अनेक जीवों का उद्धार करने वाली पुण्यदायिनी मां नर्मदा की जयंती...

Webdunia
* मां नर्मदा का जन्मदिवस एवं जयंती महोत्सव
 
युगों से हम सभी शक्ति की उपासना करते आए हैं। चाहे वह दैविक, दैहिक तथा भौतिक ही क्यों न हो, हम इसका सम्मान और पूजन करते हैं। ऐसे में कोई शक्ति अजर-अमर होकर लोकहित में अग्रसर रहे तो उनका जन्म कौन नहीं मनाएगा।
 
प्रतिवर्ष पुण्यदायिनी मां नर्मदा का जन्मदिवस यानी माघ शुक्ल सप्तमी को नर्मदा जयंती महोत्सव मनाया जाता है। इस वर्ष नर्मदा जयंती 24 जनवरी को मनाई जाएगी। वैसे तो संसार में 999 नदियां हैं, पर नर्मदाजी के सिवा किसी भी नदी की प्रदक्षिणा करने का प्रमाण नहीं देखा। ऐसी नर्मदाजी अमरकंटक से प्रवाहित होकर रत्नासागर में समाहित हुई है और अनेक जीवों का उद्धार भी किया है।

 
एक समय सभी देवताओं के साथ में ब्रह्मा-विष्णु मिलकर भगवान शिव के पास आए, जो कि (अमरकंटक) मेकल पर्वत पर समाधिस्थ थे। वे अंधकासुर राक्षस का वध कर शांत-सहज समाधि में बैठे थे। अनेक प्रकार से स्तुति-प्रार्थना करने पर शिवजी ने आंखें खोलीं और उपस्थित देवताओं का सम्मान किया।
 
देवताओं ने निवेदन किया- हे भगवन्‌! हम देवता भोगों में रत रहने से, बहुत-से राक्षसों का वध करने के कारण हमने अनेक पाप किए हैं, उनका निवारण कैसे होगा आप ही कुछ उपाय बताइए। तब शिवजी की भृकुटि से एक तेजोमय बिन्दु पृथ्वी पर गिरा और कुछ ही देर बाद एक कन्या के रूप में परिवर्तित हुआ। उस कन्या का नाम नर्मदा रखा गया और उसे अनेक वरदानों से सज्जित किया गया।

 
'माघै च सप्तमयां दास्त्रामें च रविदिने।
मध्याह्न समये राम भास्करेण कृमागते॥'
 
- माघ शुक्ल सप्तमी को मकर राशि सूर्य मध्याह्न काल के समय नर्मदाजी को जल रूप में बहने का आदेश दिया।
 
तब नर्मदाजी प्रार्थना करते हुए बोली- 'भगवन्‌! संसार के पापों को मैं कैसे दूर कर सकूंगी?'
 
तब भगवान विष्णु ने आशीर्वाद रूप में वक्तव्य दिया- 
 
'नर्मदे त्वें माहभागा सर्व पापहरि भव। 
त्वदत्सु याः शिलाः सर्वा शिव कल्पा भवन्तु ताः।'
 
- अर्थात् तुम सभी पापों का हरण करने वाली होगी तथा तुम्हारे जल के पत्थर शिव-तुल्य पूजे जाएंगे।
 
तब नर्मदा ने शिवजी से वर मांगा। जैसे उत्तर में गंगा स्वर्ग से आकर प्रसिद्ध हुई है, उसी प्रकार से दक्षिण गंगा के नाम से प्रसिद्ध होऊं।

 
शिवजी ने नर्मदाजी को अजर-अमर वरदान और अस्थि-पंजर राखिया शिव रूप में परिवर्तित होने का आशीर्वाद दिया। इसका प्रमाण मार्कण्डेय ऋषि ने दिया, जो कि अजर-अमर हैं। उन्होंने कई कल्प देखे हैं। इसका प्रमाण मार्कण्डेय पुराण में है।
 
नर्मदाजी का तट सुर्भीक्ष माना गया है। पूर्व में भी जब सूखा पड़ा था तब अनेक ऋषियों ने आकर प्रार्थनाएं कीं कि भगवन्‌ ऐसी अवस्था में हमें क्या करना चाहिए और कहां जाना चाहिए? आप त्रिकालज्ञ हैं तथा दीर्घायु भी हैं।


तब मार्कण्डेय ऋषि ने कहा कि कुरुक्षेत्र तथा उत्तरप्रदेश को त्याग कर दक्षिण गंगा तट पर निवास करें। नर्मदा किनारे अपनी तथा सभी के प्राणों की रक्षा करें।
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

गुड़ी पड़वा से शुरू हो रही है 8 दिन की चैत्र नवरात्रि, हाथी पर सवार होकर आएंगी माता रानी, जानिए फल

jhulelal jayanti 2025: भगवान झूलेलाल की कहानी

चैत्र नवरात्रि पर घट स्थापना और कलश स्थापना क्यों करते हैं?

जानिए कब शुरू हो रही है केदारनाथ समेत चार धाम की यात्रा

51 शक्तिपीठों में से एक है कोलकाता का कालीघाट मंदिर, सोने से बनी है मां काली की जीभ

सभी देखें

धर्म संसार

24 मार्च 2025 : आपका जन्मदिन

24 मार्च 2025, सोमवार के शुभ मुहूर्त

Weekly Rashifal 2025: इस सप्ताह किन राशियों का चमकेगा भाग्य, पढ़ें अपना साप्ताहिक राशिफल

Weekly Panchang 2025 : साप्ताहिक कैलेंडर हिन्दी में, जानें मार्च माह के अंतिम सप्ताह के शुभ मुहूर्त

चैत्र नवरात्रि की सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि का क्या है महत्व?

अगला लेख