संभल का पहलवान पुलिसवाला, DSP अनुज चौधरी की गजब कहानी, लोग पूछ रहे हीरो या विलेन?

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
गुरुवार, 13 मार्च 2025 (15:12 IST)
अनुज चौधरी—एक नाम जो आज उत्तर प्रदेश के संभल जिले में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। एक तरफ वो पहलवान, जिसने कुश्ती के दंगल में देश का नाम रोशन किया, तो दूसरी तरफ एक दबंग पुलिस अधिकारी, जो अपने बेधड़क अंदाज और विवादित बयानों के लिए सुर्खियों में रहता है। मुजफ्फरनगर के एक छोटे से गांव से शुरू हुई उनकी कहानी आज नेशनल चैंपियनशिप, अर्जुन अवॉर्ड, और डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस (DSP) के पद तक पहुंची है। लेकिन इस सफर में मेहनत, जुनून, और कई बार विवादों का सामना भी शामिल है।

अनुज चौधरी के विवाद गांव के अखाड़े से कुश्ती की दुनिया तक : अनुज चौधरी का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के बहेड़ी गांव में हुआ। एक साधारण किसान परिवार में पले-बढ़े अनुज को बचपन से ही कुश्ती का शौक था। गांव के मिट्टी के अखाड़ों में वो अपने दोस्तों के साथ दांव-पेच आजमाते थे। उनकी कद-काठी और ताकत को देखकर लोग कहते थे कि ये लड़का एक दिन बड़ा पहलवान बनेगा। पढ़ाई के साथ-साथ कुश्ती का ये जुनून बढ़ता गया। स्कूल, कॉलेज, और फिर जिला स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते हुए अनुज ने अपनी पहचान बनानी शुरू की।

अनुज चौधरी की पहलवानी : 1997 में अनुज ने पहली बार नेशनल कुश्ती चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और चैंपियन बने। इसके बाद तो मानो उनकी जीत का सिलसिला शुरू हो गया। 1997 से 2014 तक, लगातार 17 सालों तक वो नेशनल चैंपियन रहे। इस दौरान उन्होंने 2002 और 2010 के नेशनल गेम्स में दो सिल्वर मेडल जीते और एशियाई चैंपियनशिप में दो ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किए। उनकी कुश्ती का दमखम सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहा—उन्होंने जर्मनी, अमेरिका, ईरान, थाईलैंड, और नेपाल जैसे देशों में भी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और भारत का परचम लहराया।

लक्ष्मण और अर्जुन अवॉर्ड : 2001 में उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार ने लक्ष्मण अवॉर्ड से सम्मानित किया। फिर 2005 में आया वो बड़ा मौका, जब भारत सरकार ने उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से नवाजा। ये सम्मान उनके लिए सिर्फ एक मेडल नहीं था, बल्कि उनकी मेहनत और लगन का सबूत था। लेकिन अनुज का सपना सिर्फ कुश्ती तक सीमित नहीं था—वो कुछ और बड़ा करना चाहते थे।

खेल कोटे से पुलिस की वर्दी तक : अर्जुन अवॉर्ड जीतने के बाद अनुज चौधरी के सामने एक नया रास्ता खुला। उत्तर प्रदेश सरकार ने खेल कोटे के तहत उन्हें पुलिस सेवा में भर्ती होने का मौका दिया। 2000 में वो दरोगा (सब-इंस्पेक्टर) के पद पर भर्ती हुए। उस वक्त मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। 2003 में उनकी मेहनत और काबिलियत को देखते हुए उन्हें इंस्पेक्टर बना दिया गया। लेकिन असली छलांग 2012 में लगी, जब अखिलेश यादव की सरकार में वो डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस (DSP) के पद पर प्रमोट हुए। ये प्रमोशन 2006 की एक लंबित फाइल के आधार पर हुआ, जिसे सपा सरकार ने पास किया।

अनुज का अंदाज बदला : पुलिस की वर्दी में आने के बाद अनुज का अंदाज बदल गया। जहां पहले वो अखाड़े में अपनी ताकत दिखाते थे, अब वो कानून-व्यवस्था को कायम करने में जुट गए। उनकी मजबूत कद-काठी और पहलवानी का अनुभव पुलिस सेवा में भी काम आया। वो न सिर्फ एक अधिकारी बने, बल्कि युवाओं के लिए प्रेरणा भी—वो अक्सर गांवों में जाकर बच्चों को पढ़ाई के साथ खेल में आगे बढ़ने की सलाह देते थे। रामपुर में तैनाती के दौरान उन्होंने कई गांवों में अखाड़े बनवाए, ताकि युवा कुश्ती सीख सकें।

