महिलाओं पर अत्याचार के खिलाफ ये हैं कड़े कानून, आपके लिए जानना जरूरी है

Webdunia
बुधवार, 25 अप्रैल 2018 (16:17 IST)
भारतीय दंड संहिता कानून, महिलाओं को एक सुरक्षात्मक आवरण प्रदान करता है ताकि समाज में घटित होने वाले विभिन्न अपराधों से वे सुरक्षित रह सकें। भारतीय दंड संहिता में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों अर्थात हत्या, आत्महत्या हेतु प्रेरण, दहेज मृत्यु, बलात्कार, अपहरण एवं व्यपहरण आदि को रोकने का प्रावधान है। उल्लंघन की स्थिति में गिरफ्तारी एवं न्यायिक दंड व्यवस्था का उल्लेख इसमें किया गया है। 
 
इसके अंतर्गत प्रमुख प्रावधान निम्नानुसार हैं- 
 
भारतीय दंड संहिता की धारा 294 के अंतर्गत सार्वजनिक स्थान पर बुरी गालियां देना, अश्लील गाने गाना जो कि सुनने पर बुरे लगें का दंडनीय प्रावधान हैं। धारा 354 के अंतर्गत महिला की लज्जाशीलता भंग करने के लिए उसके साथ बल का प्रयोग करना, धारा 363 के अंतर्गत विधिपूर्ण संरक्षण से महिला का अपहरण करना, धारा 364 के अंतर्गत हत्या करने के उद्देश्य से महिला का अपहरण करना, धारा 366 के अंतर्गत किसी महिला को विवाह करने के लिए विवश करना या उसे भ्रष्ट करने के लिए अपहरण करना, धारा 371 के अंतर्गत किसी महिला के साथ दास के समान व्यवहार, धारा 372 के अंतर्गत वैश्यावृत्ति के लिए 18 वर्ष से कम आयु की बालिका को बेचना या भाड़े पर देना। 
 
ऐसे प्रकरणों पर विचार न्यायालय द्वारा बंद कमरे में धारा 372 (2) द.प्र.सं. के अंतर्गत किया जाए। उल्लेखनीय है कि 'बलात्कार करने के आशय से किए गए हमले से बचाव हेतु हमलावर की मृत्यु तक कर देने का अधिकार महिला को है' (धारा 100 भा.द.वि. के अनुसार),दूसरी बात साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 (ए) के अनुसार बलात्कार के प्रकरण में न्यायालय के समक्ष पीड़ित महिला यदि यह कथन देती है कि संभोग के लिए उसने सहमति नहीं दी थी, तब न्यायालय यह मानेगा कि उसने सहमति नहीं दी थी। इस तथ्य को नकारने का भार आरोपी पर होगा। 
 
 
इसी तरह धारा 376 क में पुरुष द्वारा अपनी पत्नी से अलग रहने के दौरान संभोग करने पर 2 वर्ष का कारावास अथवा सजा या दोनों का प्रावधान रखा गया है। धारा 376 ख में लोक सेवक द्वारा उसकी अभिरक्षा में स्थित स्त्री से संभोग करने पर 5 वर्ष तक की सजा या जुर्माना अथवा दोनों, धारा 376 ग में कारागार या सुधार गृह के अधीक्षक द्वारा संभोग करने पर 5 वर्ष तक की सजा या जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान, धारा 32 (1) में मरे हुए व्यक्ति (स्त्री) के मरणासन्न कथनों को न्यायालय सुसंगत रूप से स्वीकार करता है बशर्ते ऐसे कथन मृत व्यक्ति (स्त्री) द्वारा अपनी मृत्यु के बारे में या उस संव्यवहार अथवा उसकी किसी परिस्थिति के बारे में किए गए हों, जिसके कारण उसकी मृत्यु हुई हो। 
 
कानून में यह भी सु‍निश्चित करने का प्रावधान है:
 
 
धारा 375 भारतीय दंड संहिता :-
 
जब कोई पुरुष किसी स्त्री के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध सम्भोग करता है तो उसे बलात्कार कहते हैं। सम्भोग का अर्थ - पुरुष के लिंग का स्त्री की योनि में प्रवेश होना ही सम्भोग है। किसी भी कारण से सम्भोग क्रिया पूरी हुई हो या नहीं वह बलात्कार ही कहलाएगा। बलात्कार तब माना जाता है यदि कोई पुरुष, किसी स्त्री के साथ किसी भी परिस्थिति में मैथुन करता है तब वह पुरुष बलात्कार करता है, यह कहा जाता है-
 
