जिसको सबका नाथ बनाना होता है भगवान उसे अनाथ बना देते

गिरीश पांडेय
रविवार, 28 मई 2023 (14:20 IST)
अपवाद संभव है, पर 28 मई 1921 को गढ़वाल (उत्तरांचल) जिले के कांडी गांव में जन्मे राय सिंह बिष्‍ट के इकलौते पुत्र कृपाल सिंह बिष्‍ट (अवेद्यनाथ) के साथ तो यही हुआ। चपन में माता-पिता, कुछ बड़े हुए तो पाल्य दादी की मौत से अनाथ हुए तो मन विरक्त हो गया।

ऋषिकेश में संन्यासियों के सत्संग से हिंदू धर्म, दर्शन, संस्कृत और संस्कृति के प्रति रुचि जगी तो शांति की तलाश में केदारनाथ, ब्रदीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और कैलाश मानसरोवर की यात्रा की। वापसी में हैजा होने पर साथी उनको मरा समझ आगे बढ़ गए। ठीक हुए तो मन और विरक्त हो उठा।

इसके बाद नाथ पंथ के जानकार योगी निवृत्तिनाथ, अक्षयकुमार बनर्जी और गोरक्षपीठ के सिद्ध महंत रहे गंभीरनाथ के शिष्य योगी शांतिनाथ से भेंट (1940) हुई। निवृत्तिनाथ द्वारा ही महंत दिग्विजयनाथ से भेंट हुई। पहली भेंट में शिष्य बनने की अनिच्छा।

करांची के एक सेठ की उपेक्षा के बाद शांतिनाथ की सलाह पर गोरक्षपीठ में आकर नाथ पंथ में दीक्षित होना। क्या यह सब यूं ही हो गया, शायद नहीं, यह सब इसलिए होता गया, क्योंकि उनको हिंदू समाज का नाथ बनना था।अपने उस गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की मदद करनी थी जो पूरी मुखरता एवं दमदारी से उस समय हिंदुत्व की बात कर रहे थे, जब इसे गाली समझा जाता था।

मीनाक्षीपुरम के धर्मांतरण की घटना से आहत होकर राजनीति में आए
ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ देश के संत समाज में बेहद सम्मानीय एवं सर्वस्वीकार्य थे। दक्षिण भारत के रामनाथपुरम मीनाक्षीपुरम में हरिजनों के सामूहिक धर्मांतरण की घटना से वे खासे आहत हुए थे। इसका विस्तार उत्तर भारत में न हो, इसके लिए वे सक्रिय राजनीति में आए।

4 बार सांसद एवं 5 बार रहे विधायक
उन्होंने चार बार (1969, 1989, 1991 और 1996) गोरखपुर सदर संसदीय सीट से यहां के लोगों का प्रतिनिधित्व किया। अंतिम लोकसभा चुनाव को छोड़ उन्होंने सभी चुनाव हिंदू महासभा के बैनर तले लड़े। लोकसभा के अलावा उन्होंने (1962, 1967, 1969, 1974 और 1977) में मानीराम विधानसभा का भी प्रतिनिधित्व किया।

1984 में शुरु रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के शीर्षस्थ नेताओं में शुमार श्रीरामजन्म भूमि यज्ञ समिति के अध्यक्ष व रामजन्म भूमि न्यास समिति के आजीवन सदस्य रहे। योग व दर्शन के मर्मज्ञ महंतजी के राजनीति में आने का मकसद हिंदू समाज की कुरीतियों को दूर करना और राम मंदिर आंदोलन को गति देना रहा है।

बहुसंख्यक समाज को जोड़ने के लिए सहभोजों के क्रम में उन्होंने बनारस में संतों के साथ डोमराजा के घर सहभोज किया। महंत अवेद्यनाथ ने वाराणसी व हरिद्वार में संस्कृत का अध्ययन किया है। वे महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से जुड़ी शैक्षणिक संस्थाओं के अध्यक्ष व मासिक पत्रिका योगवाणी के संपादक भी रहे।

उन्होंने ताउम्र अयोध्या स्थित जन्मभूमि पर भव्य एवं दिव्य राम मंदिर का सपना देखा। उस सपने को साकार होता देख यकीनन स्वर्ग में वे खुश हो रहे होंगे। यह खुशी यह सोचकर और बढ़ जाती होगी कि जब यह सपना मूर्तरूप ले रहा है तो उनके ही शिष्य के हाथों उत्तर प्रदेश की कमान भी है।

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