लाठी सीखने से वीरता आती है, यह प्रदर्शन के लिए नहीं, इंदौर में RSS के शताब्दी वर्ष आयोजन में बोले मोहन भागवत

मोहन भागवत ने देश को दिया एकजुटता का संदेश, स्वर शतकम् में समझाया संगीत का महत्‍व

नवीन रांगियाल
फोटो : धर्मेंद्र सांगले  
‘संघ की शाखा में लाठी चलाना किसी तरह के प्रदर्शन के लिए नहीं होता। बल्‍कि यह इसलिए किया जाता है कि इसे सीखने से आदमी के भीतर वीर वृति आ सके, वो किसी से डरे नहीं। यह प्रदर्शन के लिए नहीं है, लेकिन विपत्ति आने पर वो उसी लाठी का इस्‍तेमाल कर के उसे चला भी सके, यही संघ और शाखा की गतिविधियों का उदेश्‍य है’

इंदौर में शुक्रवार को राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ RSS के शताब्दी वर्ष के आयोजन की शुरुआत हुई। इस मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने उद्बोधन में यह बात कही। इंदौर के दशहरा मैदान पर आयोजित इस कार्यक्रम में कई जिलों के 15 हजार से ज्‍यादा स्‍वयंसेवक और हजारों आमजन शामिल हुए।

हम प्रदर्शन नहीं करते : शुक्रवार की शाम करीब 5 बजे संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मंच से अपना उद्बोधन प्रारंभ किया। सबसे पहले संघ प्रमुख ने संघ में संगीत के महत्व को समझाया। उन्होंने कहा कि दुनिया में हमारा देश किसी भी विधा में पीछे नहीं है। आरएसएस की शाखा में हम जो सांगीतिक या शारीरिक प्रदर्शन करते हैं, यह इसलिए नहीं करते कि इसका प्रदर्शन किया जाए। शाखा में लाठी चलाना इसलिए नहीं सीखते कि किसी पर चलाना है, बल्कि इसलिए सीखते है कि उसमें वीर वृति आ सके, वो किसी से डरे नहीं। लेकिन विपत्ति आए तो लाठी चला भी सके। यह काम पड़ने पर सिर्फ प्रदर्शन भर न रहे।

संघ में क्‍यों होता है रण संगीत : संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि संघ में रण संगीत यानी घोष इसलिए होता है, क्योंकि इससे आनंद की प्राप्ति होती है। भारतीय संगीत चित्त वृति को शांत करता है। चित शांत होने पर जो बचता है वो आखिरी सत्य आनंद है। हमारा संगीत राजसी और तामसिक गुणों को दूर करता है। सरल भाषा में कहें तो आसपास के आकर्षण को खत्म करना और एक अनुशासन के तहत आनंद को प्राप्त होना। चित्त वृति को शांत करने वाला संगीत हमे समन्वय सीखता है, एक साथ होना सिखाता है। सबके प्रति सद्भावना सिखाता है। उन्‍होंने कहा कि कोई भी कला वही अनुभूति कराती है, जो अध्यात्म में प्राप्‍त होती है।

जो भी जरूरी होगा वो मैं करुंगा : उन्‍होंने कहा कि संघ कार्य में जो जो भी करना आवश्यक है वो मैं करूंगा, क्योंकि इसी करने से ही देश खड़ा होगा। संघ में ऐसे कई स्‍वयंसेवक हैं जो संगीत में दिलचस्‍पी नहीं रखते, लेकिन जब उन्‍हें कहा जाता है तो वे घोष में संगीत बजाते हैं। संगीत सीखते हैं। संघ ने कहा है तो ऐसा करना है। जो जरूरी है वो करने पर ही देश खड़ा होगा। उन्‍होंने कहा, तेरा वैभव अमर रहे मां, हम दिन चार रहे न रहें। व्यक्तिगत दृष्टि से, सामूहिक दृष्टि से गुणवान बनना है, जैसे हनुमान चालीसा में कहा जाता है कि विद्यावान गुणी अति चतुर। राम काज करिबे को आतुर। लेकिन यह गुणवान बनने का काम देश हित में होना चाहिए। संघ का यह रण संगीत आपके समक्ष इसलिए किया गया कि आप सामूहिकता की ताकत को पहचान सके। हम चाहते तो यह संगीत प्रदर्शन संघ के सामने भी हो सकता था, आप लोगों के समक्ष यह करने की क्या जरूरत थी? लेकिन हमें देशहित में सामूहिकता और एकजुटता की ताकत को पहचानना है।

