ट्रूडो का दोगलापन, आतंकी निज्जर की चिंता, करीमा बलोच पर चुप्पी

राम यादव
  • क्षेत्रफल में भारत से 3 गुना बड़ा है कनाडा
  • जस्टिन ट्रूडो के पिता पियेर भी 16 वर्षों तक कनाडा के प्रधानमंत्री रहे हैं
  • कनाडा से अलग होना चाहता है क्युबेक नामक क्षेत्र 
  • ट्रूडो को है खालिस्तानी आतंकियों से सहानुभूति
  • करीमा बलोच की मौत पर की गई लीपापोती
India Canada Conflict: क्षेत्रफल में भारत से तीन गुना बड़े, पर जनसंख्या में भारत से 37 गुना छोटे कनाडा के प्रधानमंत्री विवादों में रहने के लिए अपने देश में विख्यात हैं। अपने यहां रहने वाले खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए भारत को दोषी ठहराने के चक्कर में अब वे भारत सहित पूरी दुनिया में कुख्यात हो रहे हैं।
 
51 वर्षीय प्रधानमंत्री महोदय का पुकार का नाम 'जस्टिन' अंग्रेज़ी से और कुलनाम 'त्रुदो' फ़्रेंच भाषा से लिया गया है। फ्रांसीसी नाम वाले उनके पिता भी — जिनके नाम का सही उच्चारण पियेर त्रुदो है — 16 वर्षों तक कनाडा के प्रधानमंत्री रहे हैं। पिता का संबंध 'त्रुदो' कुलनाम वाले फ्रांसीसी मूल के एक परिवार से था। क्षेत्रफल में कनाडा के सबसे बड़े राज्य क्युबेक की फ़्रेंच ही मुख्य भाषा है। जस्टिन का जन्म कनाडा की राजधानी ओटावा में हुआ था, जो पू्र्वी कनाडा के फ़्रेंच भाषी क्युबेक और अंग्रेज़ी भाषी ओन्टारियो के बीच की सीमा के बिल्कुल पास में है। जस्टिन त्रुदो का नाम इसी कारण दोनों भाषाओं का संगम बना।  
 
क्युबेक भी कनाडा से अलग होना चाहता है : खालिस्तानी आतंकवादियों को कनाडा में शरण और नागरिकता देने वाले जस्टिन ट्रूडो भूल जाते हैं कि उनके अपने ही देश के क्युबेक-वासी भी क्युबेक को एक स्वतंत्र सार्वभौम देश बनाने के लिए सदियों से लड़ रहे हैं। कनाडा भी अपने क्युबेक राज्य को एक स्वतंत्र देश नहीं बनने देना चाहता। भारत के पंजाब राज्य को एक स्वतंत्र खालिस्तान बनाने की कनाडा में बैठे आतंकवादियों की जिस मांग से उन्हें जो सहनुभूति है, क्या वही सहानुभूति वे स्वतंत्र क्युबेक की मांग करने वाले वहां के उग्रवादियों के प्रति दिखाने का भी साहस करेंगे?
 
खालिस्तानियों के प्रति ट्रूडो के रुख की देखा-देखी यदि भारत भी क्युबेक के राष्ट्रवादियों को शह देने लगे, तो क्या वे इसका स्वागत करेंगे? उनकी समझ में भला यह कब आएगा कि जिस तरह कनाडा की हर सरकार अपने देश की अखंडता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है, उसी तरह भारत की हर सरकार भी भारत की अखंडता बनाए रखने के लिए कटिबद्ध है।   
 
सुखदूल सिंह की हत्या पर चुप्पी क्यों : 18 जून 2023 को हरदीप सिंह निज्जर की हत्या ने कनाडा के प्रधानमंत्री को बहुत बेचैन कर रखा है। पर, निज्जर की तरह के ही एक और खालिस्तानी आतंकवादी, सुखदूल सिंह की 20 सितंबर को कनाडा में हुई हत्या का वे नाम तक नहीं लेते। शायद इसलिए कि लारेंस बिशनोई नाम के गिरोह ने उसी दिन उसकी हत्या की ज़िम्मेदारी ले ली थी। क्या यह नहीं हो सकता कि इसी या ऐसे ही किसी दूसरे गिरोह ने हरदीप सिंह निज्जर का भी काम तमाम कर दिया हो? हत्या के ऐसे कांड कनाडा में पहले भी हो चुके हैं।
 
