ जाएगा रोमांस

20 अप्रैल 2024 : आपका जन्मदिन

20 अप्रैल 2024, शनिवार के शुभ मुहूर्त

अगला लेख