जय घोष से हुई RSS के शताब्दी वर्ष की शुरुआत : इंदौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के आयोजन की शुरुआत हुई। शुक्रवार को एक हजार से ज्यादा स्वयंसेवकों ने वादन की प्रस्तुति दी। वहीं करीब 15 हजार स्‍वयंसेवक इस आयोजन में शामिल हुए। इसके बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपना उद्बोधन दिया। मालवा प्रांत से इस तरह का पहला आयोजन संघ ने किया। आयोजन के पहले गुरुवार को इस आयोजन के लिए स्वयंसेवकों ने रिहर्सल की। इंदौर के दशहरा मैदान को आयोजन के लिए तैयार किया गया था। यहां एक डोम और मंच तैयार किया गया।

आरएसएस में घोष दलों के महत्व को बताते हुए उन्होंने कहा कि संगीत के सब अनुरागी है, लेकिन साधक सब नहीं होते। भारतीय संगीत में घोष दलों की परंपरा नहीं थी। शुरुआत में संघ के स्वयंसेवकों ने नागपुर के कामठी केंटोनमेंट बोर्ड में सेना के वादकों की धुनें सुनकर अभ्यास किया। संगीत वादन भी देशभक्ति से जुड़ा है। दूसरे देशों में देशभक्ति संगीत से भी प्रदर्शित होती है। हम दुनिया में किसी से पीछे न रहे,हमने भी घोष की उपयोगिता को समझा इसलिए संघ ने भी घोष दल बनाए।

घोष वादन में रागों की प्रस्तुति : स्‍वर शतकम घोष शिविर आयोजन की शुरुआत में अलग अलग जिलों के घोष वादक स्वयंसेवकों ने रागों पर आधारित वादन की प्रस्तुति दी। घोष वादन के दौरान विभिन्न मुद्राओं की मदद से ओम और स्‍वास्‍तिक आदि जैसी आकृतियों को आकार दिया गया, जिसमें संघ के 100 साल पूरे होने पर 100 की आकृति भी नजर आई।

45 मिनिट तक घोष दल की प्रस्तुति : मालवा प्रांत के 28 जिलों के स्वयंसेवकों ने बैंड,बांसुरी, ट्रंपेट पर अलग अलग धुनें बजाई। बांसुरी पर भजन मेरी झोपडी के भाग खुल जाएंगे,राम आएंगे, नमःशिवाय भजन की धुन भी बजाई गई।

हजारों लोग शामिल : इसमें संघ के स्वयंसेवकों के परिवारों के अलावा शहर के गणमान्य नागरिक, खिलाड़ी, रंगकर्मी, व्यापारी व अन्य क्षेत्रों के लोगों को आमंत्रित किया गया था। कुल मिलाकर आयोजन में हजारों लोग शामिल हुए। शताब्दी वर्ष के अन्य आयोजन फरवरी से दूसरे शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों में भी होंगे। मालवा प्रांत के स्वयंसेवको का शिविर भी शहर में जारी है। इस शिविर का नाम स्वर शतकम् दिया गया है। आयोजन में पूर्व लोकसभा स्‍पीकर सुमित्रा महाजन, भाजपा मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, मंत्री तुलसी सिलावट, इंदौर महापौर पुष्‍यमित्र भार्गव, सांसद शंकर लालवानी, विधायक मधू वर्मा, पूर्व महापौर कृष्‍णमुरारी मोघे समेत कई पदाधिकारी, नेता और अफसर मौजूद थे।

राऊ के एक स्कूल में इस शिविर में मालवा प्रांत के 28 जिलों के 800 स्वयंसेवक शिविर में शामिल हुए। शिविर में शामिल वक्ता रघुवीर सिंह ने संघ के गठन से लेकर अब तक की यात्रा की जानकारी दी। इसके अलाव संघ की रीति-नीति व विचारधारा से भी अवगत कराया। शुक्रवार को जय घोष कार्यक्रम दोपहर करीब 3 बजे शुरू हुआ। सबसे पहले स्वयंसेवक ने वादन की प्रस्तुति दी। इसके बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपनी बात रखी। कार्यक्रम के लिए मैदान के समीप ही पार्किंग की व्यवस्था की गई थी। इंदौर, भोपाल, उज्जैन, देवास, शाजापुर, रतलाम, मंदसौर, धार समेत कई जिलों, शहरी और ग्रामीण जिलों और इलाकों से लोग मोहन भागवत को सुनने और आयोजन में हिस्सा लेने पहुंचे।

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