नरेन्द्र मोदी के नक्शेकदम पर शिवराज सिंह चौहान

अरविन्द तिवारी
सोमवार, 14 फ़रवरी 2022 (16:28 IST)
राजवाड़ा टू रेसीडेंसी
 
बात यहां से शुरू करते हैं

भारतीय जनता पार्टी को पार्टी विथ डिफरेंस और काडर बेस पार्टी कहा जाता है। बात करें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की, तो वे जहां भी जाते हैं, वहीं के हो जाते हैं। पिछले दिनों वो दक्षिण भारत के एक प्रांत में रामानुजाचार्य की प्रतिमा का अनावरण करने पहुंचे थे। तब उनकी कुछ तस्वीरें सामने आईं जिसमें वो परंपरागत परिधान धारण किए हुए दिखाई दिए।
 
वैसे प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की बात करें तो वो भी पीएम मोदी को साधने का कोई मौका नहीं छोड़ते है या यूं कहें कि वे पीएम की राह पर चल रहे हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
 
हाल ही में सीएम शिवराज सिंह भी रामानुजाचार्य की प्रतिमा के दर्शन करने पहुंचे। उन्होंने भी वही लिबास धारण किया, जो पीएम ने किया था। अलबत्ता जब सीएम शिवराज दर्शन के लिए पहुंचे, उस वक्त संघ प्रमुख मोहन भागवत भी वहां थे। यह महज संयोग ही था। लेकिन विरोधी पार्टी ने तो कटाक्ष करना भी शुरू कर दिए हैं और सीएम शिवराज को भविष्य के पीएम शिवराज बताने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रख रहे हैं।
               
ग्वालियर में तैनात अफसरों चाहे वह कमिश्नर हो या आईजी या कलेक्टर हो और एसपी को इन दिनों अपनी प्रशासनिक क्षमता दिखाने से ज्यादा मशक्कत दो दिक्कत केंद्रीय मंत्रियों नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया को साधने में करना पड़ रही है।
 
दरअसल, ग्वालियर से जुड़े मामलों में ये दोनों दिग्गज नेता चाहते हैं कि सब कुछ उनके मुताबिक हो। हालत यह है कि यदि तोमर की पसंद पर कोई काम हो जाता है तो सिंधिया समर्थक उसे पचा नहीं पाते हैं और अपने आका से कहकर उसमें बदलाव करवा देते हैं। यदि सिंधिया की पसंद पर कोई फैसला होता है तो तोमर समर्थक अपने तेवर दिखाने से पीछे नहीं रहते हैं और जैसा वे चाहते हैं, वैसा करवाने के लिए अफसरों के पीछे पड़ जाते हैं। पिछले कुछ महीनों में 1 दर्जन से ज्यादा मामलों में ऐसी उठापटक हो चुकी है।
               
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नजरों में वित्तमंत्री जगदीश देवड़ा किस कदर चढ़े हुए हैं, इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुलिस महानिदेशक विवेक जौहरी, एडीजी प्रशासन व इंटेलिजेंस के तमाम आग्रह के बावजूद सुनील पांडे मंदसौर के एसपी के रूप में बरकरार नहीं रह पाए। दरअसल, मंदसौर जिले के बाकी जनप्रतिनिधि तो पांडे से खुश थे, लेकिन देवड़ा से उनकी पटरी नहीं बैठ रही थी। देवड़ा ने जब मुख्यमंत्री के सामने अपना दुखड़ा रोया तो उन्होंने बिना किसी विलंब उन्हें वहां से हटाने का निर्णय अफसरों को यह कहते हुए ले लिया कि जिस एसपी की देवड़ा जैसे सीधे-सादे मंत्री से नहीं पट सकती, उसे वहां रहने का कोई हक नहीं। वैसे संबंध बिगड़ने का एक बड़ा कारण पांडे द्वारा एसपी रहते हुए एक बड़े अफीम तस्कर पर हाथ डालना भी बताया जा रहा है।
                
लक्ष्मण सिंह मरकाम इन दिनों बड़ी चर्चा में हैं। मूलत: नौसेना के अधिकारी मरकाम इन दिनों मध्यप्रदेश सरकार में प्रतिनियुक्ति पर हैं और आदिवासियों से जुड़े मामले में सरकार के मुख्य मार्गदर्शक हैं। संघ की मजबूत पृष्ठभूमि मरकाम का सकारात्मक पक्ष है। ऐसा माना जा रहा है कि चाहे वह मध्यप्रदेश के आदिवासी कलाकारों को पद्मश्री की अनुशंसा का मामला हो या फिर आदिवासी छात्र-छात्राओं से जुड़ा मुद्दा, मरकाम से जो फीडबैक मिलता है, उसी आधार पर सरकार रणनीति बनाती है।
 
