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आखिर ‘नारीत्व’ पर फिर हंगामा है क्यों बरपा?

स्वरांगी साने
अमेरिका में लिए गए फैसले विराट अर्थों में और व्यापक स्तर पर देश-दुनिया को प्रभावित करते हैं। हाल ही में अमेरिकी अपील अदालत ने फैसला सुनाया कि अमेरिकी सौंदर्य प्रतियोगिता ट्रांसजेंडर प्रतियोगियों को बाहर कर सकती है।

दरअसल, अमेरिका ने एक ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता के उस मुकदमे को खारिज कर दिया, जिसने दावा किया था कि मिस युनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका की केवल 'प्राकृतिक रूप से पैदा हुई' महिलाओं को प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति देने की नीति भेदभाव-विरोधी कानून का उल्लंघन है, मतलब यह सरासर भेदभाव है।

अदालत ने इसे भेदभाव नहीं मानते हुए यह भी जोड़ा कि ब्यूटी पेजेंट ऑपरेटर मिस यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका एलएलसी को ट्रांसजेंडर महिलाओं को प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, क्योंकि ऐसा करना ‘अमेरिकी नारीत्व की आदर्श दृष्टि’ को व्यक्त करने की उसकी क्षमता पर हस्तक्षेप करना होगा। विडंबना यह है कि भारत का हमेशा से मखौल उड़ाया जाता है कि भारतीय नारी की आदर्श छवि में यहां की महिलाएं कैद हैं। जबकि इस परिप्रेक्ष्य में देखिएगा कि देश में पहली बार मिस ट्रांसक्वीन इंडिया-2017 आयोजित हो चुकी है और कोलकाता की ट्रांसवुमेन निताषा बिस्वास पहली मिस ट्रांसक्वीन इंडिया तो मणिपुर के लोइलॉय प्रथम रनर-अप रह चुके हैं। बिस्वास मिस इंटरनेशनल क्वीन के लिए थाईलैंड तो लोइलॉय मिस ट्रांससैस्कुसअल ऑस्ट्रेलिया में प्रतियोगिता के लिए जा चुके हैं। ट्रांसजेंडर की एक परिभाषा उन लोगों को भी शामिल करती है, जो तीसरे लिंग के हैं।

गौरतलब है कि सन् 1998 में मध्यप्रदेश की शबनम मौसी भारत की पहली ट्रांसजेंडर विधायक चुनी गई थी। भारतीय संस्कृति और न्यायपालिका तीसरे लिंग को मान्यता देती है। भारत में 15 अप्रैल, 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने तीसरे लिंग को मान्यता दी, जो न तो पुरुष है और न ही महिला, यह कहते हुए कि ‘तीसरे लिंग के रूप में ट्रांसजेंडर्स की मान्यता एक सामाजिक या चिकित्सा मुद्दा नहीं है, बल्कि एक मानवाधिकार मुद्दा है।‘

ट्रांसजेंडर, को अक्सर संक्षेप में ट्रांस भी कहा जाता है। यह श्रेणी व्यक्तियों को काफ़ी मोटे तौर पर परिभाषित करती है। ट्रांसजेंडर शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है, जिनकी एक लैंगिक पहचान या अभिव्यक्ति उस लिंग से अलग होती है, जो उन्हें उनके जन्म के समय दी गई होती है, इस श्रेणी में न सिर्फ़ वे लोग आते हैं, जिनकी लिंग पहचान उनके पैदाइशी लिंग (परलैंगिक पुरुष और परलैंगिक महिला) के विपरीत है, बल्कि उनके अलावा वे लोग भी शामिल हो सकते हैं जो अपने-आपको किसी विशेष रूप से मर्दाना या स्त्री महसूस नहीं करते हैं। ट्रांसजेंडर शब्द बहुत मोटे तौर पर क्रॉस-ड्रेसर को शामिल करने के लिए भी परिभाषित किया जा सकता है। इनमें ट्रांस मेन, ट्रांस वुमेन, इंटरसेक्स और किन्नर भी आते हैं। किन्नर (हिजड़ा समुदाय के लोग) बाकी ट्रांसजेंडर लोगों से इस रूप में भिन्न होते हैं कि वे अपने आप को न तो पुल्लिंग न स्त्रीलिंग, पर तृतीय लिंग मानते हैं।

बात फिर विदेशी धरती की करते हैं। नैशविले में एक ऑल-गर्ल्स स्कूल ने हाल ही में ट्रांसजेंडर छात्रों को स्वीकार करने के लिए अपनी प्रवेश नीतियों को बदलने का प्रयास किया, लेकिन अभिभावकों के संगठित अभियान ने उसे रुकवा दिया। अब बात उक्त फैसले की। सैन फ्रांसिस्को स्थित 9वीं यूएस सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स ने ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता अनीता ग्रीन के खिलाफ़ फैसला सुनाया, जिन्होंने तर्क दिया था कि नीति विशेष रूप से ‘प्राकृतिक रूप से पैदा हुई’ महिलाओं को भेदभाव विरोधी कानूनों का उल्लंघन करने की अनुमति देती है। ग्रीन, जो ओरेगॉन से है, ने पिछले साल पोर्टलैंड में संघीय अदालत में कंपनी पर मुकदमा दायर किया था, जब उसके पेजेंट में भाग लेने के आवेदन को खारिज कर दिया गया था। मिस युनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका पेजेंट के रूप में काम करती है।

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, सत्तारूढ़ सरकार इस बात की पुष्टि करती है कि प्रतियोगियों के संगठन में सत्तारूढ़ सरकार जीती, क्योंकि उनका कहना था ट्रांसजेंडर प्रतिभागियों को शामिल करना ‘अमेरिकी नारीत्व की आदर्श दृष्टि’ को अभिव्यक्त नहीं करता। इस निर्णय के बाद अब फिर संगठनों को नारीत्व को नए सिरे से परिभाषित करना होगा और नारीत्व पर हर बार इतना हंगामा क्यों बरपता है उस पर भी सोचना होगा।
Edited: By Navin Rangiyal

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