सोनम वांगचुक बोले, चीन पर करना होगी 'बुलेट और वॉलेट' की दोहरी मार

Webdunia
रविवार, 21 जून 2020 (13:20 IST)
नई दिल्ली। बर्फ के रेगिस्तान लद्दाख में शिक्षा का चेहरा बदलने वाले सोनम वांगचुक का कहना है कि चीन ने अपनी आंतरिक परेशानियों से ध्यान हटाने के लिए सीमा पर भारत के साथ टकराव की रणनीति अपनाई है। सीमा पर तो जांबाज सैनिक इसका जवाब दे रहे हैं, लेकिन देश की जनता को भी चीनी सामान का बहिष्कार कर चीन पर बुलेट और वॉलेट की दोहरी मार करनी होगी।
 
शिक्षा और पर्यावरण के क्षेत्र में कई राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले सोनम वांगचुक ने पिछले दिनों लद्दाख में भारत और चीन की सेना के बीच हुए टकराव को चीन की सोची समझी साजिश करार दिया और 'बायकॉट मेड इन चाइना' अभियान की शुरूआत करते हुए देश के नागरिकों से चीन को आर्थिक मोर्चे पर घेरने का आह्वान किया।
 
सोनम वांगचुक का कहना है कि हम चीन से मोतियों से लेकर कपड़ों तक 5 लाख करोड़ का सामान खरीदते हैं और यही पैसा सीमा पर हथियार और बंदूक के तौर पर वापस हमारे सैनिकों की मौत का कारण बन सकता है।
 
रोलेक्स अवार्ड और रमन मैगसायसाय पुरस्कार हासिल करके अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि हासिल करने वाले सोनम वांगचुक का कहना है कि चीन सिर्फ भारत के साथ ही बिना वजह छेडछाड़ नहीं कर रहा, वह दक्षिण चीन सागर में वियतनाम, ताइवान और अब हांगकांग के साथ भी ऐसा ही कर रहा है। उनका मानना है कि चीन अपनी अंदरूनी समस्याओं से बचने के लिए इस तरह की हरकतों को अंजाम दे रहा है।
 
वांगचुक कहते हैं कि चीन में 140 करोड़ लोग मानव अधिकारों से महरूम हैं और उनसे बंधुआ मजदूरों की तरह काम लिया जाता है। बेरोजगारी आसमान छू रही है और ऐसे में चीन सरकार को अपनी जनता की नाराजगी और बगावत का डर है, इसीलिए वह सीमा पर इस तरह की घटनाओं से अपनी जनता का ध्यान भटकाना चाहता है।
 
सोनम वांगचुक के जिंदगी के सफर पर नजर डालें तो उनके रूप में एक बेहतरीन देशभक्त सामने आता है जो पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को बेहतर बनाकर सीमा पर सेना रखने पर होने वाले खर्च को शिक्षा पर खर्च करने की हिमायत करता है ताकि जमीन के टुकड़ों के साथ साथ देश के भविष्य की भी रक्षा हो सके।
 
एक सितंबर 1966 को लद्दाख के एक छोटे से गांव उले ताक्पो में जन्मे सोनम वांगचुक ने कदम दर कदम अपनी उपलब्धियों से अपनी पहचान बनाई है। उन्हें 9 साल की उम्र तक स्कूल नहीं भेजा जा सका क्योंकि उनके घर के आसपास कोई स्कूल नहीं था। उनकी मां ने उन्हें घर पर ही शुरूआती शिक्षा दी। सीमावर्ती क्षेत्रों के बच्चों के लिए सरकार द्वारा चलाए जा रहे निशुल्क आवासीय स्कूल विशेष केन्द्रीय विद्यालय, दिल्ली में उन्होंने शुरुआती पढ़ाई की और श्रीनगर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।
 
इंजीनियरिंग की पढ़ाई का खर्च जुटाने के लिए उन्होंने लेह में 10वीं कक्षा के विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए पहला कोचिंग स्कूल खोला और धीरे धीरे राज्य की लचर शिक्षा प्रणाली की पोल उनके सामने खुलने लगी। यहीं से उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में काम करने की प्रेरणा मिली, जो आगे चलकर पर्यावरण संरक्षण और हिम स्तूप के निर्माण जैसी अनूठी पहल के रूप में सामने आई। (भाषा)

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

Gold Prices : शादी सीजन में सोने ने फिर बढ़ाई टेंशन, 84000 के करीब पहुंचा, चांदी भी चमकी

Uttar Pradesh Assembly by-election Results : UP की 9 विधानसभा सीटों के उपचुनाव परिणाम, हेराफेरी के आरोपों के बीच योगी सरकार पर कितना असर

PM मोदी गुयाना क्यों गए? जानिए भारत को कैसे होगा फायदा

महाराष्ट्र में पवार परिवार की पावर से बनेगी नई सरकार?

पोस्‍टमार्टम और डीप फ्रीजर में ढाई घंटे रखने के बाद भी चिता पर जिंदा हो गया शख्‍स, राजस्‍थान में कैसे हुआ ये चमत्‍कार

सभी देखें

नवीनतम

Election Results : कुछ ही घंटों में महाराष्ट्र और झारंखड पर जनता का फैसला, सत्ता की कुर्सी पर कौन होगा विराजमान

LG ने की आतिशी की तारीफ, कहा- केजरीवाल से 1000 गुना बेहतर हैं दिल्ली CM

टमाटर अब नहीं होगा महंगा, जनता को मिलेगी राहत, सरकार ने बनाया यह प्लान

Wayanad bypolls: मतगणना के दौरान प्रियंका गांधी पर होंगी सभी की निगाहें, व्यापक तैयारियां

Manipur: मणिपुर में जातीय हिंसा में 258 लोग मारे गए, 32 लोग गिरफ्तार

अगला लेख