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अशांत नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और शैतान पाकिस्तान से घिरा है भारत

रमण रावल
एक बात तो हम मानते ही हैं कि आप जहां रहते हैं,उसके आस-पड़ोस में बसने वाले लोग यदि शांतचित्त, समझदार, सहयोगी प्रवृत्ति के हैं तो आप सुकून से रह सकते हैं। यदि पड़ोस में दिन-रात किचकिच होती रहे तो आप भी असहज रहते हैं। ऐसा ही मसला देश के साथ भी है। लंबे समय से भारत अपने चौतरफा स्थित देशों में मचलते असंतोष, बगावत, हिंसा,आतंकवाद जैसे नासूरों की वजह से चैन की सांस नहीं ले पा रहा है। नेपाल के हालिया उग्र जन आंदोलन ने एक बार फिर भारत की चिंताएं बढ़ा दी हैं।

इस दौर में जब पूरी दुनिया अलग-अलग किस्मों की चुनौतियों से जूझ रही है,भारत के संकट सबसे अलग हैं। शायद ही कोई ऐसा दूसरा देश हो, जो इस तरह निरंतर चौतरफा विपत्तियों से घिरा होकर भी दृढ़ सक्षम, विकसित, आत्म निर्भर होने का सफर तेज,लेकिन सुरक्षित गति से जारी रखे हुए हैं। हम करीब डेढ़ हजार साल का इतिहास देखें तो पाते हैं कि भारत कभी पूरी तरह से निश्चिंत नहीं रह पाया। एक के बाद एक हमलावर आते रहे,जिन्होंने भारत में लूटपाट,हिंसा मचाई। तब भारत सोने की चिड़िया होने से आक्रांताओं के निशाने पर रहता था।

दूसरी सदी में शक आए तो 5-6वीं सदी में हूणों ने उत्पात मचाया। इन्हें खदेड़ने के बाद बारहवीं सदी से फिर से आक्रमण प्रारंभ हुए। जिसमें मंगोलियन,मुगल,पुर्तगीस,फ्रेंच,अंग्रेज प्रमुख रहे। इनके दिए जख्म भारत के बदन पर अब तक अंकित हैं तो कुछ जख्म तो नासूर बनकर हमारे सुकून को कुरेद रहे हैं। फिर 1947 में हुए विभाजन की असह्य पीड़ा से तो अभी तक हम उबर ही नहीं सके हैं। उस पर एक वर्ग विशेष को अपना अलग देश पाकिस्तान मिल जाने के बावजूद उसकी आतंकवादी हरकतों ने भारत को शांति से बैठने नहीं दिया। ऐसे में जब किसी पड़ोसी मुल्क में खलबली होती है तो हमारी बेचैनी बढ़ना स्वाभाविक है।

इसे हम भले ही संयोग मानें, लेकिन यह बेहद चिंताजनक है कि मार्च 2022 से हमारे किसी न किसी पड़ोसी मुल्क में जब-तब असंतोष का लावा बह निकलता है,जिसकी गर्म राख उड़कर हमारी सीमाओं के अंदर तक आ जाती है। 2022 में श्रीलंका की बिगड़ती आर्थिक अवस्था से मची महंगाई,बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर वहां का युवा वर्ग सड़क पर उतर आया। हालात इतने विकट हुए कि भीड़ ने संसद भवन तक में घुसकर तोड़फोड़,लूटपाट मचाया।

इसके बाद अगस्त 2024 में बांग्लादेश में ऐसी हिंसा भड़की कि तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को जान बचाकर भारत की शरण लेना पड़ी। वहां आरक्षण के मुद्दे पर युवाओं ने सड़क को युद्ध भूमि बना दिया। वह आग अभी तक शांत नहीं हुई है। उसकी आड़ में कट्‌टरपंथी तत्व फिर से देश के समूचे तंत्र पर हावी हो चले हैं। वे एक तरफ हिंदू अल्पसंख्यकों पर अतिशय अत्याचार ढा रहे हैं तो दूसरी तरफ शासन-प्रशासन-सेना पर अपना शिकंजा कस रहे हैं।

अब नेपाल सुलग रहा है। यहां भी मैदान युवाओं ने संभाला है। वे भ्रष्टाचार,बेरोजगारी से त्रस्त हो चुके हैं। इस आक्रोश को रोकने के लिए वहां की सरकार ने सोशल मीडिया पर जो प्रतिबंध लगाया,उसने आग में पेट्रोल डाल दिया। प्रधानमंत्री ओला को त्याग पत्र देना पड़ा। मंत्रियों के बंगलें फूंके जा रहे हैं। वहां पूर्व सैनिक भी आंदोलनकारियों के साथ हैं।

कुछ अरसा पहले वहां के पूर्व राजा के समर्थन में भी जन आंदोलन भड़का था, लेकिन कुछ ही समय में शांत हो गया था। वहां साम्यवादी सरकार के तीन प्रधानमंत्री जल्दी-जल्दी बदल गए, लेकिन न तो सरकार में स्थायित्व आया, न आर्थिक मोर्चे पर कोई सुधार दिखा। इसके उलट भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया। साथ ही भाई-भतीजावाद ने युवा आक्रोश के तटबंध तोड़ डाले और विद्रोह का सैलाब बह निकला।