कहानी करीमा बलोच की : जस्टिन ट्रूडो और उनकी सरकार ने 2020-21 में भी ऐसा ही दोगलापन दिखाया था। हुआ यह था कि पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रांत में पाकिस्तानी सेना और सरकार के अंतहीन अत्याचारों और मार-काट से त्रस्त, 37 वर्ष की एक महिला शरणार्थी करीमा बलोच की कनाडा के टोरन्टो शहर में हत्या कर दी गई थी। बलोचिस्तान वासियों के मानवाधिकारों के लिए करीमा बलोच की जुझारुता इतनी प्रसिद्ध हो गई थी कि दुनिया में सबसे अधिक प्रेरक और प्रभावशाली महिलाओं को समर्पित BBC की 2016 की 100 महिलाओं वाली सूची में करीमा का भी नाम चढ़ गया था।
 
करीमा को अपनी जान बचाने के लिए 2015 में पाकिस्तान से पलायन करना पड़ा। 2016 में उन्हें कनाडा में शरण मिली। कनाडा के टोरंटो विश्वविद्यालय में पढ़ाई के साथ-साथ वहां के लोगों के सामने वे पाकिस्तान और बलोचिस्तान में मानवाधिकारों के निर्मम हनन का कच्चा चिट्ठा खोलने लगीं। सभा-सम्मेलनों में बोलने लगीं। मीडिया वालों के सामने अपना पक्ष रखने और प्रदर्शनों आदि में भाग लेने लगीं। लेकिन, यह सब बहुत देर तक नहीं चल सका। उन्हें अनजान पाकिस्तानियों से गंभीर धमकिंयां मिलने लगीं। 
 
नरेंद्र मोदी का भाषण सुना : टोरंटो में ही 2016 में करीमा बलोच ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वतंत्रता दिवस का वह जोशीला भाषण भी सुना था, जिस की भारत में भी बड़ी चर्चा थी। लाल क़िले के प्राचीर पर से बोलते हुए मोदी ने पाकिस्तान और बलोचिस्तान कि स्थिति का भी उल्लेख किया था। उनके भाषण ने करीमा के मन में यह आशा जगाई कि बलोचों के लिए भारत अब कुछ करेगा। मोदीजी को धन्यवाद देते हुए एक वीडियो बनाया, जिसमें कहा कि 'आप बस हमारी आवाज़ बने रहें, अपनी लड़ाई हम ख़ुद लड़ेंगे।'  
 
टोरंटो में हम्माल हैदर नाम का एक और बलोच शरणार्थी था। उसे भी मानवाधिकरों के लिए अपने संघर्ष के कारण पलायन करना पड़ा था। हम्माल और करीमा पति-पत्नी बन गए। किंतु उनका साथ बहुत लंबे समय तक नहीं रह सका। 2017 में पाकिस्तान में कई बलोच छात्रों के अपहरण के बाद से करीमा और हम्माल को व्हाट्सऐप पर पाकिस्तान से आने वाली अनजान धमकियां बढ़ती गईँ। करीमा से कहा जाने लगा कि वे पाकिस्तान लौट आएं, उनके विरुद्ध लगाए गए अभियोग उठा लिए जाएंगे और बंधक बनाए गए बलोच छात्रों को भी मुक्त कर दिया जाएगा। करीमा इस प्रलोभन में नहीं पड़ीं।
 
ओन्टारियो झील में शव मिला : इसी गहमागहमी के बीच करीमा बलोच रविवार, 20 दिसंबर 2020 के दिन लापता हो गईं। दो दिन बाद, 22 दिसंबर को टोरंटो की पुलिस को ओन्टारियो झील में उनका शव मिला। पति हम्माल हैदर का कहना था कि करीमा, रविवार दोपहर को हवाखोरी के लिए टोरंटो के सेंटर आइलैंड की तरफ़ जाने के लिए घर से निकली थीं। अक्सर वहां जाया करती थीं। 'मैं मान नहीं सकता कि यह आत्महत्या का मामला है। वह साहसी महिला थीं और घर से निकलते समय प्रसन्नचित्त थीं,' हैदर ने पुलिस से कहा।
 
टोरंटो की पुलिस ने मंगलवार, 22 दिसंबर 2020 को यह कहकर हाथ झाड़ लिया कि करीमा बलोच के मामले की जांच 'आपराधिक मामले के तौर पर नहीं की जा रही है और यह भी नहीं माना जा रहा है कि इसमें संदेह की कोई गुंजाइश है।' पुलिस ने और कोई विवरण नहीं दिए। मृत्यु का कोई कारण नहीं बताया। शव भी नहीं दिखाया। करीमा के पति का कहना था कि सोशल मीडिया के माध्यम से उन्हें भी करीब एक महीने से धमकियां मिल रही थीं कि वह बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना के अभियानों और मानवाधिकारों के बारे में बोलना बंद करे, वर्ना 'तेरे भाई और तेरी बीवी निशाने पर होंगे।' 
 
