महाभारत काल के हस्तिनापुर शहर का रहस्य जानकर चौंक जाएंगे

अनिरुद्ध जोशी
हस्तिनापुर महाभारत काल के कौरवों की वैभवशाली राजधानी हुआ करती थी। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ से 22 मील उत्तर-पूर्व में गंगा की प्राचीनधारा के किनारे प्राचीन हस्तिनापुर के अवशेष मिलते हैं। यहां आज भी भूमि में दफन है पांडवों का किला, महल, मंदिर और अन्य अवशेष।
 
 
पौराणिक किंवदंती के अनुसार सम्राट भरत के समय में पुरुवंशी वृहत्क्षत्र के पुत्र राजा हस्तिन् हुए जिन्होंने अपनी राजधानी हस्तिनापुर बनाई। कहते हैं कि हस्तिनापुर से पहले उनके राज्य की राजधानी खांडवप्रस्थ हुआ करती थी। लेकिन जल प्रलय के कारण यह राजधानी उजाड़ हो गई तब राजा हस्ति ने नई राजधानी बनाकर उसका नाम हस्तिनापुर रखा।
 
 
हस्तिन् के पश्चात् अजामीढ़, दक्ष, संवरण और कुरु क्रमानुसार हस्तिनापुर में राज्य करते रहे। कुरु के वंश में ही आगे चलकर राजा शांतनु हुए जहां से इतिहास ने करवट ली। शांतनु के पौत्र पांडु तथा धृतराष्ट्र हुए जिनके पुत्र पांडव और कौरवों ने मिलकर राज्य के बंटवारे के लिए महाभारत का युद्ध किया। पुराणों में कहा गया है कि जब गंगा की बाढ़ के कारण यह राजधानी नष्ट हो गई तब  पाण्डव हस्तिनापुर को छोड़कर कौशाम्बी चले गए थे। 
 
पुराणों में राजा हस्तिन् के पुत्र अजमीढ़ को पंचाल का राजा कहा गया है। राजा अजमीढ़ के वंशज राजा संवरण जब हस्तिनापुर के राजा थे तो पंचाल में उनके समकालीन राजा सुदास का शासन था।
 
 
राजा सुदास का संवरण से युद्ध हुआ जिसे कुछ विद्वान ऋग्वेद में वर्णित 'दाशराज्ञ युद्ध' से जानते हैं। राजा सुदास के समय पंचाल राज्य का विस्तार हुआ। राजा सुदास के बाद संवरण के पुत्र कुरु ने शक्ति बढ़ाकर पंचाल राज्य को अपने अधीन कर लिया तभी यह राज्य संयुक्त रूप से 'कुरु-पंचाल' कहलाया। परन्तु कुछ समय बाद ही पंचाल पुन: स्वतन्त्र हो गया।
 
 
पुरातत्वों के उत्खनन से ज्ञात होता है कि हस्तिनापुर की प्राचीन बस्ती लगभग 1000 ईसा पूर्व से पहले की थी और यह कई सदियों तक स्थित रही। दूसरी बस्ती लगभग 90 ईसा पूर्व में बसाई गई थी, जो 300 ईसा पूर्व तक रही। तीसरी बस्ती 200 ई.पू. से लगभग 200 ईस्वी तक विद्धमान थी और अंतिम बस्ती 11वीं से 14वीं शती तक विद्यमान रही। अब यहां कहीं कहीं बस्ती के अवशेष हैं और प्राचीन हस्तिनापुर के अवशेष भी बिखरे पड़े हैं। वहां भूमि में दफन पांडवों का विशालकाय एक किला भी है जो देखरेख के अभाव में नष्ट होता जा रहा है। इस किले के अंदर ही महल, मंदिर और अन्य इमारते हैं।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

क्या कर्मों का फल इसी जन्म में मिलता है या अगले जन्म में?

वैशाख अमावस्या का पौराणिक महत्व क्या है?

शनि अपनी मूल त्रिकोण राशि में होंगे वक्री, इन राशियों की चमक जाएगी किस्मत

Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया से शुरू होंगे इन 4 राशियों के शुभ दिन, चमक जाएगा भाग्य

Lok Sabha Elections 2024: चुनाव में वोट देकर सुधारें अपने ग्रह नक्षत्रों को, जानें मतदान देने का तरीका

धरती पर कब आएगा सौर तूफान, हो सकते हैं 10 बड़े भयानक नुकसान

घर के पूजा घर में सुबह और शाम को कितने बजे तक दीया जलाना चाहिए?

Astrology : एक पर एक पैर चढ़ा कर बैठना चाहिए या नहीं?

100 साल के बाद शश और गजकेसरी योग, 3 राशियों के लिए राजयोग की शुरुआत

Varuthini ekadashi 2024: वरुथिनी व्रत का क्या होता है अर्थ और क्या है महत्व

अगला लेख