Lalita Panchami Vrat के दिन क्या करें, ललिता देवी के 5 रहस्य

Webdunia
गुरुवार, 29 सितम्बर 2022 (17:32 IST)
Lalita Panchami 2022 Date: हिन्दू पंचांग के अनुसार 30 सिंतबर 2022 के ललिता पंचमी व्रत रखा जाएगा। यह व्रत गुजरात और महाराष्ट्र में विशेष तौर पर रखा जाता है। ललिता देवी को दस महाविद्याओं में से एक माना जाता है, जिन्हें राज राजेश्वरी और त्रिपुर सुंदरी भी कहा जाता है। आश्‍विन माह की पंचमी को इनकी पूजा होती है।
 
ललिता देवी पूजन विधि | Mata Lalita Pujan Vidhi
 
1. मां ललिता की पूजा करना चाहते हैं तो सूर्यास्त से पहले उठें और सफेद रंग के वस्त्र धारण करें।
 
2. इसके बाद एक चौकी लें और उस पर गंगाजल छिड़कें और स्वंय उतर दिशा की और बैठ जाएं फिर चौकी पर सफेद रंग का कपड़ा बिछाएं। 
 
3. चौकी पर कपड़ा बिछाने के बाद मां ललिता की तस्वीर स्थापित करें। यदि आपको तस्वीर न मिले तो आप श्री यंत्र भी स्थापित कर सकते हैं। 
 
4. इसके बाद मां ललिता का कुमकुम से तिलक करें और उन्हें अक्षत, फल, फूल, दूध से बना प्रसाद या खीर अर्पित करें। 
 
5. यह सभी चीजें अर्पित करने के बाद मां ललिता की विधिवत पूजा करें और ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः॥ मंत्र का जाप करें। 
 
6. इसके बाद मां ललिता की कथा सुनें या पढ़ें। 
 
7. कथा पढ़ने के बाद मां ललिता की धूप व दीप से आरती उतारें। 
 
8. इसके बाद मां ललिता को सफेद रंग की मिठाई या खीर का भोग लगाएं और माता से पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा मांगें। 
 
9. पूजा के बाद प्रसाद का नौ वर्ष से छोटी कन्याओं के बीच में वितरण कर दें। 
 
10. यदि आपको नौ वर्ष से छोटी कन्याएं न मिले तो आप यह प्रसाद गाय को खिला दें। 
ललिता देवी के 5 रहस्य | 5 Secrets of Lalita Devi:
 
1. शक्तिपीठ : भारतीय राज्य त्रिपुरा में स्थित त्रिपुर सुंदरी का शक्तिपीठ है माना जाता है कि यहां माता के धारण किए हुए वस्त्र गिरे थे। त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ भारतवर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक है। दक्षिणी-त्रिपुरा उदयपुर शहर से तीन किलोमीटर दूर, राधा किशोर ग्राम में राज-राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी का भव्य मंदिर स्थित है, जो उदयपुर शहर के दक्षिण-पश्चिम में पड़ता है। यहां सती के दक्षिण 'पाद' का निपात हुआ था। यहां की शक्ति त्रिपुर सुंदरी तथा शिव त्रिपुरेश हैं। इस पीठ स्थान को 'कूर्भपीठ' भी कहते हैं।
 
2. त्रिपुर सुंदरी : देवी ललिता को त्रिपुर सुंदरी भी कहते हैं। षोडशी माहेश्वरी शक्ति की विग्रह वाली शक्ति है। इनकी चार भुजा और तीन नेत्र हैं। इनमें षोडश कलाएं पूर्ण है इसलिए षोडशी भी कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि महाविद्या समुदाय में त्रिपुरा नाम की अनेक देवियां हैं, जिनमें त्रिपुरा-भैरवी, त्रिपुरा और त्रिपुर सुंदरी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
 
3. त्रिपुर सुंदरी या ललिता माता का मंत्र- दो मंत्र है। रूद्राक्ष माला से दस माला जप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।
 
1.  'ऐ ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:'
 
2. 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:।'
 
4. ललिता देवी की साधना : ललिता माता की पूजा-अर्चना, व्रत एवं साधना मनुष्य को शक्ति प्रदान करते हैं। ललिता देवी की साधान से समृद्धि की प्राप्त होती है। दक्षिणमार्गी शाक्तों के मतानुसार देवी ललिता को चण्डी का स्थान प्राप्त है। इनकी पूजा पद्धति देवी चण्डी के समान ही है तथा ललितोपाख्यान, ललितासहस्रनाम, ललितात्रिशती का पाठ किया जाता है। 
 
5. पुराण में वर्णन : देवी ललिता आदि शक्ति का वर्णन देवी पुराण में प्राप्त होता है। भगवान शंकर को हृदय में धारण करने पर सती नैमिष में लिंगधारिणीनाम से विख्यात हुईं इन्हें ललिता देवी के नाम से पुकारा जाने लगा। एक अन्य कथा अनुसार ललिता देवी का प्रादुर्भाव तब होता है जब भगवान द्वारा छोडे गए चक्र से पाताल समाप्त होने लगा। इस स्थिति से विचलित होकर ऋषि-मुनि भी घबरा जाते हैं और संपूर्ण पृथ्वी धीरे-धीरे जलमग्न होने लगती है। तब सभी ऋषि माता ललिता देवी की उपासना करने लगते हैं। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी जी प्रकट होती हैं तथा इस विनाशकारी चक्र को थाम लेती हैं। सृष्टि पुन: नवजीवन को पाती है।

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