श्री कृष्ण को क्यों कहते हैं संपूर्ण पुरुष?

अनिरुद्ध जोशी
शुक्रवार, 19 अगस्त 2022 (16:14 IST)
श्रीकृष्ण को पूर्णावतार कहा जाता है, जिसके कुछ कारण है। लेकिन उन्हें एक कंप्लीट मैन भी कहा जाता जिसके दूसरे कारण हैं। आओ जानते हैं कि आखिर भगवान श्रीकृष्‍ण को क्यों कहा जाता है एक पूर्ण पुरुष।
 
क्यों कहते हैं पूर्णावतार : श्रीहरि विष्णु के 24 अवतारों में से श्रीकृष्ण को 22वां और दस अवतारों के क्रम में 8वां अवतार कहा गया है। आध्यात्मिक कलाएं 16 होती हैं। पत्‍थर-पेड़ 1 से 2 कला के प्राणी हैं। पशु-पक्षी में 2 से 4 कलाएं होती हैं। साधारण मानव में 5 कला और संस्कृति युक्त समाज वाले मानव में 6 कला होती है।
 
इसी प्रकार विशिष्ठ पुरुष में 7 और ऋषियों या महापुरुषों में 8 कला होती है। 9 कलाओं से युक्त सप्तर्षिगण, मनु, देवता, प्रजापति, लोकपाल आदि होते हैं। इसके बाद 10 और 10 से अधिक कलाओं की अभिव्यक्ति केवल भगवान के अवतारों में ही अभिव्यक्त होती है। जैसे वराह, नृसिंह, कूर्म, मत्स्य और वामन अवतार। उनको आवेशावतार भी कहते हैं। उनमें प्राय: 10 से 11 कलाओं का आविर्भाव होता है। परशुराम को भी भगवान का आवेशावतार कहा गया है।
 
 
भगवान राम 12 कलाओं से तो भगवान श्रीकृष्ण सभी 16 कलाओं से युक्त हैं। यह चेतना का सर्वोच्च स्तर होता है। इसीलिए प्रभु श्रीकृष्‍ण जग के नाथ जगन्नाथ और जग के गुरु जगदगुरु कहलाते हैं। इसीलिए उन्हें पूर्णावतार कहते हैं।
पूर्ण पुरुष : एक व्यक्ति अपने जीवन में कुछ एक विषय में खास बन सकता है। जैसे वह एक श्रेष्ठ पिता, भाई या पति बन सकता है। बाहर वह एक श्रेष्ठ मित्र, संगीतकार, चित्रकार या बिजनेसमैन बन सकता है। लेकिन आप उससे सभी कुछ बनने की आशा नहीं कर सकते लेकिन धरती पर श्रीकृष्‍ण एक मात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो सभी कुछ है। उनमें शिव, परशुराम, राम, बुद्ध सहित रुक्मिणी और राधा भी विद्यमान हैं। वे भक्त भी हैं और भगवान भी। उनके हजार चरित्र हैं।
 
 
बहुरंगी श्रीकृष्‍ण : श्रीकृष्ण का बचपन दुनिया के सभी बच्चों को प्रेरित करता है। वहीं उनकी जवानी के इतने रंग है कि जिस युवा को जैसा रंग पसंद हो वह चुन लें। उन पर बुढापा कभी छाया नहीं, लेकिन उन्होंने उस उम्र में भी युद्ध लड़ा और जीत हासिल की। वे ध्यानी भी हैं और योगी भी। वे प्रेमी भी हैं और ज्ञानी भी। उनमें सभी रंग बसते हैं।
 
 
कलाकार विद्यावान श्रीकृष्‍ण : श्रीकृष्‍ण ने सांदिपनी ऋषि के आश्रम में रहकर वेद के ज्ञान के साथ ही 64 विद्याओं या कलाओं में महारत हासिल की थी जिसमें नृत्यकला, चित्रकला, नाट्यकला, मूर्तिकला और तमाम तरह की कलाएं शामिल थी। विद्याओं में धर्नुविद्य, अस्त विद्या, परा विद्या आदि।
 
