उत्तर भारत के 10 विवादित स्थल जिन पर है दोनों ही पक्षों का दावा

Webdunia
मंगलवार, 17 मई 2022 (15:27 IST)
Mandir Masjid vivad : कंबोडिया के अंकोरवाट मंदिर को हम देखते हैं तो पता चलता है कि भारत गुप्तकाल में किस भव्यता के साथ खड़ा था। 7वीं सदी के पूर्व भारतीय लोग शांत और सुरक्षित जीवन जी रहे थे। युद्ध थे लेकिन युद्ध का स्वरूप अलग था। लेकिन सम्राट पुलकेशिन द्वितीय और हर्षवर्धन के जाने के बाद भारत का भाग्य पलट गया। विदेशी आक्रांताओं ने भारत को खंडहर में बदल दिया। इस दौरान भारत के मंदिर तोड़े गए और वहां पर विदेशियों ने अपने धर्म के ढांचे खड़े किए, जिन पर आज विवाद है। ऐसे ही 10 विवादित स्थलों की संक्षिप्त जानकारी।
 
 
1. ताजमहल : विदेशियों द्वारा लिखे गए भारतीय इतिहास के पन्नों में यह लिखा है कि ताजमहल को शाहजहां ने मुमताज के लिए बनवाया था। लेकिन हिन्दू दावों के अनुसार यह एक विशालकाय किला और महल था जिसके भीतर तेजोमहालय नामक एक मंदिर था। ताजमहल को शाहजहां ने नहीं बनवाया था वह तो पहले से बना हुआ था। उसने इसमें हेर-फेर करके इसे इस्लामिक लुक दिया था। प्रसिद्ध शोधकर्ता और इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक ने अपनी शोधपूर्ण पुस्तक में तथ्‍यों के माध्यम से ताजमहल को एक हिन्दू इमारत सिद्ध करने के लिए 700 से ज्यादा सबूत दिए हैं। इसके बनने टूटने और फिर ताजमहल बनने की पूरी कहानी उनकी पुस्तक में पढ़ी जा सकती है।
 
 
2. कुतुब मीनार : हिन्दू दावों के अनुसार कुतुब मीनार को पहले विष्णु स्तंभ कहा जाता था। इससे पहले इसे सूर्य स्तंभ कहा जाता था। इसके केंद्र में ध्रुव स्तंभ था जिसे आज कुतुब मीनार कहा जाता है। यह एक वेधशाला थी जो वराहमिहिर की देखरेख में चंद्रगुप्त द्वितिय के आदेश से बनी थी। ऐसा भी कहते हैं कि समुद्रगुप्त ने दिल्ली में एक वेधशाला बनवाई थी, यह उसका सूर्य स्तंभ है। कालान्तर में अनंगपाल तोमर और पृथ्वीराज चौहान के शासन के समय में उसके आसपास कई मंदिर और भवन बने, जिन्हें मुस्लिम हमलावरों ने दिल्ली में घुसते ही तोड़ दिया था। मुस्लिम दावे के अनुसार गुलाम वंश के पहले शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1199 में कुतुब मीनार का निर्माण शुरू करवाया था और उसके दामाद एवं उत्तराधिकारी शमशुद्दीन इल्तुतमिश ने 1368 में इसे पूरा किया था। कुतुबुद्दीन ऐबक ने वहां 'कुबत−उल−इस्लाम' नाम की मस्जिद का निर्माण भी कराया और इल्तुतमिश ने उस सूर्य स्तंभ में तोड़-फोड़कर उसे मीनार का रूप दे दिया था। कुतुब मीनार की चारदीवारी में खड़ा लौह स्तंभ सच बयां कर देता है। 
 
