मणिपुर पर संसद में जारी हंगामा, बड़ा सवाल सत्र दर सत्र हंगामा संयोग या प्रयोग?

विकास सिंह
मंगलवार, 25 जुलाई 2023 (19:45 IST)
संसद का मानूसन सत्र की मंगलवार की कार्यवाही भी मणिपुर की भेंट चढ़ गई। 20 जुलाई से शुरु हुए मानसून सत्र में अब तक हर दिन की कार्यवाही मणिपुर में हुई हैवानियत की भेंट चढ़ चुकी है। इस बीच संसद में जारी हंगामे के बीच सरकार ने अपनी सरकारी कामकाज का काम निपटाना शुरु कर दिया है। मंगलवार को संसद में हंगामे के बीच सरकार ने जैव विविधता संशोधन बिल पास कर लिया। यह इस बात का साफ संकेत है कि सरकार अब सरकारी कामकाज निपटाने में जुट गई है। 

मणिपुर पर संसद में हंगामा-संसद के मानसून सत्र से ठीक एक दिन पहले वायरल हुए मणिपुर के लड़कियों से हैवानियत के वीडियो पर संसद में कोई कामकाज नहीं हो सका है। संसद में गतिरोध की वजह विपक्ष का पीएम मोदी के संसद में बयान देने की मांग है। वहीं सरकार का तर्क है कि इस पूरे मामले पर गृहमंत्री संसद में सरकार का पक्ष रखेंगे। बुधवार को सदन में मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा मणिपुर जल रहा है। हम मणिपुर की बात कर रहे हैं, पीएम मोदी ईस्ट इंडिया की बात कर रहे हैं। वे सदन में मणिपुर पर जवाब क्यों नहीं देते। इससे पहले सोमवार को संसद में हंगामे के चलते आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह को पूरे मानसून सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया है। सदन में पूरा विपक्ष अपने नए नाम INDIA के साथ पूरी तरह एकजुट नजर आ रहा है।

विपक्ष जहां संसद में मणिपुर पर पीएम मोदी के बयान पर अड़ा हुआ है, वहीं दूसरी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संसद के बाहर लगातर विपक्ष पर हमाला बोल रहे है। बुधवार को भाजपा संसदीय दल की बैठक में पीएम मोदी ने 2024 विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) को देश का अब तक का सबसे ‘दिशाहीन’ गठबंधन करार दिया। उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी तथा इंडियन मुजाहिदीन जैसे नामों का हवाला देते हुए कहा कि केवल देश के नाम के इस्तेमाल से लोगों को गुमराह नहीं किया जा सकता। पीएम ने विपक्ष की आलोचना की और भरोसा जताया कि 2024 के लोकसभा चुनावों में जीत के बाद सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को लगातार तीसरा कार्यकाल मिलना तय है।

सत्र दर सत्र हंगामा संयोग या प्रयोग?-ऐसा नहीं है कि संसद का मानसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ा रहा है। अगर संसद के पिछले कुछ सत्रों को देखें तो लगातार संसद का पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ता आया है। यह भी अजब संयोग या एक प्रयोग कि संसद के सत्र के ठीक पहले ऐसे कुछ घटनाए, बयान और रिपोर्ट सामने आ जाती है जिसकी भेंट संसद का पूरा सत्र चढ़ जाता है। मानसून सत्र से पहले इसी साल संसद का बजट सत्र भी अडानी-हिडनबर्ग की रिपोर्ट और लंदन में राहुल गांधी के लोकतंत्र वाले बयान पर हंगामे की भेंट चढ़ गया था। बजट सत्र के दौरान जहां विपक्ष अडानी मामले पर अड़ा था वहीं सत्ता पक्ष राहुल गांधी की माफी की मांग पर। जिसके चलते पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया था।

अगर पिछले कुछ सालों के संसद के सत्र पर नजर डाली जाए तो पाते है कि सत्र की शुरुआत से हंगामे के साथ होती है और जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे की बर्बादी के साथ सत्र खत्म होता है। कोरोना काल में जब संसद का सत्र पेगासस जासूसी कांड पर हंगामे की भेंट चढ़ गया है तो संसद का 2022 का मानसून सत्र संसद सचिवाल के उस विवादित सर्कुलर की भेंट चढ़ा था जिसमें संसद परिसर में धरना प्रदर्शन प्रतिबंधित किया गया था। वहीं संसद का शीतकालीन सत्र (दिसंबर-2022) अरुणाचल के तवांग में भारत- चीनी सैनिकों के झड़प और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के भाजपा को लेकर विवादित बयान को लेकर हंगामे की भेंट चढ़ा था।  

हंगामे की भेंट चढ़ती जनता की गाढ़ी कमाई!-संसद के एक के बाद सत्र के हंगामे की भेंट चढ़ने से जहां कामकाज प्रभावित हो रहा है वहीं जनता से जुड़े मुद्दों पर संसद में बहस भी नहीं हो पा रही है। पिछले कई सत्रों से देखने को मिल रहा है कि सदन शुरु होने से पहले अचानक कोई मुद्दा सामने आता  है और संसद की पूरी कार्यवाही उसके भेंट चढ़ जाती है। इनमें चाहे पेगासस जासूसी मामले का खुलासा हो या अडानी पर हिडनबर्ग की रिपोर्ट।।

संसद में लगातार हंगामा होने से जनता की गाढ़ी कमाई भी एक तरह से बर्बाद हो रही है। एक अनुमान के मुताबिक प्रति मिनट संसद की कार्यवाही पर 2.50 लाख रुपए और एक घंटे की कार्यवाही पर 1.5 करोड़ रुपए खर्च होते है। वहीं संसद सत्र के दौरान एक दिन का खर्चा 9 करोड़ रुपए के आसपास आता है। संसद की कार्यवाही के दौरान सबसे अधिक खर्च सांसदों के वेतन,सत्र के दौरान सांसदों को मिलने वाली सुविधाएं और भत्ते, सचिवालय के कर्मचारियों की सैलरी और संसद सचिवालय पर किए जाते हैं।

असल में लोकतंत्र में संसद वह मंच है जहां जनहित के मुद्दों को विपक्ष उठाकर और उस पर बहस कर सरकार का ध्यान उस मुद्दें की ओर आकृष्ट करता है और संसद में होने वाली बहस से सरकार पर एक दबाव भी बनता है।

सत्र दर सत्र हंगामे की भेंट चढ़ती संसद देश की जनता के लिए भी चिंता का विषय है। संसद में हर दिन होने वाले हंगामे से देश के ज्यादातर लोग निराश हैं। उन्हें लगता है कि उनसे जुड़ी समस्याओं और राष्ट्रीय महत्व के विषय पर संसद में चर्चा हो पाएगी या नहीं।

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