श्रेष्ठ मित्र : भगवान श्रीकृष्ण के हजारों सखा या कहें कि मित्र थे। श्रीकृष्ण के सखा सुदामा, श्रीदामा, मधुमंगल, सुबाहु, सुबल, भद्र, सुभद्र, मणिभद्र, भोज, तोककृष्ण, वरूथप, मधुकंड, विशाल, रसाल, मकरन्‍द, सदानन्द, चन्द्रहास, बकुल, शारद, बुद्धिप्रकाश, अर्जुन आदि थे। श्रीकृष्ण की सखियां भी हजारों थीं। राधा, ललिता आदि सहित कृष्ण की 8 सखियां थीं। जहां उन्होंने राज पुत्र अर्जुन से मित्रता का रिश्ता निभाया वहीं उन्होंने गरीब ब्राह्मण पुत्र सुदामा से भी अपने रिश्‍तों को जगजाहिर किया।
 
 
श्रेष्ठ प्रेमी : कृष्ण को चाहने वाली अनेक गोपियां और प्रेमिकाएं थीं। कृष्ण-भक्त कवियों ने अपने काव्य में गोपी-कृष्ण की रासलीला को प्रमुख स्थान दिया है। खास बात यह कि उन्हें प्रेम करने वाली गोपियां और प्रेमिकाएं सभी आपस में किसी से ईर्ष्या नहीं रखती थी। उनकी पत्नियों को भी इससे कोई ऑब्जेक्शन नहीं था और वे सभी एक दूसरे का आदर करती थीं।
श्रेष्ठ पति : भगवान श्रीकृष्ण की 8 पत्नियां थीं- रुक्मिणी, जाम्बवंती, सत्यभामा, मित्रवंदा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी। श्रीकृष्‍ण ने सभी के साथ पति धर्म का पालन किया और उनकी भावनाओं का सम्मान किया। जहां रुक्मिणी के साथ उनके रिश्तों की कथा प्रचलित हैं वहीं सत्यभामा को बराबरी का दर्जा देकर यह सिद्ध किया कि कोई भी बड़ी या छोटी नहीं है।
 
 
श्रेष्ठ भाई : श्रीकृष्‍ण के बलराम और सुभद्रा के साथ संबंध को सभी जानते हैं। कृष्ण की 3 बहनें थीं- एकानंगा (यह यशोदा की पुत्री थीं), सुभद्रा और द्रौपदी (मानस भगिनी)। कृष्ण के भाइयों में नेमिनाथ, बलराम और गद थे। सभी के साथ वे रिश्‍तों में खरे थे।
 
श्रेष्ठ पुत्र : कृष्‍ण दुनिया के सबसे श्रेष्ठ पुत्र थे। उन्होंने जहां नंद और यशोदा के जीवन को खुशियों से भर दिया वहीं उन्होंने उनके असली माता पिता को जेल में आजाद कराने के लिए कंस के साथ युद्ध लड़ा। श्रीकृष्‍ण के माता पिता वसुदेव और देवकी थे, परंतु उनके पालक माता पिता नंदबाबा और माता यशोदा थीं। श्रीकृष्‍ण ने इन्हीं के साथ अपनी सभी सौतेली माता रोहिणी आदि सभी के सात बराबरी का रिश्ता रखा।
 
 
श्रेष्ठ शत्रु : वैसे तो श्रीकृष्ण किसी के शत्रु नहीं थे और न ही हैं, लेकिन उनके काल में उनसे शत्रुता रखने वाले कई लोग थे। उन्होंने भी अपने शत्रुओं को कभी निराश नहीं किया। सभी शत्रुओं को वीरगति देकर वैकुंड में स्थान दिया। श्रीकृष्‍ण ने अपनी शत्रुता का रिश्‍ता भी अच्छे से निभाया था। उन्होंने कंस, जरासंध, शिशुपाल, भौमासुर, कालय यवन, पौंड्रक आदि सभी शत्रुओं को सुधरने का भरपूर मौका दिया और अंत में उनका वध कर दिया।
 