3. लाल किला : कहते हैं कि लाल किला शाहजहां ने बनवाया था। शाहजहां ने 1638 में आगरा से दिल्ली को राजधानी बनाया तथा दिल्ली के लाल किले का निर्माण प्रारंभ किया। अनेक मुस्लिम विद्वान इसका निर्माण 1648 ई. में पूरा होना मानते हैं। लेकिन ऑक्सफोर्ड बोडिलियन पुस्तकालय में एक चित्र सुरक्षित है जिसमें 1628 ई. में फारस के राजदूत को शाहजहां के राज्याभिषेक पर लाल किले में मिलता हुआ दिखलाया गया है। यदि किला 1648 ई. में बना तो यह चित्र सत्य का अनावरण करता है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि तारीखे फिरोजशाही में लेखक लिखता है कि सन 1296 के अंत में जब अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना लेकर दिल्ली आया तो वो कुश्क-ए-लाल (लाल प्रासाद/महल ) की ओर बढ़ा और वहां उसने आराम किया।
 
 
कुछ इतिहासकारों के अनुसार लालकोट का एक पुरातन किला एवं हवेली बताते हैं जिसे शाहजहां ने कब्जा करके इस पर तुर्क छाप छोड़ी थी। हिन्दू दावों के अनुसार इसकी स्थापना तोमर शासक राजा अनंगपाल ने 1060 में की थी। साक्ष्य बताते हैं कि तोमर वंश ने दक्षिण दिल्ली क्षेत्र में लगभग सूरज कुण्ड के पास शासन किया, जो 700 ईस्वी से आरम्भ हुआ था। फिर चौहान राजा, पृथ्वी राज चौहान ने 12वीं सदी में शासन ले लिया और उस नगर एवं किले का नाम किला राय पिथौरा रखा था। इतिहासकार मानते हैं कि शाहजहां (1627-1658) ने जो कारनामा तेजोमहल के साथ किया वही कारनामा लाल कोट के साथ।
 
 
4. आगरा का किला : उत्तरप्रदेश के आगरा में स्थित आगरा के किले में मुगल बादशाह बाबर, हुंमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां व औरंगजेब रहते थे। ये सभी विदेशी थे जिन्हें भारत में तुर्क कहा जाता था। आगरा का किला मूलतः एक ईंटों का किला था, जो चौहान वंश के राजपूतों के पास था। इस किले का प्रथम विवरण 1080 ईस्वी में आता है, जब महमूद गजनवी की सेना ने इस पर कब्जा कर लिया था। सिकंदर लोधी (1487-1517) ने भी इस किले में कुछ दिन गुजारे थे। लोधी दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था। उसकी मृत्यु भी इसी किले में 1517 में हुई थी। इसके बाद उसके पुत्र इब्राहीम लोधी ने गद्दी संभाली। इतिहासकार अबुल फजल ने लिखा है कि यह किला एक ईंटों का किला था जिसका नाम बादलगढ़ था। यह तब खस्ता हालत में था। अकबर ने इसका जीर्णोद्धार करवाया। हिन्दू शैली में बने किले के स्तंभों में बाद में तुर्क शैली में नक्काशी की गई। बाद में अकबर के पौत्र शाहजहां ने इसे अपने तरीके से रंग-रूप दिया। उसने किले के निर्माण के समय राजपुताना समय की कई पुरानी इमारतों व भवनों को तुड़वा भी दिया था।