विवादों से भरा करियर: अनुज चौधरी का पुलिस करियर जितना शानदार रहा, उतना ही विवादों से भरा भी। वो पहली बार सुर्खियों में आए, जब रामपुर में उनकी सपा नेता आजम खान से तीखी बहस हुई। ये वाकया तब का है, जब आजम खान एक प्रतिनिधि मंडल के साथ मुरादाबाद कमिश्नर से मिलने जा रहे थे। अनुज, जो उस वक्त सीओ सिटी थे, ने साफ कहा कि सिर्फ 27 लोग ही अंदर जा सकते हैं। आजम खान ने तंज कसा, "समाजवादियों ने ही पहलवानों को पहचान दी, अखिलेश का एहसान याद रखो।" इस पर अनुज ने दो टूक जवाब दिया, "एहसान कैसा? मुझे अर्जुन अवॉर्ड मिला है, वो किसी के एहसान से नहीं मिलता।" ये बहस खूब वायरल हुई और अनुज की बेबाकी चर्चा में आ गई।

संभल में तैनाती के बाद तो विवादों का सिलसिला और बढ़ गया। नवंबर 2024 में जामा मस्जिद सर्वे के दौरान हुई हिंसा में अनुज के पैर में गोली लगी। इस घटना के बाद उन्होंने कहा, "हम मरने के लिए पुलिस में नहीं आए। हमारा भी परिवार है, हमें आत्मरक्षा का हक है।" उनका ये बयान सोशल मीडिया पर छा गया। फिर जनवरी 2025 में एक रथ यात्रा के दौरान वो वर्दी में हनुमान की गदा लेकर चलते दिखे, जिसकी वजह से उनकी आलोचना भी हुई और जांच भी शुरू हुई।

सबसे बड़ा विवाद : सबसे बड़ा विवाद मार्च 2025 में होली और जुमे की नमाज को लेकर उनके बयान से हुआ। शांति समिति की बैठक में उन्होंने कहा, "होली साल में एक बार आती है, जुम्मा 52 बार। अगर किसी को लगता है कि रंग लगने से उनका धर्म भ्रष्ट होगा, तो वो घर पर रहें।" इस बयान पर विपक्षी दलों ने हंगामा मचा दिया। आम आदमी पार्टी के संजय सिंह ने उन्हें "लफंडर टाइप का सीओ" कहा, तो उनके पिता बृजपाल सिंह ने जवाब दिया, "राष्ट्रपति लफंडर को अर्जुन अवॉर्ड नहीं देते। मेरे बेटे की जान को खतरा है, सरकार सुरक्षा दे।" सीएम योगी आदित्यनाथ ने अनुज का समर्थन करते हुए कहा, "वो पहलवान हैं, पहलवान की तरह बोलेंगे। सच को स्वीकार करना चाहिए।"

सोशल मीडिया पर फैन फॉलोइंग : उनकी सोशल मीडिया पर फैन फॉलोइंग जबरदस्त है—इंस्टाग्राम पर 2 लाख और फेसबुक पर 7 लाख से ज्यादा फॉलोअर्स। लोग उन्हें "संभल का सिंघम" कहते हैं। लेकिन उनकी जिंदगी में खतरे भी कम नहीं। संभल हिंसा से लेकर उनके बयानों तक, हर कदम पर वो निशाने पर रहे हैं। उनके पिता का दावा है कि विपक्षी दलों की बयानबाजी और उग्रवादी ताकतें उनकी जान को खतरा पैदा कर रही हैं।

पहलवान से DSP बनने तक, अनुज चौधरी की कहानी मेहनत, हिम्मत, और हंगामों से भरी है। वो एक गांव के लड़के से नेशनल हीरो बने, फिर एक दबंग पुलिस अधिकारी। उनकी जिंदगी में कुश्ती के दांव-पेच भी हैं और कानून की चुनौतियाँ भी। विवादों ने उन्हें सुर्खियों में रखा, लेकिन उनकी उपलब्धियों ने उन्हें सम्मान दिलाया। संभल के इस "पहलवान पुलिसवाले" की अजब कहानी हर उस युवा के लिए प्रेरणा है, जो सपने देखता है और उन्हें सच करने की हिम्मत रखता है।

अनुज चौधरी की ये यात्रा बताती है कि मिट्टी के अखाड़े से लेकर पुलिस की वर्दी तक, अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी मंजिल दूर नहीं। लेकिन सवाल ये है—क्या विवादों का ये सिलसिला उनकी राह को और मुश्किल बनाएगा, या वो इसे भी अपनी ताकत बना लेंगे? समय ही बताएगा।

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