कोरोना काल और माता रानी का दरबार : केसरियो रंग मने लाग्यो रे गरबा...

डॉ. छाया मंगल मिश्र
केसरियो रंग मने लाग्यो रे गरबा...कौन होगा जो इस गरबे गीत की धुन सुने और उसके पैर न उठें...पर जो इस समय का गरबा है वो भी कम अनूठा नहीं है। ‘रोक सको तो रोक लो’ की तर्ज पर लाख कानूनी सख्ती हो, या जान का खौफ माता के भक्त कब रुकने वाले हैं? जहां चाह वहां राह। हम भारतीय तो इसकी जीती जागती मिसाल हैं। 
‘असंयम से निवृत्ति और संयम में प्रवृत्ति’ इस बार की नवरात्रि यही सबक सिखाने आई हैं.’
 
इस बार पंडाल लगे हैं पर वो भव्यता गायब है जो पिछले कुछ दशकों से व्यावसायिकता की सारी हदें पर कर केवल दिखावा, आडम्बर और प्रचार-प्रसार केन्द्रों में बदल चुकी है। भक्ति की भावना गायब और फैशन की दुकानें सज चुकी थीं अंड-बंड प्रतियोगिताएं रखी जाने लगी थीं। फ़िल्मी फूहड़ गानों पर बुरी तरह हिलना, मटकना, कूदना शुरू हो चुका। आराधना के मायने गुम हो चले। जबकि ‘साधना में मानसिक निर्मलता ही कर्म निर्जरा का मुख्य कारण है। 
 
शक्ति पर्व ने भी नया रूप धारण किया। ऐसी नकली भूल-भुलैय्या से मुक्ति तो दी ही, सात्विक वातावरण से आराधना का मौका भी दिया। परिजनों के साथ घर में, अपने आस-पास के साथियों के साथ अपने बाड़े-चौबारे में, आंगनों में या अन्य उपलब्ध स्थानों पर मैय्या की साधना कर आनंदित हो रहे। 
 
क्योंकि ‘आत्म-धर्म की साधना में ध्यान का ही प्रमुख स्थान है, जैसे कि देह में मस्तक का तथा वृक्ष के लिए उसकी जड़ का....
 
अपने मन पसंद गीत, डांडिया, ताली, घूमर जैसे कई नृत्य झूम के करिए। यहां केवल आप हैं, आपके लोग हैं, आपका घर-आंगन है। बदल डालिए अपने निवास को मां के आराधना स्थल में और बना दें पावन मंदिर जहां देवी शक्ति का निवास हो। मां, बहन, पत्नी और स्त्री के अन्य रूपों में। बिना साधना ईश्वर नहीं मिलता। साधना से ही सिद्धि प्राप्त होती है यह हमेशा ध्यान रखें। 
 
शोर शराबे से दूर, ‘सोशल- डिस्टेंसिंग’ का पालन करते हुए लम्बी उम्र की प्रार्थना कीजिए। रंग-बिरंगे कपड़ों के साथ मैचिंग मास्क को ‘फैशन असेसरीज’ की तरह उपयोग करें। भीड़-भड़ाके से दूर अपने प्रियों के साथ उत्सव का आनंद लें। यही अवसर है जब मां की दिल से आराधना बिना किसी चोंचले के हम कर रहे हैं। साधना की राह में सबसे बड़ी बाधा विश्वास की होती है। बस वही विश्वास ये कोरोना काल हमें लौटाने आया है। जान है तो जहान है।
 
चाहे कुछ भी हो जाए पर हम धर्मनिष्ठ उत्सव प्रेमी भारतीय विश्व के किसी भी कोने में हों अपनी भक्ति नहीं छोड़ते। ये नौ दिन भी बिना बाधा के हम सभी ने अपने अपने तरीके से आनंदित उत्सव के पूरे कर ही लिए। हमारे धर्म में कई प्रकार की आराधनाओं का वर्णन मिलता है। उनमें से एक प्रमुख आराधना नृत्य है। इसी का एक रूप है दैवीय आराधना के लिए गरबा। 
 
इस गरबे ने देश के सभी वर्गों को एक सूत्र में पिरोने का काम भी किया है। इस बार शुद्ध रूप से परिवारजनों के बीच इस भक्ति बेला ने पल्लवित होने का मौका दिया है। खान-पान का विशेष ध्यान रखते हुए, व्रत लिया हो या नहीं लिया हो भरपूर आहार लें, गरबा खेलने में काफी ऊर्जा लगती है। 
 
कोरोना से बचने के लिए पाचन शक्ति का मजबूत होना अति आवश्यक है। इधर-उधर अनावश्यक छूने से बचें, अपने डंडिया या अन्य प्रॉप सेनेटाईज कर रखें। गले मिलने, छूने और पास-पास आने की स्टेप को अवॉयड करें। किराये से ड्रेस लेने से बचें। यदि लाएं तो उसकी ड्रायक्लीन या घर पर धोने की व्यवस्था करें। उसके बाद ही पहनें। ऐसे ही आपकी ज्वेलरी को भी सम्हाल कर सावधानी पूर्वक इस्तेमाल में लें। यदि पार्लर जा रहें हैं तो हायजिन और सेफ्टी सुनिश्चित करें। आरती के समय या अग्नि के पास जाएं तो सेनेटाईजर होने के कारण सावधानी रखें। इनके संपर्क से बचें। क्योंकि ज्वलनशील होने से दुर्घटना भी हो सकती है। 
 
जिंदगी जीने का नाम है। अपने लिए आनंद के इन दिनों को भरपूर जिएं। ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ तो याद है न। बस तो फिर जारी रहे सावधानियों के साथ उत्सवों का ये सफर जिससे बनी रहे जीवन यात्रा रंगीन, रुकिए...पर याद रखिए...काल किसी का सगा नहीं होता... “सावधानी हटी, दुर्घटना घटी... 
 
‘तरसते हैं हम आठों याम, इसी से सुख अति सरस, प्रकाम, 
झेलते निशिदिन का संग्राम, इसी से जय श्री राम 
अलभ है इष्ट, अतः अनमोल, साधना ही जीवन का मोल...
 
-सुमित्रानंदन पंत 

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