 
 
धारा 376 (क) भारतीय दंड संहिता :
 
पृथक रहने के दौरान किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ सम्भोग करने की दशा में वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
धारा 376 (ख) भारतीय दंड संहिता :
लोक सेवक द्वारा अपनी अभिरक्षा में किसी स्त्री के साथ सम्भोग करने की दशा में जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की ही हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
 
धारा 376 ग भारतीय दंड संहिता :
जेल, प्रतिप्रेषण गृह आदि के अधीक्षक द्वारा सम्भोग की स्थिति में वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
 
धारा 376 घ भारतीय दंड संहिता :
अस्पताल के प्रबंधक या कर्मचारीवृन्द आदि के किसी सदस्य द्वारा उस अस्पताल में किसी स्त्री के साथ सम्भोग करेगा तो वह दोनों में किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
 
धारा 377 भारतीय दंड संहिता :-
 
प्रकृति विरुद्ध अपराध के बारे में है जो यह बताती है कि जो कोई किसी पुरुष, स्त्री या जीव वस्तु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध स्वेच्छा से इन्द्रिय-भोग करेगा, वह आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
 
महिलाओं, बच्चियों से बलात्कार, यौन हमले को नए सिरे से भी परिभाषित किया गया है जिसे (Protection of Children from Sexual Offences Act – POCSO) कानून का नाम दिया गया है।
 
पॉक्सो, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act – POCSO) का संक्षिप्त नाम है। पॉक्सो एक्ट-2012 के अंतर्गत बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न और यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए, महिला और बाल विकास मंत्रालय ने पॉक्सो एक्ट-2012 बनाया था।
 
वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है। पॉस्को अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वे मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है, इस धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर 5 से 7 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है। इस एक्ट को बनाना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि बच्चे बहुत ही मासूम होते हैं और आसानी से लोगों के बहकाबे में आ जाते हैं। कई बार तो बच्चे डर के कारण उनके साथ हुए शोषण को माता पिता को बताते भी नही है.
इस एक्ट के प्रावधान इस प्रकार हैं: 
 
यौन शोषण की परिभाषा- इसमें यौन उत्पीड़न और अश्लील साहित्य, सेक्सुअल और गैर सेक्सुअल हमला (penetrative and non-penetrative assault) को शामिल किया गया है।
1. इसने भारतीय दंड संहिता, 1860 के अनुसार सहमती से सेक्स करने की उम्र को 16 वर्ष से बढाकर 18 वर्ष कर दिया है। इसका मतलब है कि-
(a) यदि कोई व्यक्ति (या नाबालिग बच्चा ) किसी बच्चे के साथ उसकी सहमति या बिना सहमति के यौन कृत्य करता है तो उसको पॉक्सो एक्ट के अनुसार सजा मिलनी ही है।
(b) यदि कोई पति या पत्नी 18 साल से कम उम्र के जीवनसाथी के साथ यौन कृत्य कराता है तो यह अपराध की श्रेणी में आता है और उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
2. यह अधिनियम पूरे भारत पर लागू होता है और 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधों के खिलाफ संरक्षण प्रदान करता है।
3. पॉक्सो कानून के तहत सभी अपराधों की सुनवाई, एक विशेष न्यायालय द्वारा कैमरे के सामने बच्चे के माता पिता या जिन लोगों पर बच्चा भरोसा करता है, उनकी उपस्थिति में की कोशिश करनी चाहिए।
4. यदि अभियुक्त एक किशोर है, तो उसके ऊपर किशोर न्यायालय अधिनियम, 2000 (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) में मुकदमा चलाया जाएगा।
5. यदि पीड़ित बच्चा विकलांग है या मानसिक रूप से या शारीरिक रूप से बीमार है, तो विशेष अदालत को उसकी गवाही को रिकॉर्ड करने या किसी अन्य उद्देश्य के लिए अनुवादक, दुभाषिया या विशेष शिक्षक की सहायता लेनी चाहिए।
6. यदि अपराधी ने कुछ ऐसा अपराध किया है जो कि बाल अपराध कानून के अलावा अन्य कानून में भी अपराध है तो अपराधी को सजा उस कानून में तहत होगी जो कि सबसे सख्त हो।
7. इसमें खुद को निर्दोष साबित करने का दायित्व अभियुक्त (accused) पर होता है। इसमें झूठा आरोप लगाने, झूठी जानकारी देने तथा किसी की छवि को खराब करने के लिए सजा का प्रावधान भी है।
 
