नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए साजिश रचने और उनके लिए धन जुटाने के अपराध में सोमवार को हिज्ब-उल-मुजाहिदीन के 2 आतंकवादियों को 12-12 साल और संगठन के 2 अन्य सदस्यों को 10-10 साल कैद की सजा सुनाई और कहा कि उन्होंने देश के दिल पर हमला करने के लिए साजिश की थी।
यह टिप्पणी करते हुए कि आतंकवाद के वित्त पोषण के मामले को अगर आतंकवादी गतिविधियों से उच्च श्रेणी में नहीं तो कम से कम उसी श्रेणी में जरूर रखा जाना चाहिए, विशेष न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने मोहम्मद शफी शाह और मुजफ्फर अहमद डार को 12-12 साल कैद और तालिब लाली तथा मुश्ताक अहमद लोन को 10-10 साल के कारावास की सजा सुनाई।
अदालत ने शाह, डार, लाली और लोन पर क्रमश: 50,000, 65,000, 55,000 और 45,000 रुपयों का जुर्माना भी लगाया है। हिज्ब-उल-मुजाहिदीन के डिविजनल कमांडर शाह को सजा सुनाते हुए अदालत ने कहा, जिस अपराध के लिए अपराधी को दोषी ठहराया गया है वह राजद्रोह का अपराध है और समाज को प्रभावित करने वाला इससे बड़ा और कोई अपराध नहीं हो सकता है।
सभी (चारों) आरोपियों ने उनके खिलाफ लगे सभी आरोपों को 27 सितंबर को स्वीकार किया, जिसके बाद चार अक्टूबर को उन्हें दोषी करार दिया गया। शाह और लाली जम्मू-कश्मीर के बांदीपुरा जिले के रहने वाले हैं, जबकि डार बडगाम जिले का और लोन अनंतनाग जिले का रहने वाला है।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने मामला दर्ज किया था, जिसमें हिज्ब-उल-मुजाहिदीन पर पड़ोसी देशों से धन प्राप्त करने और भारत में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने का आरोप था।
सभी चारों आरोपियों को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून (यूएपीए) की धारा 17 (आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन जुटाने), 18 (आतंकवादी गतिविधि को अंजाम देने की साजिश करने), 20 (किसी आतंकवादी संगठन या गिरोह का हिस्सा होने के लिए सजा), 40 (आतंकवादी संगठन के लिए धन एकत्र करने का जुर्म) और 38 (एक आतंकवादी संगठन की सदस्यता संबंधी अपराध) के तहत दोषी करार दिया गया था।
इन सभी को भारतीय दंड संहिता की धारा 120 (आपराधिक षड्यंत्र) और 121 (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध करना, युद्ध का प्रयास करना या युद्ध शुरू करने के लिए उकसाना) के तहत भी दोषी ठहराया गया था।(भाषा)