क्या पंढरपुर मेले पर भी पड़ेगा कोरोना का साया

अनिरुद्ध जोशी
पंढरपुर की यात्रा आजकल आषाढ़ में तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को होती है। देवशयनी और देवोत्थान एकादशी को वारकरी संप्रदाय के लोग यहां यात्रा करने के लिए आते हैं। यात्रा को ही 'वारी देना' कहते हैं। प्रत्येक वर्ष देवशयनी एकादशी के मौके पर पंढरपुर में लाखों लोग भगवान विट्ठल और रुक्मणि की महापूजा देखने के लिए एकत्रित होते हैं।
 
 
महाराष्ट्र में करोना के संक्रामण के चलते पंढरपुर मेले को लेकर स्थानीय प्रशासन ने कुछ नियम बनाए हैं। तीन हफ्‍ते पहले सरकार ने घोषणा की थी कि भगवान विठ्ठल के दर्शन करने के पहले वारकरियों को कोविड-19 के दोनों टीके लेने होंगे। पंढरपुर की नगराध्यक्ष ने साधना भोसले ने सरकार से मांग की है कि कोरोना वैक्सीन की दो डोज पूरी कर चुके वारकरियों को ही पंढरपुर में प्रवेश दिया जाए। हालांकि सरकार ने आषाढ़ी एकादशी के लिए पंढरी जाने के नियमों की घोषणा की है, लेकिन वारकरी पैदल वारी पर जोर दे रहे हैं।
 
इस बार 6 दिन रहेगी पालकी : पंढरपुर में कई महत्वपूर्ण मठों में कोविड केयर सेंटर चल रहे हैं। पिछले साल पंढरपुर में पालकी का प्रवास 3 दिन में समाप्त हुआ था। लेकिन इस साल पालकी 6 दिन पंढरपुर में रहेगी। इसलिए, कई भक्त दर्शन में आने से डरते हैं।
 
मेला और यात्रा : यहां मेला लगता है। लोग दूर दूर से यात्रा करते हुए यहां आते हैं। भगवान विष्णु के अवतार विठोबा और उनकी पत्नी रुक्मणि के सम्मान में इस शहर में वर्ष में 4 बार त्योहार मनाने एकत्र होते हैं। इनमें सबसे ज्यादा श्रद्धालु आषाढ़ के महीने में फिर क्रमश: कार्तिक, माघ और श्रावण महीने में एकत्रित होते हैं। ऐसी मान्यता है कि ये यात्राएं पिछले 800 सालों से लगातार आयोजित की जाती रही हैं। भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से पताका-डिंडी लेकर इस तीर्थस्थल पर लोग पैदल चलकर पहुंचते हैं। इस यात्रा क्रम में कुछ लोग अलंडि में जमा होते हैं और पुणे तथा जजूरी होते हुए पंढरपुर पहुंचते हैं। इनको ज्ञानदेव माउली की डिंडी के नाम से दिंडी जाना जाता है।

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