8. जो लोग यौन प्रयोजनों के लिए बच्चों का व्यापार (child trafficking) करते हैं उनके लिए भी सख्त सजा का प्रावधान है।
 
9. सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय बाल संरक्षण मानकों के अनुरूप, इस अधिनियम में यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति यह जानता है कि किसी बच्चे का यौन शोषण हुआ है तो उसके इसकी रिपोर्ट नजदीकी थाने में देनी चाहिए, यदि वह ऐसा नही करता है तो उसे छह महीने की कारावास और आर्थिक दंड दिया जा सकता है।
10. यह अधिनियम बाल संरक्षक की जिम्मेदारी पुलिस को सौंपता है। इसमें पुलिस को बच्चे की देखभाल और संरक्षण के लिए तत्काल व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी दी जाती है। जैसे बच्चे के लिए आपातकालीन चिकित्सा उपचार प्राप्त करना और बच्चे को आश्रय गृह में रखना इत्यादि।
11. पुलिस की यह जिम्मेदारी बनती है कि मामले को 24 घंटे के अन्दर बाल कल्याण समिति (CWC) की निगरानी में लाए ताकि CWC बच्चे की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठाए जा सकें। 
12. इस अधिनियम में बच्चे की मेडिकल जांच के लिए प्रावधान भी किए गए हैं, जो कि इस तरह की हो ताकि बच्चे के लिए कम से कम पीड़ादायक हो। मेडिकल जांच बच्चे के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में की जाना चाहिए, जिस पर बच्चे का विश्वास हो, और बच्ची की मेडिकल जांच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिए।
 
13. इस अधिनियम में इस बात का ध्यान रखा गया है कि न्यायिक व्यवस्था के द्वारा फिर से बच्चे के ऊपर ज़ुल्म न किए जाएं। इस एक्ट में केस की सुनवाई एक स्पेशल अदालत द्वारा बंद कमरे में कैमरे के सामने दोस्ताना माहौल में किया जाने का प्रावधान है। इस दौरान बच्चे की पहचान गुप्त रखने की कोशिश की जानी चाहिए। 
14. विशेष न्यायालय, उस बच्चे को दिए जाने वाली मुआवजे की राशि का निर्धारण कर सकता है, जिससे बच्चे के चिकित्सा उपचार और पुनर्वास की व्यवस्था की जा सके।
15. अधिनियम में यह कहा गया है कि बच्चे के यौन शोषण का मामला घटना घटने की तारीख से एक वर्ष के भीतर निपटाया जाना चाहिए।
 
सरकार द्वारा बच्चों के यौन शोषण के लिए पॉक्सो एक्ट में किए गए प्रावधान 2012 में किए गए थे जो कि बहुत देरी से किए गए हैं। पॉक्सो के अंतर्गत बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के 6118 मामले 2012 से 2016 के बीच दर्ज किए गए हैं। इसमें 85% मामले अभी भी कोर्ट में लंबित पड़े हुए है जबकि अपराधी को सजा मिलने की दर सिर्फ 2% है जो कि किसी भी तरह से ठीक नहीं ठहराया जा सकता है। 
 
इसलिए सरकार को इस एक्ट में और जरूरी सुधार करने होंगे ताकि पीड़ित को जल्दी से जल्दी न्याय मिल सके। ज्यादातर मामलों में देखने में आया है कि बच्चों का शोषण जान-पहचान के लोग ज्यादा करते हैं और घर के लोग उन पर शक भी नही करते हैं। इसलिए माता- पिता का यह दायित्व बनता है कि जिन लोगों के साथ बच्चे खेल रहे हैं उन पर पूरी नजर रखें। 

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