क्या पति-पत्नी का 7 जन्मों का रिश्ता होता है?

अनिरुद्ध जोशी
हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि पति और पत्नी का सात जन्मों का रिश्ता होता है। सवाल यह उठता है कि क्या पति-पत्नी का पिछले जन्मों का रिश्ता होता है? आखिर यह मान्यता कैसे स्थापित हुई। आओ जानते हैं सब कुछ।
 
 
1.हिन्दू धर्म में 7 फेरे और 7 वचन का प्रचलन है। संभवत: इसीलिए यह धारणा प्रचलन में आई होगी कि पति-पत्नी का संबंध 7 जन्मों तक होता है।
 
2.हिन्दू धर्म में तलाक और लिव-इन-रिलेशनशिप जैसी कोई बुराई नहीं है इसी कारण यह मान्यता भी दृढ़ होती है कि एक बार जिस व्यक्ति का किसी से विवाह हो जाता है तो मृत्युपर्यन्त जारी रहता है और उस विवाह में पवित्रता होती है।
 
3. पुनर्जन्म का सिद्धांत हमारे रिश्तों, संबंधों आदि के साथ एक चक्र के रूप में चलता रहा है। कोई मित्र है, कोई शत्रु है, तो कोई प्रेमी है। कोई पति है, तो कोई पत्नी है। कोई, माता या पिता है, तो कोई भाई या बहन। ज्योतिष के अनुसार कुंडली में भी ऐसे कई योग होते हैं जिसके चलते यह पता चलता है कि आपका पुत्र, पुत्री या आपकी पत्नी आपके पिछले जन्म में क्या थे?
 
 
4.चित्त की गति से होता है पुनर्मिलन। परिवार की पूर्ण सहमति से किए गए ब्रह्म विवाह से संपन्न विवाह में प्रेम, विश्वास, समर्पण, अपनत्व, सम्मान और रिश्तों की अहमियत को समझा जाता है। जब ऐसे संस्कारी पति और पत्नी का चित्त एक-दूसरे के लिए गति करता है और वे एक-दूसरे के प्रति प्रेम, अनुराग और आसक्ति से भर जाते हैं तब उनका इस जन्म में तो क्या, अगले जन्म में भी अलग होना संभव नहीं होता। चित्त की वह गति ही उन्हें पुन: एक कर देती है। जब दो स्त्री-पुरुष एक-दूसरे से बेपनाह प्रेम करते हैं तो निश्‍चित ही यह प्रेम ही उन्हें अगले जन्म में पुन: किसी न किसी तरह फिर से एक कर देता है। यह सभी प्रकृति प्रदत्त ही होता है। कहते हैं कि 'जैसी मति वैसी गति/ जैसी गति वैसा जन्म।'
 
 
5.भगवान शिव अपनी पत्नी सती से इतना प्रेम करते थे कि वे उनके बगैर एक पल भी रह नहीं सकते थे। उसी तरह माता सती भी अपने पति शिव के प्रति इतने प्रेम से भरी थीं कि वे अपने पिता के यज्ञ में उनका अपमान सहन नहीं कर पाईं और आत्मदाह कर लिया। लेकिन यह प्रेम ही था जिसने सती को अगले जन्म में पुन: शिवजी से मिला दिया। वे पार्वती के रूप में जन्मीं और अंतत: उन्हें अपने पिछले जन्म की सभी यादें ताजा हो गईं। भगवान शिव जो अंतरयामी थे, वे सभी जानते थे।
 
 
6. हिन्दू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का संबंध होता है जिसे कि किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के 7 फेरे लेकर और ध्रुव तारे को साक्षी मानकर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिन्दू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संबंध से अधिक आत्मिक संबंध को महत्व दिया जाता है और ये संबंध धार्मिक रीति से किए गए विवाह और उस विवाह के वचन और फेरों को ध्यान में रखने तथा विश्वास को हासिल करने से कायम होते हैं। जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में बचपन में धर्म, अध्यात्म और दर्शन का अध्ययन नहीं किया है उसके लिए विवाह एक संस्कार मात्र ही होता है। हिन्दू धर्म में विवाह एक अनुबंध या समझौता नहीं है, बल्कि यह भली-भांति सोच-समझकर ज्योतिषीय आधार पर प्रारब्ध और वर्तमान को जानकर तय किया गया एक आत्मिक रिश्ता होता है।
 
 
7.आपकी पत्नी यदि आपके पिछले जन्म की साथी रही है तो निश्चित ही आपके मन में उसके प्रति और उसके मन में आपके प्रति एक अलग ही तरह का प्रेम और सम्मान होगा, जो गहराई से देखने पर ही समझ में आएगा। इस भागमभाग की जिंदगी से थोड़ा सा समय निकालकर अपनी पत्नी की आंखों में भी झांककर देख लीजिए।
 
8. कई बार एक बार में ही देखने पर किसी स्त्री या पुरुष के प्रति अजीब सा प्रेम और आकर्षण पैदा हो जाता है और कई बार किसी को देखने पर अपने उसके प्रति घृणा उत्पन्न होती है। हिन्दू धर्म के अनुसार हमारे चित्त या अंत:करण में लाखों जन्मों की स्मृतियां संरक्षित होती हैं और वे हमें स्पष्ट तौर पर समझ में नहीं आती हैं। लेकिन उस स्मृति के होने से ही हम किसी व्यक्ति या जगह को पूर्व में भी देखा गया मानते हैं, जबकि हम किसी व्यक्ति से पहली बार मिले या किसी जगह पर हम इस जीवन में पहली बार गए हों। फिर भी हमें वे जाने-पहचाने से लगते हैं। व्यक्ति का चेहरा भले ही बदल गया हो लेकिन उसे देखकर और उससे मिलकर हमें अजीब-सा अहसास होता है। कई बार हमारे संबंध इतने गहरे हो जाते हैं कि हम उसी के साथ जीवन गुजारना चाहते हैं, लेकिन फिर भी इस बारे में यह सोचा जाना जरूरी है कि हमारे मन में किसी व्यक्ति के प्रति आकर्षण क्यों उपजा?
 
 
9.हमारे चित्त के अंदर 4 प्रकार के मन होते हैं- एक चेतन मन, दूसरा अचेतन मन, तीसरा अवचेतन मन, चौथा सामूहिक मन। अवचेतन मन को ब्रह्मांडीय मन कहते हैं जिसमें हमारे अगले-पिछले सभी जन्मों की स्मृतियां और संचित कर्म संचित रहते हैं। जब हम किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं, जो हमारे पिछले जन्म का साथी था तो हम उसके संपर्क में आते ही उसके चित्त से जुड़ जाते हैं या कि उसका और हमारा आभामंडल जब एक-दूसरे से टकराता है, तो कुछ अच्‍छी अनुभूति होती है और हम सहज ही एक-दूसरे के प्रति समर्पण और प्रेमपूर्ण भाव से भर जाते हैं। हमारे मन में उस व्यक्ति के प्रति दया, प्रेम, करुणा और उससे बात करने के भाव उपजते हैं। यहां ध्यान यह रखना जरूरी है कि कौन से भाव आपके भीतर जन्म ले रहे हैं। हो सकता है कि महज शारीरिक सुंदरता के कारण ही आकर्षण हो।

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