पुलिस का रूखापन : टोरंटो की पुलिस के रूखे-सूखे रवैये से यही संकेत मिलता है कि करीमा बलोच की मृत्यु पुलिस की दृष्टि से आत्महत्या थी। एक ऐसी युवा महिला, जो पकिस्तान की पुलिस या सेना के आगे भी मौत से नहीं डरी, जो कनाडा में सभा-सम्मेलनों में खुलकर बोलती है, धरने-प्रदर्शन करती है, एक रविवार की दोपहर अपने घर से क्या केवल इसलिए निकली होगी कि एक झील में जाकर डूब मरेगी? उसकी कमी इतना ही थी कि उसके पीछे खालिस्तान जैसा कोई मालदार आतंकवादी संगठन नहीं था। वह निज्जर जैसी कोई निर्मम आतंकवादी नहीं थी।
 
करीमा को कनाडा जैसे मानवतावाद के पाखंडी देश की नागरिकता नहीं मिली। वह मात्र एक शरणार्थी थीं, इसलिए उनकी अर्थी उठ गई। उन्हें और उनके पति को जानने वाले मानते हैं करीमा की हत्या पाकिस्तानी गुप्तचर सेवा ISI ने करवाई। शव को झील में डाल दिया गया, ताकि लगे कि यह आत्महत्या का मामला है। 
 
यह है हाल कनाडा नाम के एक ऐसे पश्चिमी देश का, जो अपने आप को मानवाधिकारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और क़ानून के राज का शिरोमणि समझता है। प्रमाण के तौर पर दुनिया भर के ऐसे खूंखार भगोड़े आतंकवादियों को पेश करता है, जिन पर तरस खा कर वह उन्हें न केवल शरण देता है, अपना नागरिक बना और बताकर उन्हें गर्व के साथ पालता-पोसता भी है। चाहता है कि उसकी इस बेढब उदारता के लिए उसकी वाह-वाही की जाए।
 
भारत को नीचा दिखाने की चाल : कनाडा और 'पांच आंखों' वाले पंचपरमेश्वर गुट के उसके अन्य मानवतावादी सहयोगी देश, आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की आड़ लेकर भारत को इस तरह नीचा दिखाना चाहते हैं, मानो उन्होंने स्वयं कभी किसी विदेशी भूमि पर किसी आतंकवादी की सुनियोजित हत्या नहीं की है।

अमेरिका ने 2 मई, 2011 को पाकिस्तान के अबोटाबाद में अल कायदा के सर्वेसर्वा ओसामा बिन लादेन की हत्या के लिए क्या कभी पाकिस्तान से अनुमति मांगी थी? पाकिस्तान की सार्वभौमता की क्या धज्जियां नहीं उड़ाई थीं? अमेरिका ने ही 31 जुलाई 2022 को सुबह सवा 6 बजे, बिन लादेन के डिप्टी, अयमान अल जवाहिरी को भी काबुल में एक रॉकेट से परलोक पहुंचा दिया। भारत पर कनाडा का सबसे बड़ा आरोप यही है कि भारत ने उसकी भूमि पर निज्जर को मारकर उसकी सार्वभौमता का उलंघन किया है। 
 
अमेरिका ने इराक पर परमाणु बम बनाने का झूठा आरोप लगाकर 2003 में क्या उस पर आक्रमण नहीं किया? इराक को तहस-नहस और उसके राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन की हत्या क्या नहीं की? सद्दाम हुसैन भी भले ही कुछ कम अत्याचारी नहीं था। 1980 वाले दशक में मध्य अमेरिकी देश पनामा के राष्ट्रपति के समान, वहां के मुख्य सत्ताधारी मानुएल नोरियेगा को पकड़ने के लिए, अमेरिका ने ही 20 दिसंबर, 1989 को पनामा पर हवाई हमला बोल दिया। उस समय तक द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद का वह सबसे बड़ा हवाई हमला था। अमेरिका का आरोप था कि नोरियेगा मादक द्रव्यों का बहुत बड़ा डीलर है।
 
40 साल लंबी जेल की सजा : नोरियेगा 11 दिनों तक पनामा सिटी में वैटिकन के दूतावास में छिपा रहा। अंततः 3 जनवरी 1990 को उसे आत्मसमर्पण करना पड़ा। अमेरिका ले जाकर उस पर मुकदमा चलाया गया। 40 साल लंबी जेल की सजा सुनाई गई। कहने का तात्पर्य यह कि अमेरिकी गुट के पश्चिमी देश अपने ही कानून-कायदों और मानदंडों की धज्जियां भले ही उड़ाएं, दूसरे देश ऐसा नहीं कर सकते। केवल इसराइल इसका अपवाद है। गाहे-बगाहे वह सीरिया या ईरान के किन्हीं अधिकारियों-वैज्ञानिकों को उन्हीं की जमीन पर बेधड़क निपटा सकता है।   
 
