राधा के पुत्र कर्ण भी थे कृष्ण के भाई, जानिए रहस्य

अनिरुद्ध जोशी
भगवान श्रीकृष्ण के भाइयों के नाम आप जानते ही होंगे। जैसे कृष्ण के भाइयों में नेमिनाथ, बलराम और गद थे। शौरपुरी (मथुरा) के यादववंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ। अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वसुदेव से उत्पन्न हुए भगवान श्रीकृष्ण। इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे। इसके बाद बलराम और गद भी कृष्ण के भाई थे। इसके अलावा भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के पहले कंस ने वसुदेव के जिन पुत्रों को मार दिया वह भी कृष्ण के भाई तो थे।
 
 
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कंस ने जिन भाइयों को जेल में ही मार दिया था उनके नाम- कीर्तिमान्, सुषेण, भद्रसेन, ऋृजु, सम्मर्दन, भद्र, संकर्षण तथा आठवें स्वयं भगवान श्रीकृष्ण। देवकीजी के सप्तम गर्भ को महामाया ने वसुदेवजी की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। इसलिए इनका नाम 'संकर्षण' पड़ा। इसकी कहानी योगमाया से जुड़ी हुई है।

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इसी तरह भगवान श्रीकृष्ण के कई भाई थे, लेकिन अधिकतर सभी चचेरे, ममेरे और फुफेरे भाई थे। जैसे, कुंति कर्ण की बुआ थी। बुआ के बेटे भगवान श्रीकृष्ण के भाई ही हुए ना। कुंति के बेटे चार पांडव थे। युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम। इसके अलावा कुंति का एक सबसे बड़ा बेटा भी था जिसका नाम कर्ण था। इस तरह कुंति के चार पुत्र थे। दो पुत्र नकुल और सहदेव माद्री के पुत्र थे। माद्री पांडु की दूसरे नंबर की पत्नी थी।


उल्लेखनीय है कि दुर्वासा ऋषि के वरदान से कुंति ने सूर्य का आह्वान करके कौमार्य में ही कर्ण को जन्म दिया था। लोक-लाज भय से कुंती ने उसे नदी में बहा दिया था। बाद में गंगा किनारे हस्तिनापुर के सारथी अधिरथ को कर्ण मिला और वह उस बालक को अपने घर ले गया। कर्ण को अधिरथ की पत्नी राधा ने पाला इसलिए कर्ण को राधेय या राधा का पुत्र भी कहते हैं। 'अंग' देश के राजा कर्ण की पहली पत्नी का नाम वृषाली था। वृषाली से उसको वृषसेन, सुषेण, वृषकेत नामक 3 पुत्र मिले। दूसरी सुप्रिया से चित्रसेन, सुशर्मा, प्रसेन, भानुसेन नामक 3 पुत्र मिले। माना जाता है कि सुप्रिया को ही पद्मावती और पुन्नुरुवी भी कहा जाता था।

 
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कुंति पुत्र कर्ण एक महान योद्धा था जो कौरवों की ओर से लड़ा था। कुंति श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव की बहन और भगवान कृष्ण की बुआ थीं। कुंति का पुत्र होने के कारण कर्ण भगवान कृष्ण का भाई था। कृष्ण के कारण ही कर्ण को अपने कवच और कुंडलों को इंद्र को दान देने पड़े थे। युद्ध के सत्रहवें दिन शल्य को कर्ण का सारथी बनाया गया। उस दिन कर्ण तथा अर्जुन के मध्य भयंकर युद्ध होता है। युद्ध के दौरान श्री कृष्ण अपने रथ को उस ओर ले जाते हैं जहां पास में ही दलदल होता है। कर्ण का सारथी यह देख नहीं पाता है और उसके रथ का एक पहिया दलदल में फंस जाता है।
 
 
रथ के फंसे हुए पहिये को कर्ण निकालने का प्रयास करते हैं। इसी मौके का लाभ उठाने के लिए श्रीकृष्ण अर्जुन से तीर चलाने को कहते हैं। बड़े ही बेमन से अर्जुन असहाय अवस्था में कर्ण का वध कर देता है। इसके बाद कौरव अपना उत्साह हार बैठते हैं। उनका मनोबल टूट जाता है। फिर शल्य प्रधान सेनापति बनाए जाते हैं, परंतु उनको भी युधिष्ठिर दिन के अंत में मार देते हैं। कृष्ण ने अर्जुन को बचाने के लिए कई उपक्रम किए थे।

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