 
5. ढाई दिन का झोपड़ा : अजमेर में दरगाह के पास एक स्ट्रक्चर है जिसे ढाई दिन का झोपड़ा कहा जाता है। पहले यहां एक संस्कृत पाठशाला थी। पिछले 800 वर्षों से यह परिसर अढ़ाई दिन का झोपड़ा नाम से विख्यात है। यह नाम इसलिए रखा गया है, क्योंकि पहले परिसर के 3 मंदिरों को ढाई दिन के भीतर मस्जिद के रूप में बदल दिया गया था। यह मस्जिद वर्तमान में राजस्थान के अजमेर में स्थित है। पहले यह संस्‍कृत पाठशाला थी। इसे मोहम्‍मद गौरी ने मस्जिद में तब्‍दील कर दिया। इसे मस्जिद का लुक देने के लिए अबु बकर ने डिजाइन तैयार किया था। अब लोग इसे ढाई दिन का झोपड़ा कहते हैं।
माना जाता है कि ख्‍वाजा साहब (1161 ईस्वी) की दरगाह से एक फर्लांग आगे त्रिपोली दरवाजे के पार पृथ्वीराज चौहान के एक पूर्वज द्वारा बनवाए गए 3 मंदिरों के परिसर में एक संस्कृत पाठशाला थी जिसकी स्थापना पृथ्वीराज चौहान के पूर्वज विग्रहराज तृतीय ने लगभग 1158 ईस्वी में की थी। वह साहित्य प्रेमी था और स्वयं नाटक लिखता था। उनमें से एक हरकेली नाटक काले पत्थरों पर उत्कीर्ण किया गया, जो अजमेर स्थित अकबर किला के राजपुताना संग्रहालय में आज भी संग्रहित है।
 
 
6. काशी विश्‍वनाथ : द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था। उसे ही 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था। लेकिन एक बार फिर बनने के बाद इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से मंदिर का निर्माण किया गया, जिसे 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर तुड़वाकर ज्ञानवापी मस्जिद बना दी गई। इसी के पास 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था। 
 
7. कृष्ण जन्मभूमि : मथुरा में भगवान कृष्ण की जन्मभूमि है और उसी जन्मभूमि के आधे हिस्से पर बनी है ईदगाह। औरंगजेब ने 1660 में मथुरा में कृष्ण मंदिर को तुड़वाकर ईदगाह बनवाई थी। यहां पहला मंदिर 80-57 ईसा पूर्व बनाया गया था। शिलालेख से ज्ञात होता है कि किसी 'वसु' नामक व्यक्ति ने यह मंदिर बनाया था। 

दूसरा मंदिर विक्रमादित्य के काल में बनवाया गया था। इस भव्य मंदिर को सन् 1017-18 ई. में महमूद गजनवी ने तोड़ दिया था। बाद में इसे महाराजा विजयपाल देव के शासन में सन् 1150 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने बनवाया। यह मंदिर पहले की अपेक्षा और भी विशाल था जिसे 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा डाला। फिर ओरछा के शासक राजा वीरसिंह जूदेव बुंदेला ने पुन: इस खंडहर पड़े स्थान पर एक भव्य मंदिर बनवाया। लेकिन इसे भी मुस्लिम शासकों ने सन् 1660 में नष्ट कर इसकी भवन सामग्री से जन्मभूमि के आधे हिस्से पर एक भव्य ईदगाह बनवा दी, जो कि आज भी विद्यमान है। 1669 में इस ईदगाह का निर्माण कार्य पूरा हुआ।
 
 

8. बिना नींव की मस्जिद : मुस्लिम पक्ष मानते हैं कि यह मस्जिद 800 साल पहले जिन्नातों ने बनाई थी। हिन्दू पक्ष मानता है कि यह पहले मंदिर था जिले राजा भोज ने बनवाया था। मध्यप्रदेश की तीर्थ नगरी उज्जैन में क्षिप्रा तट पर स्थित इस मस्जिद में में गणेश प्रतिमा और कई हिन्दू अवशेषों चिन्हों की बात कही जा रही है। 16वीं सदी में मुस्लिम मुगल शासकों द्वारा इस पर कब्जा करके इसे मस्जिद बना दिया गया। महामंडलेश्वर अतुलेशानंद महाराज ने यहां की वीडियोग्राफी करने की मांग की है और यह भी कहा जा रहा है कि यहा पर खंभे और दीवारों पर स्थित मूर्तियों को धीरे धीरे घीसा जा रहा है और हिन्दू अवशेषों को मिटाया जा रहा है। 
 