इधर कुछ समय से व्लादिमीर पुतिन का रूस भी दिखाने लगा है कि हम भी किसी से कम नहीं। पर रूस अधिकतर रूसियों को ही विदेशों में अपना निशाना बनाता है। सरकार से असहमत रूसी, विदेशों में या तो किसी होटल या इमारत की खिड़की से अनायास ही गिरकर मर जाते हैं या किसी रहस्यमय पदार्थ के विष का शिकार बनते हैं। रूसियों की खिड़की से गिरकर मरने की भारत में भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जो वेबदुनिया में भी प्रकाशित हुई हैं।
 
रूसी सरकार रूसियों को ही मारती है : ऐसी एक घटना 19 अक्टूबर 2019 की है। उस दिन बर्लिन में रूसी दूतावास के पास के एक रास्ते पर एक मृत व्यक्ति पड़ा पाया गया। पता चला कि वह पास की ही एक बिल्डिंग से गिर गया था। रूसी दूतावास ने दो सप्ताह बाद एक वक्तव्य जारी कर बताया कि वह रूसी दूतावास का ही एक सहकर्मी था। उसके शव को रूस भेजने की औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं। वक्तव्य में यह नहीं बताया गया कि उसकी मृत्यु हुई कैसे।
 
इस घटना से पहले, 23 अगस्त 2019 को बर्लिन के ही एक छोटे-से चिड़ियाघर के पास रूस से आए एक शरणार्थी का शव मिला। उसका नाम सलीमख़ान चांगोश्विली था। बताया जाता है कि रूसी गुप्तचर सेवा FSB ने सुपारी देकर उसकी हत्या करवाई थी। हत्यारे का जल्द ही पता चल गया। वह वादिम निकोलायेविच क्रसिकोव नाम का एक रूसी नागरिक निकला। उसे आजीवन कारावास की सजा मिली। यह घटना रूस और जर्मनी के बीच गंभीर विवाद का कारण बन गई।
 
बाप-बेटी रासायनिक विष के शिकार बने : विदेशों में रहने वाले रूसियों की हत्या का एक सबसे बहुचर्चित प्रयास 4 मार्च 2018 को ब्रिटेन के साल्सबरी नामक शहर में हुआ था। उस दिन ब्रिटेन में नियुक्त पूर्व रूसी जासूस 66 वर्षीय सेर्गेई स्क्रीपाल और उनकी 33 साल की बेटी यूलिया को रासायनिक विष का शिकार बनाया गया। यह विष 1970 और 1980 वाले दशकों में तत्कालीन सोवियत संघ में विकसित ‘नोविचोक’ (नव-आगंतुक) नाम का एक बहुत ही प्राणघातक स्नायविक विष (नर्व एजेंट) था। वह तरल या चूर्ण रूप में होता है और हवा के संपर्क में आने पर त्वचा तथा सांस के रास्ते से शरीर में पहुंचता है।  
 
रविवार का दिन था। सवा चार बजे थे। साल्सबरी के एक पार्क में कुछ लोगों ने देखा कि एक बूढ़ा-सा दिखने वाला आदमी और एक युवा महिला एक बेंच पर लुढ़के हुए बेहोश पड़े हैं। उनके मुंह से झाग निकल रहा है। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि युवा महिला की ‘आंखें पूरी तरह खुली हुईं, पर बिल्कुल सफ़ेद थीं।’ प्रत्यक्षदर्शियों में से ही किसी ने पुलिस को खबर दी। पुलिस ने दोनों को तुरंत पास के ही एक अस्पताल में भर्ती कराया। दोनों अस्पताल की सघन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में कई दिन बेहोश पड़े रहे। डॉक्टरों का कहना था कि दोनों किसी स्नायविक विष (नर्व एजेंट) के घातक प्रभाव से पीड़ित हैं और उनके बचने की आशा बहुत कम है। समय लगा, पर दोनों की जान बच गई।
 
ब्रिटेन ने अपने यहां नियुक्त 23 रूसी राजनयिकों (डिप्लोमैट्स) को अवांछित घोषित करते हुए 7 दिनों के भीतर ब्रिटेन से चले जाने का आदेश दिया। ब्रिटेन में स्थित रूसी चल-अचल संपत्तियों को फ्रीज़ कर दिया गया। ब्रिटेन में रह रहे रूसी जासूसों या नागरिकों की पहले भी कई बार संदेहास्पद मौतें हो चुकी थीं। यूरोपीय संघ के दूसरे देशों ने भी रूस को दंडित करने वाले कई क़दम उठाए।  

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