इस तरह हम देखें कि श्रीलंका,बांग्लादेश, नेपाल की घटनाओं में काफी साम्य नजर आता है। कुछ विश्लेषक मानते हैं कि एशिया में चीन के बढ़ते प्रभुत्व से इस तरह के हालात बन रहे हैं। रूस,अमेरिका के बाद चीन भी विस्तारवादी नीतियों के सहारे पहले कमजोर राष्ट्रों को नकद सहायता देता है। फिर सैन्य सामग्री बेचता है। फिर कर्ज देता है। उसके बाद वहां इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट की योजनाओं को हाथ में लेकर सीधे तौर पर वहां के संसाधनों पर कब्जा जमाता है।

कर्ज और सहायता के बोझ तले कमजोर देश उफ्फ नहीं कर पाते। इस तरह से चीन दुनिया को संदेश भी दे रहा है कि वह भी सुपर पॉवर से कम नहीं है। अमेरिका से उसका पंगा चल ही रहा है। भारत से तात्कालिक हालातों के मद्देनजर हाथ तो आगे बढ़ाया है, लेकिन भारत-चीन दोनों ही पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हो सकते कि कितने कदम साथ चल पाएंगे।

दूसरी तरफ पाकिस्तान है, जो तेल की कड़ाही में उतरकर कसमें खाता है, किंतु खुद उसे ही याद नहीं कि वह कितनी बार बोलकर मुकरा है, कितने सफेद झूठ बोले हैं, कितने भरोसे तोड़े हैं। यह और बात है कि आज का नया भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उस दौर में आ गया है, जहां से पाकिस्तान और चीन तो ठीक है,अमेरिका तक को सही समय पर ठोस जवाब देने में सक्षम है। यह पिछले 11 साल में उसने हर जरूरी अवसर पर साबित भी किया है।

इसका यह मतलब भी नहीं कि हम आंखें मूंदकर सो जाएं। भारत राष्ट्र इस समय योगी की तरह नींद लेता है, आध्यात्मिक साधक की तरह जीवन दर्शन अपनाता है, चाणक्य की तरह अपनी नीतियां बनाता है और बहादुर योद्धा की तरह रण में उतरता है। फिर भी उसके सामने जयचंदों का खतरा हमेशा मौजूद रहता है। बाहरी दुश्मन तो आपके सामने होता है, जिससे निपटना आसान होता है। पीठ पीछे के वार को रोकने के लिए प्रज्ञा चक्षु जरूरी है। बहरहाल,  हाल-फिलहाल तो हमें पड़ोस की घटनाओं पर पैनी नजर रखना होगी।

जैसा कि दुनिया देख ही रही है कि चीन ने नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश को कर्ज व सहायता के शिकंजे में जकड़ा हुआ है। बांग्लादेश को मोंग्ला पोर्ट के लिए इसी साल 2.1 बिलियन डॉलर चीन ने दिए हैं। श्रीलंका तो सबसे अधिक विदेशी सहायता के मामले में चीन पर पूरी तरह से निर्भर हो गया है। चीन का 1.4 बिलियन डॉलर का कर्ज उतारने में नाकाम श्रीलंका ने इसीलिए चीन को 99 साल की लीज पर बेहनटोटा पोर्ट दे दिया है। इंफ्रास्ट्रक्चर के कामों में भी चीन का दखल है।

नेपाल को भी पोखरा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के विकास का काम चीन को दिया गया है। वहां की राजनीति में भी चीनी दखल स्पष्ट दिखता है। पाकिस्तान पूरी तरह से अमेरिका की गोद में जा बैठा है, क्योंकि अमेरिका के लिए कंगाल,बदहाल और भ्रष्ट शासन-प्रशासन-सेना वाले देश से बेहतर कंधे दूसरे नहीं हो सकते थे। फिर चूंकि भारत उसकी घुड़कियों से नहीं घबरा रहा है तो अमेरिका के लिए पाकिस्तान के अलावा विकल्प भी नहीं है। वैसे भी ट्रंप को राष्ट्रीय हितों और अंतरराष्ट्रीय शांति की बजाए अपना क्रिप्टो कारोबार फैलाने की चिंता है। पाक सेना प्रमुख मुनीर ने इस कारोबार को पाकिस्तान में संभालने का जिम्मा ले लिया है।

ये हालात भारत को सचेत करने के लिए काफी हैं। उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने लिए अधिक समर्थन जुटाने पर तो ध्यान देना ही है, साथ ही आंतरिक सुरक्षा, शांति और विकास कार्यों पर भी दृढ़ता रखना होगी। तभी हम आसन्न संकट को दरकिनार कर आगे बढ़ पाएंगे। यह एक संक्रमण काल तो है ही, साथ ही असीम संभावनाओं का विशाल महासागर बाएं फैलाए खड़ा है। यदि हममें सामर्थ्य रहा तो हम सुखद परिणामों की गागर में संभावनाओं के सागर को भर सकते हैं।
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

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