 
9. भोजशाला : धार, भोपाल और उज्जैन भोज राजाओं की राजधानी थी। राजा भोज सरस्वती के उपासक थे इसलिए उन्होंने धार में सरस्वती का एक भव्य मंदिर बनवाया था। राजा भोज ने सन् 1034 में मां सरस्वती की अनूठी मूर्ति का निर्माण कराकर भोजशाला में प्रतिष्ठित किया था। तभी से वसंत पंचमी के दिन सरस्वती जन्मोत्सव मनाया जाता है, लेकिन पिछले कुछ सालों से यहां विवाद गहरा गया है। इतिहासकार शिवकुमार गोयल अनुसार 1305 में इस भोजशाला मंदिर को अलाउद्दीन खिलजी ने ध्वस्त कर दिया था। खिलजी द्वारा ध्वस्त कराई गई भोजशाला के एक भाग पर 1401 में दिलावर खां गौरी ने मस्जिद बनवाई थी। सन् 1514 में महमूद शाह खिलजी ने शेष भाग पर भी मस्जिद बनवा दी। हिन्दू जनता ने अनेक ऐतिहासिक तथ्‍य प्रस्तुत कर यहां फिर से भोजशाला का निर्माण करने की मांग रखी है, लेकिन मामला अब विवादित हो चला है।
 
 
10. मांडव : संपूर्ण मांडव को परमारवंश के राजा ने बसाया था। यहां के सभी महल और स्मारक परमारवंशियों ने बनवाए थे। मांडू मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित एक पर्यटन स्थल है। तेरहवीं शती में मालवा के सुलतानों ने इसका नाम शादियाबाद यानि 'खुशियों का शहर' रख दिया था। यहां के दर्शनीय स्थलों में जहाज महल, हिन्डोला महल, शाही हमाम और आकर्षक नक्काशीदार गुम्बद वाली मस्जिद सभी को इस्लामिक लुक देकर उन पर अरबी में इबारतें लिख दी गई। परमार शासकों द्वारा बनाए गए इस नगर में जहाज और हिंडोला महल खास हैं। होशंगशाह की मस्जिद, जामी मस्जिद, नहर झरोखा, बाज बहादुर महल, रानी रूपमति महल और नीलकंठ महल सभी परमारकालीन स्थापत्य कला की छाप है। होशंगशाह मालवा का प्रथम सुलतान था जिसने राजाभोज द्वारा बनाए गए स्मारकों, स्तंभों, बावड़ियों, मंदिरों आदि सभी भव्य स्‍थलों तो तोड़ा और कुछ का इस्लामिकरण किया। माण्डव में मलिक मुगिस की मस्जिद एवं दिलावर खां की मस्जिद स्थित है। जिनका निर्माण भी हिन्दू एवं जैन मंदिरों की सामग्रियों से ही हुआ था। यह सामग्री धार व मालवा के अन्य हिन्दू देवालयों एवं जैन मंदिरों से माण्डव में लाई गई थी। हालांकि यह दोनों ही मस्जिद अब नष्ट प्रायः है। इस बाद के उल्लेख मांडव के राममंदिर में लगी एक पट्टीका में मिलता है कि किस तरह मांडव में विध्‍वंस और कत्लेआम किया गया था।
 
 
राम जन्मभूमि :इतिहासकारों के अनुसार 1528 में बाबर के सेनापति मीर बकी ने अयोध्या में राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनवाई थी। बाबर एक तुर्क था। उसने बर्बर तरीके से हिन्दुओं का कत्लेआम कर अपनी सत्ता कायम की थी। मंदिर तोड़ते वक्त 10 हजार से ज्यादा हिन्दू उसकी रक्षा में मारे गए थे। इसके लिए कई आंदोलन चले और मामला आखिरकार कोर्ट में जाने के बाद कोर्ट का फैसला हिन्दुओं के पक्ष में आया और अब यह विवाद का विषय नहीं रहा। 

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