 
अन्य रिश्तों में श्रीकृष्‍ण : श्रीकृष्ण ने अपनी बुवाओं से भी खूब रिश्ता निभाया था। कुंती और सुतासुभा से भी रिश्ता निभाया। कुंती को वचन दिया था कि मैं तुम्हारे पुत्रों की रक्षा करूंगा और सुतासुभा को वचन दिया था कि मैं तुम्हारे पुत्र शिशुपाल के 100 अपराध क्षमा करूंगा। इसी प्रकार सुभद्रा का विवाह कृष्ण ने अपनी बुआ कुंती के पुत्र अर्जुन से किया था। उसी तरह श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र साम्ब का विवाह दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा से किया था। श्रीकृष्ण के रिश्तों की बात करें तो वे बहुत ही उलझे हुए थे। श्रीकृष्ण ने अपने भांजे अभिमन्यु को शिक्षा दी थी और उन्होंने ही उसके पुत्र की गर्भ में रक्षा की थी।
 
 
रक्षक कृष्ण : भगवान श्रीकृष्ण ने किशोरावस्था में ही चाणूर और मुष्टिक जैसे खतरनाक मल्लों का वध किया था, साथ ही उन्होंने इंद्र के प्रकोप के चलते जब वृंदावन आदि ब्रज क्षेत्र में जलप्रलय हो चली थी, तब गोवर्धन पर्वत अपनी अंगुली पर उठाकर सभी ग्रामवासियों की रक्षा की थी। उन्होंने द्रौपदी की रक्षा की और भौमासुर की कैद से 1600 महिलाओं को मुक्त कराया। श्रीकृष्ण ने अपने जीवनकाल में अपने उन सभी भक्तों की रक्षा कि जिन्होंने उन्हें पुकारा।
श्रेष्ठ शिष्य : भगवान श्रीकृष्ण के गुरु सांदीपनी थे। उनका आश्रम अवंतिका (उज्जैन) में था। कहते हैं कि उन्होंने जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर नेमीनाथजी से भी ज्ञान ग्रहण किया था। श्रीकृष्ण गुरु दीक्षा में सांदीपनी के मृत पुत्र को यमराज से मुक्ति कराकर ले आए थे। श्रीकृष्‍ण ने महर्षि गर्ग, घोर अंगिरस, वेद व्यास और परशुराम से भी बहुत कुछ सीखा। वे श्रेष्ठ शिष्य भी थे।
 
 
श्रेष्‍ठ गुरु : श्रीकृष्‍ण ने कई लोगों को शिक्षा दी। उनमें से पांच पांडव और उद्धव का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उन्होंने द्रौपदी, राधा और कई गोपिकाओं को भी गुरु बनकर भक्ति मार्ग की शिक्षा दी थी। अर्जुन द्वारा इसीलिए श्रीकृष्‍ण ये स्तुति की गई थी- 
 
'वासुदेव सुतं देवम कंस चाणूर मर्दनम्,
देवकी परमानन्दं कृष्णम वन्दे जगतगुरु।'
 
 
महान संदेशवाहक : श्रीकृष्‍ण ने युद्ध के मैदान में खड़े होकर दुनिया को गीता का संदेश दिया। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस उपदेश के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है। वर्तमान में श्रीमद्भागवद गीता पर जितनी टिकाएं और व्याख्‍याएं दुनिया में मौजूद है उतनी दूसरे किसी ग्रंथ की नहीं है।
 
महायोगी : श्रीकृष्‍ण को योगेश्‍वर कृष्‍ण कहते हैं। उन्होंने गीता के माध्यम से योग, कर्म, ज्ञान, भक्ति, सांख्य आदि की शिक्षा दी। श्रीकृष्‍ण ने अपने जीवन में जो कार्य किए हैं वह कोई साधारण मनुष्य नहीं कर सकता वह कोई असाधारण पुरुष या पूर्ण पुरुष ही कर सकता है। उनके द्वारा किए गई कार्यों के चलते ही उन्हें एक कंप्लीट मैन कहा जाता है।


महान नीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ और योद्धा : श्रीकृष्‍ण की युद्ध नीति महाभारत के युद्ध में ही नहीं जरासंध के साथ जितनी भी बार युद्‍ध लड़ा उस सभी में प्रकट होती है। वे कुशल योद्धा, राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ थे। उन्होंने महाभारत युद्ध को जिस तरह मैनेज किया उस पर लाखों थीसिस लिखी जा चुकी है। 

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