प्रदेश के 4 आदिवासी सांसदों गुमानसिंह डामोर, गजेन्द्र पटेल, प्रो. सुमेर सिंह सोलंकी और दुर्गादास उइके को आगे कर मरकाम आदिवासी बहुल जिलों में जयस, भारतीय ट्राइबल पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के किले में सेंध लगाने की तैयारी में भी लगे हैं। लक्ष्य अगले विधानसभा चुनाव के पहले इन क्षेत्रों में भाजपा का आधार मजबूत करना है।
                
प्रदेश के मुख्य सचिव का फैसला होने में तो अभी कुछ महीने बाकी हैं, लेकिन अनुराग जैन भी मुख्य सचिव हो सकते हैं, इस चर्चा ने इंदौर में उनकी बहन देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. रेणु जैन को मजबूत कर रखा है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की जमीन से जुड़े एक मामले में आखिरकार जैसा डॉ. जैन चाह रही थीं, वैसा ही हुआ और वह भी उन्हीं के कुलपति कक्ष में इंदौर के कलेक्टर और निगमायुक्त की मौजूदगी में। कहा यह जा रहा है कि अभी जब केवल जैन के मुख्य सचिव बनने की चर्चा ने ही डॉक्टर जैन को इतना वजनदार बना रखा है तो फिर उनके मुख्य सचिव बनने की स्थिति में आगे क्या होगा, यह समझना भी जरूरी है।
               
सीनियर आईएएस अफसर अजय तिर्की और केसी गुप्ता के केंद्र से वापसी के बाद मध्यप्रदेश में प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारियों की पदस्थापना में बड़ा बदलाव संभावित है। इस बदलाव में वे आईएएस अफसर भी महत्वपूर्ण पदस्थापना पा सकते हैं, जो पिछले दिनों सचिव से प्रमुख सचिव स्तर पर पदोन्नत हुए। वे तमाम प्रमुख सचिव भी इस फेरबदल में प्रभावित हो सकते हैं, जो इन दिनों दोहरी भूमिका में हैं। इनमें से कुछ का वजन कम होना तय है। देखते हैं किसे फायदा होता है और कौन नुकसान में रहता है?
               
यदि कोई अधिकारी अपने सेवाकाल में अपने सहयोगियों के वेलफेयर के लिए चिंतित रहता है तो सहयोगी भी उन्हें कभी भुला नहीं पाते हैं। भोपाल का एसपी रहते हुए पुलिसकर्मियों के लिए कॉलोनी विकसित करने वाले आईपीएस अफसर संजीव कुमार सिंह की स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए संजीव नगर के रहवासियों ने कॉलोनी परिसर में ही उनकी मूर्ति स्थापित कर दी है। इस प्रतिमा का अनावरण भी रहवासियों ने संजीव सिंह की पत्नी ज्योति सिंह के हाथों ही करवाया। इस मौके पर अनेक पुलिस अधिकारी और राजनेता मौजूद थे। सिंह का सालभर पहले बीमारी के दौरान अस्पताल में भर्ती रहते हुए पांव फिसल जाने से निधन हो गया था।
              
चलते-चलते
 
कमलनाथ यदि कांग्रेस के किसी नेता से नाराज हो जाएं तो फिर उसकी हालत खराब होना तय है। महिला कांग्रेस की नियुक्तियों के बाद कुछ ऐसी ही स्थिति का सामना अर्चना जायसवाल को करना पड़ रहा है। इन दिनों उनकी आवाजाही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के निवास पर बंद-सी हो गई है।
 
पुछल्ला
 
जब भी भाजपा या संघ के लिए धन संग्रह की नौबत आती है, तो उन तमाम नेताओं से जो विधायक या निगम-मंडलों में पदाधिकारी रहने के बाद लगभग भुला-से दिए गए हैं, सबसे पहले मदद मांगी जाती है। सालों पहले विधायक रहे इंदौर के 2 नेता तो इस मामले में अपना दुखड़ा सार्वजनिक तौर पर सुनाने लगे हैं। इनका कहना है कि यूं तो हमें कोई पूछता नहीं लेकिन पैसा लेने सबसे पहले आते हैं।

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