जन्म के साथ ही संकट में पड़ा जीवन, फिर सांपों के साथ नाचने वाली लड़की बन गई पद्मश्री

वृजेन्द्रसिंह झाला
धनवंती उर्फ गुलाबो सपेरा सांपों के साथ नाचते-नाचते अंतरराष्ट्रीय स्तर की कलाकार बन गईं। उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। राजस्थान का कालबेलिया नृत्य और गुलाबो एक दूसरे का पर्याय बन गए। इस नृत्य को उन्होंने ‍न सिर्फ जिया बल्कि देश की सीमाओं से परे दूसरे देशों तक भी पहुंचाया। संघर्ष जन्म के साथ ही शुरू हो गया। 5 घंटे तक गड्‍ढे में दफन होने के बाद जिंदा निकलीं। फिर नृत्यकला के क्षेत्र में इतिहास रचा। जिस समाज में लड़कियों को जन्म के बाद मार दिया जाता था, आज उसी समाज का हर व्यक्ति चाहता है कि उसके घर भी गुलाबो जैसी बेटी हो।
 
आजादी का अमृत महोत्सव की 'कल, आज और कल' श्रृंखला के तहत वेबदुनिया ने जब पद्मश्री गुलाबो सपेरा से बात की तो उन्होंने कहा कि इन 75 वर्षों में कला के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है। लोगों की मानसिकता में भी बदलाव आया है। एक वक्त था था हमारे ही समाज में लड़कियां डांस नहीं करती थीं। मैंने छोटी सी उम्र में ही बीन और ढपली की धुन पर सांपों के साथ और सांपों को गले में डालकर नाचना शुरू कर दिया था। समाज के लोगों ने इसका काफी विरोध भी किया था, लेकिन मुझे मेरे पिता का समर्थन मिला। मैं समाज की पहली लड़की हूं, जिसने डांस की शुरुआत की।
 
कला को मिल रहा है सम्मान : एक वह समय भी था जब सभी समाजों में सार्वजनिक रूप से महिलाओं के नाचने को काफी बुरा माना जाता था। लेकिन आज देखिए, छोटे-बड़े घरों की बेटियां, बहुएं और यहां तक की माताएं भी मंच साझा कर रही हैं, डांस कर रही हैं। उन्हें इसके लिए सम्मान भी मिल रहा है। आज नृत्य कला को कोई भी बुरा नहीं मानता। घूमर डांस पहले राजपूत महिलाएं पर्दे में करती थीं। इसी तरह चरी नृत्य राजाओं के युद्ध में जाते समय और युद्ध से लौटते समय उनके स्वागत के रूप में होता था। आज यही नृत्य मंच की शोभा बढ़ा रहे हैं। खुशी की बात है कि नृत्य कला क्षेत्र में लोग आगे बढ़ रहे हैं। मैं चाहती हूं कि दूसरी लड़कियां भी आगे बढ़ें और सम्मान हासिल करें। 
इस तरह समुदाय का नाम पड़ा कालबेलिया : कालबेलिया नृत्य की उत्पत्ति के बारे में गुलाबो कहती हैं कि इस नृत्य की शुरुआत मुझसे ही हुई थी। इससे पहले कालबेलिया नृत्य को कोई नहीं जानता था। कालबेलिया नृत्य के घराने जैसी कोई बात नहीं थी। मेरे बाद ही इस नृत्य का घराना बना। हां, समाज के पुरुष जरूर फागुन के महीने में महिलाओं के कपड़े पहनकर डांस करते थे।
 
कालबेलिया शब्द की उत्पत्ति पर गुलाबो कहती हैं कि काल अर्थात महाकाल एवं बेलिया अर्थात दोस्त या भगवान महाकाल का नंदी। महाकाल को हम अपना गुरु मानते हैं। हम भी काल (सर्प) को वश में करते हैं, शिव के गले में भी सर्प रहते हैं। इसीलिए हमारे समुदाय को कालबेलिया के नाम से जाना जाता है। 
 
विदेश से लौटने के बाद बदला लोगों का नजरिया : पहली बार 1985 में जब अमेरिका से नृत्य का कार्यक्रम देकर वापस लौटी तो समाज में लड़कियों के प्रति लोगों का नजरिया बदल गया। उसके बाद लड़कियों को महत्व मिलना शुरू हुआ, उन्हें लोगों ने पढ़ाना शुरू किया। आज लड़कियां देश-विदेश में कार्यक्रम प्रस्तुत कर रही हैं। मेरी विरासत को भी मेरी लड़कियां ही आगे बढ़ा रही हैं। 
 
गुलाबो कहती हैं कि मैंने बड़ी संख्या में विदेशियों को डांस सिखाया है। 150 से ज्यादा देशों की मैं यात्रा कर चुकी हूं। आज मैं न सिर्फ महिलाओं को डांस सिखा रही हूं, बल्कि उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए हैंडीक्रॉफ्ट और ज्वेलरी मैकिंग भी सिखा रही हूं। गुलाबो ने कहा कि वे पुष्कर में डांस स्कूल बनाना चाहती हैं। इसकी शुरुआत भी हो चुकी है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से काम आगे नहीं बढ़ आया। साथ ही इसके निर्माण से जुड़ा काफी सामान चोरी भी हो गया। इसलिए इस काम में थोड़ी मुश्किलें आ रही हैं। 
 
राहुल गांधी की बुआजी हूं : गुलाबो बड़े गर्व से बताती हैं कि स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उनसे राखी बंधवाई थी। क्या कभी राहुल गांधी से मुलाकात हुई? इस प्रश्न पर वे कहती हैं कि राहुल जी एक बार जब राजस्थान आए थे तो गवर्नर हाउस में उनसे मुलाकात हुई थी। तब कुछ लोगों ने उनसे कहा था कि मैं उनकी बुआ हूं, तो उन्होंने कहा कि मैं जानता हूं। मेरे सामने ही इन्होंने पापा को राखी बांधी थी। वे कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से भी मिल चुकी हैं। 

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